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Thursday, August 26, 2010

भगवा आतंकवाद - आखिर कहना क्या चाहते हैं?

गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने बुधवार को नयी दिल्ली में सारे राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के चार दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन में भगवा आतंकवाद का उल्लेख किया। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि भगवा शब्द से उनका तात्पर्य क्या है?
सहज बुद्धि से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे हिन्दू आतंकवाद का हवाला दे रहे हैं।
अब माननीय गृहमंत्री महोदय को यह तो मालूम होगा कि इस धरा पर कुल आबादी जितनी है उसमें हर छठा आदमी हिन्दू है। साथ ही हिंदुओं में आतंकवाद की भावना ना के बराबर होती है वरना यह कौम अपनी समस्त वीरता और दौलत के बावजूद सैकड़ों साल तक गुलाम नहीं रहती। इस बात के तमाम ऐतिहासिक, शास्त्रीय प्रमाण उपलब्ध हैं कि भारत की असली खूबी दरअसल इसकी सनातनी विचार धारा में है। दुनिया का कोई भी आदमी चाहे वह किसी भी धर्म या ईमान का हो देश के करोड़ों हिंदुओं में से किसी से मिलता है तो वह अपनी तमाम आध्यात्मिकता के बावजूद मिलने वाले की विविधता को स्वीकार कर लेता है, उसकी इज्जत करता है।
यूनान मिस्र ओ रोमां
सब मिट गये जहां से
अब तक मगर है बाकी
नामोनिशां हमारा
कुछ बात है कि
हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों से रहा है दुश्मन
दौरे जहां हमारा।
यह हिंदुत्व ही है, जो भारतीय ईसाइयों या मुसलमानों को ब्रिटिश ईसाई और अरबी मुसलमान से अलग करता है और उसे उतनी इज्जत देता है, जितनी वह अपने साथी को देता है। दुनिया में हिन्दू ही एक ऐसी कौम है जो न केवल अवतारों पर भरोसा करती है बल्कि वह इस बात पर भी विश्वास करती है कि समय- समय पर विभिन्न स्वरूपों में भगवान का अवतरण हो सकता है... तदात्मानं सृजाम्यहम्। यही कारण है कि देश निकाला या राष्ट्रीय पलायन के बाद यहां आये लोगों को शरण मिली है वे चाहे चीनी हों या पारसी या ईसाई हों, यहूदी हों या अमरीकन या तिब्बती।
हजारों वर्ष के इतिहास में एक भी उदाहरण नहीं मिलता है कि हिंदुओं ने किसी देश पर हमला किया हो या अपना धर्म जबरदस्ती मनवाने का प्रयास किया हो या धर्मान्तरण के लिये बल प्रयोग किया हो।
पीड़ा तब होती है जब सरकार इन हिंदुओं की तुलना आतंकियों के संगठनों से करती है। सब्जा दहशतगर्दी की तरह भगवा आतंकवाद जैसे शब्द गढ़ती है। जहां तक बाबरी मस्जिद को ढहाने की बात है तो उस घटना में कोई मुस्लिम नहीं मरा था लेकिन उससे उपजे गुस्से तथा बदले की कार्रवाई में सैकड़ों लोग मारे गये, जिनमें ज्यादातर हिन्दू थे। इसके बावजूद सरकार और चंद पत्रकार भाई बाबरी मस्जिद की घटना को ज्यादा भयानक कहते हैं।
हो सकता है मेरी बात सियासी रूप में बहुत सही नहीं हो पर हिंदुओं के कत्ल-ए-आम का इतिहास गवाह है। चौदहवीं सदी के आखिरी वर्ष में तैमूर लंग ने एक ही दिन में एक लाख हिंदुओं को कटवा डाला था। यही नहीं गोवा में पुर्तगालियों ने अनगिनत ब्राह्मणों को सूली पर चढ़ा दिया था। आज भी यह कत्ल - ए-आम जारी है। 1990 में कश्मीर घाटी में लगभग 10 लाख हिन्दू थे और अब वहां कुछ सौ हिंदू हैं। बाकी या तो मार डाले गये या खदेड़ दिये गये। इस देश में हिंदू बहुमत में हैं और यहीं इनका मजाक उड़ाया जाता है उन्हें कई सुविधाओं से वंचित रखा जाता है। हिंदुओं के पवित्रतम तीर्थ अमरनाथ की यात्रा पर जनता से विभिन्न टैक्स लिये जाते हैं और हज के लिये सरकार से पैसा दिया जाता है। हिंदुओं के सामने उनके भाइयों बहनों को प्रलोभन देकर ईसाई बनाया जाता है और वे चुपचाप देखते रह जाते हैं। सदियों भेड़ बकरियों की तरह कटते रहने के बाद यदि कभी मामूली गुस्सा आ जाता है तो उसे भगवा आतंकवाद की संज्ञा दे दी जाती है। क्या यह जायज है?

2 comments:

माधव( Madhav) said...

matter of concern

Akhilesh Kumar Vishwakarma said...

realy what they want and why are then doning