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Wednesday, March 4, 2009

हरकत उल मुजाहिदीन ने हमला कर कर्ज चुकाया है

लाहौर में मंगलवार की सुबह श्रीलंका की क्रिकेट टीम की बस पर दर्जन भर बंदूकधारियों ने हमले किये और ६ क्रिकेटरों को घायल कर दिया तथा अन्य आठ लोगों को मार दिया। इस हमले की तस्वीरें सी सी टीवी कैमरे से ली गयी हैं और इससे सरकार तथा जांच करने वालों को आतंकियों की शिनाख्‍त एवं पड़ताल में सहूलियत होगी। श्रीलंका की सरकार ने टीम का दौरा रद्द कर दिया है और टीम को तत्काल वापस बुला लिया है। बेशक यह जिम्‍मेदारी पाकिस्तान सरकार की है जिसके सदर आसिफ अली जरदारी हैं। अगर कोई सरकार अपने घर आए मेहमानों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकती तो उसे सरकार कहना गैरवाजिब होगा क्‍योंकि जब किसी देश की खेल या सांस्कृतिक टीमें किसी दूसरे देश में जाती हैं तो वे इस इत्मीनान के साथ जाती हैं कि मेजबान मुल्क में उनके जान-ओ-माल की पूरी हिफाजत उसी तरह होगी जिस तरह उनके मुल्क में। इसका सीधा मतलब यह भी निकलता है कि पाकिस्तान की हुकूमत का इकबाल दहशतगर्द पैरों तले रौंदने पर आमादा हो चुके हैं। इसका मतलब यह भी निकलता है कि पाकिस्तान में पूरा निजाम आतंकवादियों के आगे बेबस होता जा रहा है। इसके मायने ये भी हैं कि दहशतगर्द इतने ताकतवर हो चुके हैं कि उन्हें न पाकिस्तान की पुलिस की परवाह है, न फौज की और न सरकार की। यह पूरी तरह अराजकता की स्थिति है। जब पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में जाने को तैयार श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हैंड ग्रेनेड व राकेट लांचरों से हमला किया जाता है तो मतलब साफ है कि आतंकवादियों को हुकूमत के भीतर से ही कहीं शह मिल रही है। पाकिस्तान में इस वक्त चुनी हुई सरकार है। फौजी हुकूमत में रहते-रहते पाकिस्तान में जिस तरह दहशतगर्दों के अड्डे कायम हुए हैं उन्हें खत्म करने की जिम्‍मेदारी पाकिस्तानी फौज की है और यह फौज सदर जरदारी के निजाम को अंगूठा दिखा रही है। आतंकवादियों के हौसले इस आपसी खींचतान के चलते इस कदर बढ़ चुके हैं कि वे पूरे के पूरे इलाके अपने कब्‍जे में ले रहे हैं। स्वात घाटी में जिस प्रकार तालिबान के साथ पाकिस्तान की हुकूमत को समझौता करना पड़ा है वह इसी बात का सबूत है कि पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार के समानांतर अपना शासन कायम करने की ताकत आतंकवादियों (तालिबानों) में है। श्रीलंका की टीम पर हमला केवल इसका विस्तार ही है। क्‍योंकि आतंकवादी गुटों ने यह देख लिया है कि वे इस्लामाबाद में बैठी सरकार को पूरी तरह झुका सकते हैं। इस हमले में कौन से लोग थे, इसके बारे में कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) और हरकत उल मुजाहिदीन (पूर्ववर्ती नाम हरकत उल अंसार) के रिश्तों और 1990 के दशक में लिट्टे के जहाजों से अफगानिस्तान- पाकिस्तान क्षेत्र में हरकत के लिये हेरोइन की तस्करी में सहयोग पर एक नजर डालने से कम से कम जांच की दिशा जरूर तय हो सकती है। 1993 में भारतीय तटरक्षक बलों ने लिट्टे के एक जहाज को घेरा था। उस पर लिट्टे का एक नेता किट्टू सवार था। वह कराची से उत्‍तरी श्रीलंका के वानी जा रहा था। जब भारतीय तटरक्षक बल ने जहाज को घेर लिया तो उसमें सवार लिट्टे काडरों ने उसमें आग लगा दी और जहाज को डुबा दिया ताकि जहाज तटरक्षकों के हाथ न लगे। किट्टू तो जहाज से नहीं उतर सका पर कुछ काडर कूद गये। जिन्हें तटरक्षकों ने पकड़ लिया और उनसे पूछताछ की। पूछताछ से पता चला कि उस जहाज में हथियार लदे थे। उन हथियारों को आई एस आई तथा पाक नौसेना के अफसरों की मौजूदगी में हरकत के लोगों ने लादा था। 1994 में जांच में पता चला कि लिट्टे अपने जहाजों में हरकत के लिये हथियार और ड्रग्स की तस्करी करता था। हथियार दक्षिणी फिलीपींस के आतंकियों के लिये भेजा जाता था। लिट्टे की इस सहायता के बदले हरकत और आई एस आई ने लिट्टे को कुछ विमान भेदी तोपें , उनके गोले और जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें दी थीं। 9/ 11 तक यह चलता रहा पर इसके बाद अल कायदा तथा हरकत की गतिविधियों पर नजर रखने के लिये जब नाटो के जलपोत पाकिस्तान के चारों तरफ तैनात हो गये तो तस्करी का जाल टूट गया। लेकिन दक्षिणी फिलीपींस, म्‍यांमार की आराकान पहाडि़यों तथा दक्षिणी थाईलैंड में हरकत और अल कायदा की मौजूदगी बनी रही। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हिंदू और ईसाई पृष्ठभूमि वाले लिट्टे तथा हरकत में सांठगांठ कायम है। हालांकि लिट्टे मुस्लिम विरोधी है पर राजीव गांधी की हत्या के बाद दोनों के रिश्ते गाढ़े होते गये। हो सकता है कि हरकत या इंटरनेशनल मुस्लिम फ्रन्‍ट के किसी अन्य घटक दल ने पुरानी दोस्ती का कर्ज चुकाने के लिये यह हमला किया हो। यह जांच की एक संभावित दिशा हो सकती है।

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