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Monday, February 15, 2010

बात कश्मीर की नहीं हिंदुत्व की प्रतिष्ठा की है


खबर है कि ईद के दिन भी कश्मीर में पत्थर फेंके गये और भारी उपद्रव हुए। सरकारी इमारत फूंकी गयी ओर सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचायी गयी। कल यानी ईद के एक दिन पहले शनिवार को सरकार ने वहां फौज के अधिकारों में कटौती की और दूसरे दिन से ही उपद्रव शुरू हो गये। यह देख कर ऐसा लगता है कि सब कुछ योजनाबद्ध ढंग से हो रहा है। सुरक्षा बलों के सैकड़ों सैनिक अब तक इस पत्थरबाजी में घायल हो चुके हैं। यह अवश्यम्भावी है कि जब यह पत्थरबाजी बेकाबू हो जायेगी तो सुरक्षा बल के जवान प्रतिगामी कार्रवाई करेंगे ही ओर ऐसे ही मामूली मसले को लेकर आये दिन घाटी में हड़ताल और आगजनी शुरू हो जाती है।
अखबार, टीवी चैनल ओर मानवाधिकार गुट तरह- तरह की बातें करने लगते हैं। यहां सबसे खतरनाक तथ्य यह है कि घाटी में सरकार का शासन नहीं चल रहा है। टी.वी के फुटेज में पाकिस्तानी झंडा लहराता हुआ दिखता है और कोई कुछ नहीं कहता। बॉलीवुड में ओसामा बिन लादेन का एक प्रहसन बनाया गया था। भारत में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी पर पाकिस्तान में आपत्ति शुरू हो गयी और घाटी में विरोध के नारे लगने लगे।
बहुतों को मालूम होगा कि देश में जब सब्सिडी हटाने का अभियान सा चल निकला है, तब भी कश्मीर को सबसे ज्यादा सब्सिडी मिलती है।

जब भी प्रधानमंत्री जाते हैं तो मानों सब्सिडी की थैली उलट देते हैं। हजारों करोड़ रुपयों की सब्सिडी की घोषणा होती है। सन 1989 से घाटी में कोई भी अधिकारी पूरा काम नहीं कर पाया है। आये दिन हड़ताल ओर कर्फ्यू पर वेतन पूरा मिलता है उन्हें। हकीकत तो यह है कि अमरीका की मध्यस्थता से एक समझौता बन चुका है जिसमें घाटी को आजाद करने की योजना है। अगर ऐसा होता है तो यह भारत के लिये भारी दुःख का कारण होगा।
पीड़ा तो तब होती है, जब राजधानी में बड़े महानगरों में चंद ऐसे नामी पत्रकार और बुद्धिजीवी मिल जायेंगे जो कहते पाये जायेंगे कि कश्मीर से क्या होगा ? भारत बहुत बड़ा देश है और हमारा काम कश्मीर के बिना भी चल जायेगा। लेकिन यह गलत है। कश्मीर का बड़ा ही समरनीतिक महत्व है। अगर वह दिल्ली के हाथ से निकल जाता है तो भारत तीन दुश्मन राष्ट्रों से घिरा है और वे भारत को परेशान करने से बाज नहीं आयेंगे। दूसरी ओर अगर कश्मीर टूटता है तो मणिपुर क्यों नहीं, पंजाब क्यों नहीं?

दुनिया के कई देश अलगाववाद का दंश झेल रहे हें। फ्रांस कोर्सिका के आंदोलन से त्रस्त है,स्पेन बास्कस से और इंग्लैंड फाकलैंड से। ये स्थल अपने देशों की राजधानियों से काफी दूर हैं। फिर भारत क्यों कश्मीर हाथ से जाने देगा ? कश्मीर हजारों साल से सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप में भारत का हिस्सा है। यही नहीं कश्मीर हमारे हिंदू धर्म का शैव पीठ है और सैकड़ों योगियों, सन्यासियों और गुरुओं ने यहां तपस्या की है, साधना की है।

भारत का सबसे बड़ा शैव तीर्थ अमरनाथ यहां की ही धरती पर है। कश्मीर की इस दशा के लिये हमारी मीडिया, खासकर पश्चिमी मीडिया दोषी है, जो लगातार कहता आया है कि कश्मीर विवादित स्थल है। हममें से बहुतों को यह मालूम होगा कि पिछले 30 वर्षों से पाकिस्तान कश्मीर में अलगाववाद को हवा दे रहा है ओर वहां के लिये आतंकियों को हथियार तथा धन दे रहा है। लेकिन विदेशी मीडिया यहां तक भारत में प्रतिष्ठित बीबीसी भी लगातार उसे भारत के कब्जे वाला कश्मीर कहता है और आतंकियों को लड़ाकू (मिलीटेंट) बताता है। बात कश्मीर में रहने वाले मुट्ठी भर हिंदुओं (1980 में घाटी में हिंदुओं की संख्या 5 लाख थी।) की नहीं है, जिनकी जान को बराबर खतरा बना रहता है। बात अमरनाथ यात्रियों की भी नहीं है। बात हिंदुत्व की प्रतिष्ठा की है। हिंदू धर्म के गुरुओं को अब सक्रिय होना चाहिये। मां भारती और हिंदुत्व को खतरा बढ़ रहा है। भारत में लगभग 80 करोड़ हिंदू हैं और अनुमानत: एक अरब पूरी दुनिया में हैं। धर्मगुरुओं को एक साल में कम से कम तीन बार एक साथ बैठ कर हिंदुओं के लिये कुछ निर्देश तैयार करना चाहिये जो हिंदुओं के लिये बाध्यता मूलक हों। एक बात मान कर चलें कि राष्ट्रभक्ति भी एक धर्म है।

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