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Friday, July 9, 2010

तेल मूल्य नियंत्रणहीन करना उचित नहीं

हरिराम पांडेय
अजीब विडम्बना है। कांग्रेस की गठबंधन की सरकार ने तेल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का फैसला जिस मनहूस दिन (26 जून) को लिया उस दिन आपातकाल की 35 वीं वर्षगांठ थी। आपातकाल के वे काले दिन अपने आपमें जितने दुःखदायी थे उससे कहीं ज्यादा तेल की कीमतों पर से सरकारी लगाम हटाने पर होंगे। अगर आप तेल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने और उसकी घोषणा करने के सरकारी परिक्रम को यदि आप समग्र रूप से देखें तो ठीक वैसा ही लगेगा जैसा इमरजेंसी के दिनों में कुछ नेताओं ने फरेब किया था।
आपातकाल के उन मूर्खतापूर्ण दिनों में सरकार को सेंसरशिप की जरूरत महसूस हुई थी। हाल के ज्यादा परिष्कृत समय में चौकस होकर उठाए गए कदम ज्यादा फायदेमंद साबित होते हैं। इसी दिन के अखबार में मौसम विभाग के हवाले से यह खबर भी थी कि इस बार मानसून की बहुत अच्छी बारिश के आसार हैं और 1 जुलाई तक मौसम तरबतर हो जाएगा और सितंबर तक सामान्य से ज्यादा बारिश होगी। मौसम विभाग के हवाले से एक और खबर आती है कि क्षमा करें, हमारे पूर्वानुमानों में चूक हो गई थी। मानसून कमजोर पड़ गया है। उत्तरी भारत के खेतिहर इलाकों की पट्टी, जो बिहार तक चली गई है, अब भी रेगिस्तान की तरह खुश्क थी। यदि 4 जुलाई तक मानसून नहीं आया तो फसलों को नुकसान होना शुरू हो जाएगा। जहां तक खबरों का सवाल है देश के कई हिस्सों में आज बाढ़ आयी हुई है और पानी भी सब जगह है। सवाल यह नहीं है कि मौसम विभाग से चूक हुई। सवाल है कि 25 जून को मौसम विभाग ने जान-बूझ कर झूठ बोला या उससे झूठ बोलवाया गया। क्योंकि 26 जून को जब तेल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त किया जायेगा और उनकी कीमतों उछाल आयेगा तो सरकार के मंत्री, अफसर मीडिया में यह कह सकें कि बारिश होने से अच्छी फसल होगी और उससे तेल की कीमतों में वृद्धि के प्रभाव का आघात बेअसर हो जायेगा।
यही नहीं सरकार द्वारा तेलों के मूल्य को नियंत्रण मुक्त करने के फैसले से सरकारी तेल कम्पनियों के मुकाबले निजी क्षेत्र की कम्पनियों को ज्यादा लाभ होगा। सरकार ने यह निर्णय करने के पहले यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि तेल कम्पनियां भारी घाटे में हैं। लेकिन इन कम्पनियों ने कभी शिकायत नहीं की कि वे घाटे में चल रहीं हैं, उन्होंने हरदम कहा कि 'अंडर रिकवरी है। लेकिन यह नहीं बताया कि कहां यह अंडर रिकवरी है। अतएव पेट्रोल की कीमतें नियंत्रण मुक्त किया जाना उचित नहीं था। यह नौ सरकारी तेल कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के इरादे से नहीं किया गया बल्कि निजी तेल कम्पनियों को लाभ कमाने के लिये मैदान खाली करने की गरज से किया गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में इजाफे के बावजूद भारतीय कम्पनियों ने टैक्स चुकाने बाद भी लाभ कमाया। यानी 25 जून तक कम्पनियां मुनाफे में चल रहीं थी फिर अचानक वह कौन सी आर्थिक जरूरत आ पड़ी कि 26 जून को तेल की कीमतों को नियंत्रणमुक्त करना पड़ गया। तेल कम्पनियों ने इस साल 805 करोड़ रुपये टैक्स चुकाने के बाद 2228.28 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। अब सरकार की इस उदारता के मायने आप खुद समझ लें।

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