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Sunday, September 26, 2010

दुनिया पाक को मजबूर करे


कश्मीर पर और पाकिस्तान पर लिखना तथा पढऩा उबाऊ हो गया है। देश में लगभग सभी अखबारों तथा पत्रिकाओं में लगभग हर रोज इतना कुछ छप रहा है कि शायद ही कोई अवधारणा है, जो नयी हो। लेकिन पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहा है। वह कश्मीर के मामले में कुछ न कुछ शिगूफा छोड़ ही देता है। अब गुरुवार की ही बात लें। कश्मीर घाटी में जिस समय तनाव कम हो रहा है और सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने हालात का जायजा वहां जाकर ले लिया है, ऐसे में पाकिस्तान के दो मंत्रियों के दो तरह के गैर-जिम्मेदाराना बयान आने दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री अहमद मुख्तार तथा विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने दो अलग-अलग बयानों में पाकिस्तान के असली मकसदों के बारे में दुनिया को बता दिया है। रक्षा मंत्री कहते हैं कि पाकिस्तान को वैसे युद्ध नहीं चाहिए, लेकिन कश्मीर मसले पर यदि युद्ध होता है तो...अपनी एक-एक इंच जमीन के लिए पाकिस्तान कड़ा मुकाबला करेगा..., मुख्तार ने भारत के साथ युद्ध की बात के साथ पकिस्तान-चीन की दोस्ती की भी बड़ी डींगें हांकी हैं। दूसरी तरफ पाक विदेश मंत्री ने अमरीका से कश्मीर मसले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। उन्होंने अमरीका के दक्षिण एशिया शांति प्रयासों से भारत-पाक संबंधों को जोड़ा है। एक मंत्री का बयान कराची से आया है तो दूसरा न्यूयॉर्क से। एक अपनी धरती से युद्ध की बात करता है तो दूसरा विदेशी धरती से अमरीकी हस्तक्षेप की वकालत।
पाकिस्तान के मंसूबे कभी भी साफ नहीं रहे हैं, यह पुन: एक बार साबित हो रहा है। कश्मीर में पिछले कई सप्ताह से जो अशांति की आग भड़क रही है, उससे पाकिस्तान अपने आपको अलग नहीं कर सकता है। अलगाववाद की जो चिंगारी वहां जल रही है वह अपने आप ही नहीं जल रही, वरन जलाई जा रही है। कश्मीर के युवाओं को भड़काया जा रहा है और गलत दिशाओं में ले जाए जाने के प्रयास लगातार हो रहे हैं।
पूरे विश्व को यह मालूम है कि कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान की हठधर्मिता के कारण उलझा हुआ है। आतंकवाद भी यदि घाटी में अक्सर फैलता है, तो उसके मूल में पाकिस्तान की कारगुजारियां ही हैं। ऐसी हालत में अगर विश्व समुदाय दुनिया में अमन चाहता है तो उसे पाकिस्तान को बाध्य करना होगा कि वह कश्मीर पर अपने रुख को बदले वर्ना दक्षिण एशिया फ्लैश पाइंट बना रहेगा।

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