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Friday, August 13, 2010

कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये

कहां तो तय था चिरागां हर घर के लिये,
यहां चिराग मयस्सर नहीं है शहर के लिये
न हो कमीज तो पावों से पेट ढंक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिये

सामने 15 अगस्त है। आजादी का दिन है। हम इसे सम्मान से भारत और शान से हिंदुस्तान विदेशियों के आगे लाज छिपाने के लिये इंडिया कहते हैं।
इस देश को स्वतंत्र हुए 63 वर्ष हो गए। यानी उम्र की परिपक्व अवस्था। यह जड़ों की ओर लौटने का समय है। आखिर इतने संघर्ष और कुर्बानियों के बाद जो राजनीतिक आजादी हमने पाई, उसका लाभ हमारे जीवन को मिला ?
आजादी की नींव उसी समय पड़ जाती है, जब कोई आजाद रूप से सोचना-विचारना शुरू करता है। स्वतंत्र और मौलिक चिंतन वाला मनुष्य कही-सुनी बातों को तर्क की कसौटी पर परखता है। वह अंधानुकरण नहीं करता। लकीर का फकीर नहीं बनता। अपने स्वतंत्र चिंतन के बल पर वह सीधा सार या निचोड़ को पाने की कोशिश करता है।
स्वतंत्र चिंतन और तर्क, सच और झूठ की परख कराते हैं। स्वतंत्र चिंतन वाला मनुष्य सही-गलत की पहचान रखता है।
इसी पहचान के तहत एक सवाल उठता है कि सही में यह हिंदुस्तान या भारत या इंडिया किसका है ?
क्या बहुसंख्यक हिंदुओं का है? फिर किन हिंदुओं का-उनका जिनके पास भगवान का दिया हुआ सब कुछ है, या उनका जिन पर दीनबंधु ने कभी दया नहीं की ? या उनका जिनके मुताबिक हिंदुत्व विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म है, या उनका जिनके लिए रोटी से बड़ा कोई धर्म नहीं है ? या उनका जिन्हें अपने हिंदू होने का अभिमान है या उनका जिनके हिंदू होने पर इन हिंदुओं को ही शर्म आती है ? या उनका जिनका सबसे बड़ा सपना अयोध्या में राममंदिर का बनना है या उनका जिनकी जिंदगी में राम का परिचय अपने नाम रमुआ से है?
अथवा यह हिंदुस्तान या भारत या इंडिया मुसलमानों का है ? पर किन मुसलमानों का - उनका जो इन्सान से ऊपर इस्लाम को और हिंदुस्तान से ऊपर पाकिस्तान को रखते हैं या उनका जिनसे उनके इस्लामी नाम की वजह से हर कदम पर भारतीय होने का सर्टिफिकेट मांगा जाता है? उनका जो मजहब के नाम पर राजनीति का पेशा करते हैं या उनका जो न पाकिस्तान जानते हैं न हिंदुस्तान, जो केवल अगली सुबह के खाने के जुगाड़ के लिए डरे डरे से घर से निकलते हैं कि कहीं किसी विस्फोट या अंधाधुंध फायरिंग में उनकी जान चली जाय और घर में बच्चे निवाले को तरसते रहें ?
आखिर यह हिंदुस्तान या भारत या इंडिया किसका है - उत्तर भारत के कुछ राज्यों में रहने वाले उन भाषाई अल्पसंख्यकों का, जिन्होंने हिंदी को हिंदू और हिंदुस्तान से जोड़कर बाकी भाषाओं को सौतेली बहनों का दर्जा दे दिया है या उनका जो कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से महाराष्ट्र तक रहते हुए अलग-अलग बोलियां बोलते हैं और हिंदी के भारी वजन से खुद को बचाने के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं ? उनका जो महंगे स्कूलों और कालेजों में पढ़कर फर्राटेदार अंग्रेजी और ऊंचे कनेक्शन के बल पर बड़े-बड़े सरकारी और निजी ओहदों पर आसीन हो जाते हैं या उनका जो नगरपालिका या सरकारी स्कूल में पढ़कर एक छोटी-सी नौकरी के लिए आवेदन पर आवेदन जमा कराते रहते हैं?
