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Monday, October 25, 2010

इसे सरकारहीनता ही कहेंगे


बीते हफ्ते राजधानी में एक ऐसी घटना घटी जिसने राष्ट्र के रूप में हमारे स्वाभिमान को रौंद दिया। राजधानी में कश्मीर की आजादी की पैरवी करने और सरकार पर नैतिक दबाव बनाने के लिये एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। इस सेमिनार का विषय था.. आजादी एकमात्र रास्ता.. और इसके मुख्य वक्ता थे हुरियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के नेता सैयद अली शाह गिलानी। इस सेमिनार की सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात थी गिलानी का माओवादियों की पैरोकार अरुंधति राय से मुलाकात। इससे देशभक्ति ही आहत हुई।

हमारा संविधान सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूलभूत अधिकार देता है। अनुच्छेद 19 में वर्णित यह अधिकार एक नागरिक के रूप में हमारी स्वतंत्रता की गारंटी है। लेकिन क्या देश की एकता व अखंडता के खिलाफ बोलना या अलगाववाद की वकालत करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है?
विचारों की स्वतंत्रता का महत्व है यह माना लेकिन देशद्रोहियों को देश की राजधानी में पाकिस्तान का प्रोपगैंडा करने की इजाजत देना केवल सरकारहीनता ही कही जायेगी। गिलानी और अरुंधती राय के जहरीले राष्ट्रीय बयानों पर उन्हें गिरफ्तार कर सबक देने वाली सजा दी जानी चाहिए। बिडम्बना यह थी कि इस अवसर पर...रूट्स इन कश्मीर, पनून कश्मीर, भारतीय जनता युवा मोर्चा.. आदि संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया लेकिन ज्यादातर मीडिया ने इस घटना पर विशेष ध्यान नहीं दिया।
मुख्य विपक्षी दल भाजपा का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में देश के किसी भी हिस्से को अलग करने की वकालत नहीं की जा सकती। इसीलिए उसने केंद्रीय सत्ता की नाक के नीचे.. अस्वीकार्य विचारों.. के प्रचार की इजाजत देने के लिए सरकार की तीखी आलोचना की है। जवाब में केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा है कि सरकार ने पूरे आयोजन की फिल्म बनाई है और अगर कुछ ऐसा हुआ है जो संविधान सम्मत नहीं था, तो कानून मंत्रालय की राय के बाद कार्रवाई की जाएगी।

ठीक है, लेकिन अब तो बहुत हो चुका हे। सरकार और हमारे भारतीय समाज दोनों को इसके विरोध में उठ खड़ा होना चाहिये। अगर सरकार अब भी अरुंधति राय तथा उस सेमिनार के आयोजकों पर देश द्रोह का मुकदमा नहीं चलाती तो वह किस मुंह से पूर्वोत्तर के विद्रोहियों पर यह मुकदमा चला सकती है।
यही नहीं, हमारा समाज भी इनके विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है। कम से कम सब लोग नहीं तो जिनके हाथ में सूचना तंत्र हैं जैसे टी वी चैनल और अखबार वे तो ऐसे तत्वों की निंदा आलोचना कर उन्हें हतोत्साहित कर सकते हैं। यह मालूम है कि इन दिनों राष्ट्रभक्ति फैशन में नहीं है और राष्ट्रभक्ति की बात करने वालों को लोग गंवार समझते हैं पर उनसे एक सवाल है कि क्या देशद्रोह और देश के विखंडन को फैशन बनने से रोका नहीं जा सकता?
कश्मीर के तालिबानीकरण ने वहां की पुरानी सूफी परम्परा को भी ध्वस्त कर दिया है। कश्मीर में मुस्लिम पीर दरवेशों को भी ऋषि कहा जाता है। पर वहाबी मुस्लिम कट्टरवाद ने हिन्दू मुस्लिम एक्य के तमाम पुलों को ही तोड़ दिया है। संवैधानिक और राजनीतिक बहस के अलावा देश के जनमानस में बेचैनी की वजह दूसरी भी है। भारतीय राष्ट्र-राज्य की स्थापना को अभी छह दशक से कुछ ही ज्यादा समय हुआ है और राष्ट्रों के निर्माण के लिहाज से यह बहुत ज्यादा समय नहीं होता।
हालांकि इन छह दशकों में भारतीय राष्ट्र - राज्य ने काफी मजबूती हासिल की है, लेकिन फिर भी ऐसी घटनाएं स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्षों और स्वतंत्र भारत के आरंभिक वर्षों में देश के एकीकरण की स्मृतियों को ताजा कर देती हैं। जरूरत इस बात की है कि अलगाव की वकालत करने वाले स्वरों को बढऩे से रोका जाए। भारतीय राष्ट्र-राज्य अपने खिलाफ किसी भी तरह के हमले की इजाजत नहीं दे सकता, चाहे वह कश्मीर के अलगाववादी हों या लाल गलियारे में फैले माओवादी। जरूरत इस बात की भी है कि देश की अखंडता से जुड़े सवालों को राजनीतिक दलों के बीच मुकाबले का विषय न बनाया जाए।

2 comments:

माधव( Madhav) said...

nice

Anonymous said...

Respected Pandey ji,

Today i had gone through your article in newspaper, It is very sensitive issue you have touched & it is very pathetic and shamefull that other effective media channels are not highlighting. you had well said that masala news has been substituted by nationalism.

I really appreciate and thankful to your fingers,pen & mind to write it. You have an excellent communication skill, your write ups directly connects, creates & vibrates thinking process....last but not the least Sir,


HO GAYI HAI PEER PARVAT SI PIGHALNI CHAHIYE
IS HIMALAY SE KOI GANGA NIKALNI CHAHIYE

AAJ YEH DEEWAR PARDO KI TARAH HILNE LAGI
SHART LEKIN THI KI YE BUNIYAD HILNI CHAHIYE

HAR SADAK PAR,HAR GALI ME,HAR NAGAR,HAR GRAM ME
HAATH LEHRATE HUE HAR LAASH CHALNI CHAHIYE

SIRF HANGAMA KHADA KARNA MERA MAQSAD NAHI
SAARI KOSHISH HAI KI YE SURAT BADALNI CHAHIYE

MERE SINEY ME NAHI TO TERE SINEY ME SAHI
HO KAHI BHI AAG LEKIN AAG LAGNI CHAHIYE

- DUSHYANT KUMAR, My favourite poet & poem, which has changed my life..

Regards,

SARVENDRA VIKRAM SINGH
9836282228