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Monday, November 8, 2010

दीवाली के प्रकाश पर्व पर


दीवाली प्रकाश का पर्व है। आज के दिन लक्ष्मी जी की आराधना खुलकर की जाती है। वैसे तो लक्ष्मी का हर कोई भक्त है पर बाकी दिन आदमी अपने आपको नि:स्वार्थ और परोपकार में लीन रहने का दिखावा करता है। अवसर मिले तो आध्यात्मिक ज्ञान का भी प्रदर्शन करता है और कहता है कि.. धन ही सभी कुछ नहीं है।.. इससे भी आगे कुछ लोग जो सरस्वती के भक्त होने का भी प्रतिदिन प्रदर्शन करते हैं पर उन सभी को भी..लक्ष्मी जी.. के प्रति भक्ति का प्रदर्शन करते हुए संकोच नहीं होता। लक्ष्मी जी की आराधना और बाह्य प्रकाश में व्यस्त समाज में बहुत लोग ऐसे भी हैं जो अंधेरों में आज भी रहेंगे और उनके लिये दीपावली एक औपचारिकता भर है। जिनके पास लक्ष्मी जी की कृपा अधिक नहीं है - याद रखें लक्ष्मी जी की थोड़ी कृपा तो सभी पर होती है वरना आदमी जिंदा नहीं रह सकता - वह बाह्य प्रकाश करने के साथ उनकी आराधना ऊंची आवाज में करेंगे। लक्ष्मी के साथ जिनपर सरस्वती की भी थोड़ी कृपा है- जिन पर उनकी अधिक कृपा होती है लक्ष्मी जी उनसे दूर ही रहती हैं, ऐसा भी कहा जाता है - वह भी अनेक प्रकार के ज्ञान की बात करेंगे। बाह्य प्रकाश में लिप्त लोगों को आंतरिक प्रकाश की चिंता नहीं रहती जो कि एक अनिवार्य शर्त है जीवन प्रसन्नता से गुजारने की।

दीवाली पर्व से जुड़े भौतिक तत्वों के उपयोग में परंपरागत शैली अब नहीं रही। वैसे तो सारे पर्व ही बाजार से प्रभावित हो रहे हैं पर दीवाली तो शुद्ध रूप से धन के साथ जुड़ा है इसलिये आधुनिक बाजार को उसे अपहृत करने में देर नहीं लगी। अपने देश ही के नहीं बल्कि विदेशी बाजार को भी इससे लाभ हुआ है। सबसे अधिक चीन के बाजार को इसका लाभ मिला है। वहां के बने हुए सामान इस समय जितना बिकते हैं उतना शायद कभी नहीं उनका व्यापार होता। बधाई संदेशों के लिये टेलीफोन पर बातें हुईं या एस.एम.एस. संदेश भेजे गये, जिससे संबद्ध कंपनियों को अच्छी कमाई हुई।
इसके बावजूद दीपावली केवल भौतिकता का त्यौहार नहीं है। एक दिन के बाह्यï प्रकाश से मन और विचारों में छाया हुआ अंधेरा दूर नहीं हो सकता। लक्ष्मी जी तो चंचला हैं चाहे जहां चली जाती हैं और निकल आती हैं। सरस्वती की पूर्ण कृपा होने पर लक्ष्मीजी की अल्प सुविधा से काम चल सकता है पर लक्ष्मी जी की अधिकता के बावजूद अगर सरस्वती की बिल्कुल नहीं या बहुत कम कृपा है तो आदमी जीवन में हमेशा ही सब कुछ होते हुए भी कष्ट सहता है। तेल या घी के दीपक जलाने से बाहरी अंधेरा दूर हो सकता है पर मन का अंधेरा केवल ज्ञान से ही दूर करना संभव है। हमारे देश के पास धन अब प्रचुर मात्रा में है पर आप देख रहे हैं कि वह किसके पास जा रहा है? हमसे धन कमाने वाले हमें ही आंखें दिखा रहे हैं। चीन इसका एक उदाहरण है। इसका सीधा मतलब यह है कि धन सभी कुछ नहीं होता बल्कि उसके साथ साहस, तर्कशक्ति और मानसिक दृढ़ता और देश के नागरिकों में आपसी विश्वास भी होना चाहिए। दीपावली के अवसर एक दूसरे को बधाइयां देते लोगों का यह समूह वास्तव में दृढ़ है या खीरे की तरह अंदर से दो फांक है? यह भी देखना चाहिये। अपने अहंकार में लगे लोग केवल इस अवसर पर अपने धन, बाहुबल, पद बल या कुल बल दिखाने में लग जाते हैं। आत्मप्रदर्शन के चलते कोई आत्म मंथन करना नहीं चाहता। नतीजा यह है कि अंदर अज्ञान का अंधेरा बढ़ता जाता है और उतना ही मन बाहर प्रकाश देखने के लिये आतुर होता है। यह आतुरता हमें धनलोलुप समुदाय का गुलाम बना रही है। स्वतंत्र विचार का सर्वथा अभाव है। देश विकास कर रहा है फिर भी अशांति है।

लोग यह समझ रहे हैं कि लक्ष्मी अपने घर में स्थायी है। समाज में गरीबों, मजबूरों और परिश्रमी समुदाय के प्रति उपेक्षा का भाव जिस विद्रोह की आग को हवा दे रहा है उसे बाहरी प्रकाश में नहीं देखा जा सकता है। उसके लिये जरूरी है कि हमारे मन में कामनाओं के साथ ज्ञान का भी वास हो ताकि अपनी संवेदना से हम दूसरों का दर्द पढ़ सकें। मनुष्य योनि का यह लाभ है कि उसमें अन्य जीवों से अधिक विचार करने की शक्ति है पर इसके साथ यह भी जिम्मेदारी है कि वह प्रकृति और अन्य जीवों की स्थिति पर विचार करते हुए अपना जीवन गुजारे। अंतर्मुखी हो पर आत्ममुग्ध न हो। यह आत्ममुग्धता उसी अंधेरे में रहती है जो आदमी अपने अंदर पालता है। इस अंधेरे से लडऩे की ताकत आध्यात्मिक ज्ञान के दीपक में ही है और इसे इस अवसर पर जलाना है।

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