यह देश किसका है - उनका जिनका देश की 80 प्रतिशत दौलत पर कब्जा है और जो देश की एक-एक इंच जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं ताकि उससे होने वाली कमाई से अपने लिए महल खड़े कर सकें या उनका जो अपने झोपड़े भर की जगह बचाने की कोशिश गुंडों के हाथों मरवा दिए जाते हैं?
यह देश किसका है - उनका जो ऊंची-ऊंची इमारतों में, बिजली की रोशनी में नहाते शहरों में, फ्लाईओवरों के जालों में और कारों की कतारों में देश का विकास देखकर गदगद होते हैं या उनका जो जंगलों में और गांवों में, टूटे-फूटे झोपड़ों में, नंगे बदन या चीथड़ों में और अल्युमीनियम के कटोरों में अपना नरक जीते हैं और उसी में मर जाते हैं ?
यह देश किसका है - उनका जो एक-एक फिल्म के लिए करोड़ों वसूलते हैं या उनका जो इनको पर्दे पर देखकर अपनी भी किस्मत किसी दिन बदलने का झूठा सपना बुनते हैं? उनका जो खेल के मैदान पर बल्ला या रैकेट घुमाकर और कैमरों के सामने गोरा बनने की क्रीम बेचकर अरबपति बन गए हैं या उनका जो छोटा-मोटा टीवी तो क्या, एक रेडियों भी अफॉर्ड नहीं कर सकते और जिनके घरों की लड़कियां काली हों या गोरी - पैसे के बदले अपना सब कुछ उतारने पर मजबूर हो जाती हैं?
यह देश किसका है - उनका जो मजदूर, किसान, जनता आदि के नाम पर पार्टियां बनाते हैं, उनके नाम पर वोट मांगते हैं मगर संसद और विधानसभाओं में जाकर व्यापारियों, धंधेबाजों, तस्करों और माफियाओं की बेशर्मी से चाकरी करते हैं या उनका जिनके नाम पर यह सारी राजनीति चल रही है ? उनका जो विकास के नाम पर बने प्रोग्रामों में से अधिकतर हिस्सा अपने और अपनों में बांट देते हैं या उनका जिन्हें उनके अधिकार का एक-एक पैसा खैरात बोलकर दिया जाता है ?
और अगर यह देश इनका भी है और उनका भी-तो फिर इनमें और उनमें इतना फर्क क्यों है ? अगर यह देश इनका भी है और उनका भी तो सारी मलाई इनके हिस्से और सारा फटा दूध उनके हिस्से क्यों आता है? अगर यह देश इनका भी है और उनका भी तो क्यों इनके बच्चे 15 अगस्त के आयोजनों के लिए रिहर्सल कर रहे हैं और उनके नंगधड़ंग बच्चे उस रोज मिठाई का एक टुकड़ा मिलने की उम्मीद में आज से खुश हो रहे हैं ?
आजादी के मायने हर आने वाले दिनों के साथ धुंधले होते जा रहे हैं। देशभक्ति और पाखंड के दरमियान फासले रोज घट रहे हैं। नौजवानों को न तिरंगे और चक्र का दर्शन मालूम है और न भगत सिंह, राजगुरु और आजाद की ज्यादा कीमत है। भारत माता की प्रीति और स्नेह मदर इंडिया की फॉर्मलिटी में रूपांतरित होती जा रही है। चारों तरफ नाउम्मीदी के इस घटाटोप में उम्मीद का एक चिराग रोशन है वह है हमारी नौजवान पीढ़ी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं छिपाती है। जरूरत है उन्हें जिम्मेदारियों से दो चार कराने की। जिस आग ने आजादी की लड़ाई के दौरान गुलामी को जला डालने वाली मशालों को आग बख्शी थी वह आग आज भी कायम है। यह एक शुभ संकेत है।
मेरे सीने में नहीं तेरे सीने में सही
आग जहां भी हो आग जलनी चाहिये
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये

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