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Friday, December 3, 2010

गोपनीयता के भंग होने से बढ़ सकती हैं मुश्किलें

विकीलीक्स के खुलासे का अमरीकी कूटनीति और अन्य देशों के उसके दौत्य सम्बंधों पर क्या असर पड़ेगा, यह अभी कहना मुश्किल है। यह भी कहना मुमकिन नहीं है कि इसके बारे में आम जनता क्या सोचती है ? क्योंकि भारत पाकिस्तान में युद्ध के बारे में अमरीकी राजनयिकों की टिप्पणी, जिसका तथाकथित खुलासा हुआ है, बिल्कुल चौंकाने वाली नहीं है। आश्चर्य अगर हो रहा है तो इस बात पर कि खुद पाकिस्तान में अमरीका के राजदूत आदि ने नियमित तार भेजकर जो जानकारियां दी हैं, अमरीका समय रहते उन पर कोई कार्रवाई करने में क्यों विफल रहा ?
गोपनीय दस्तावेजों को जारी करने के औचित्य बारे में विकीलीक्स की अपनी दलील है। उसका कहना है कि सरकार के कामकाज के बारे में जनता जितना अधिक जानेगी, उतना ही अच्छा परिणाम होगा। उचित समय पर गोपनीय सूचनाओं के खुलासे का अपना महत्व भी है। वुडरो विल्सन का मानना था कि अमन के खुले समझौतों पर खुलेआम ही सहमति हो सकती है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि खुली कूटनीति अक्सर बुरी तरह असफल होती है। किसी भी वार्ता (निगोसियेशन) की सफलता के लिये एक खास स्तर की गोपनीयता जरूरी होती है।
चाणक्य का कहना था कि..मन में सोची गयी बात या योजना को किसी के सामने प्रगट नहीं करें, ऐसा करने में उस कार्य की सफलता में संदेह होता है।.. विदेश नीति में तो गोपनीयता जरूरी होती है। यदि शीतयुद्ध जारी रहता तो क्या आज कोई उस संसार की कल्पना कर सकता है। शीतयुद्ध के अंतिम दिनों में दुनिया में इतना तनाव था कि किसी भी दिन परमाणु युद्ध हो सकता था। इस जंग को खत्म कराने के लिये जैसी गोपनीय वार्ताएं हुईं थीं, उनका अगर पहले ही खुलासा कर दिया गया होता तो स्वरूप कुछ दूसरा ही होता।
विकीलिक्स के समर्थन में भी बहुत से लोग हैं, जिनका मानना है कि विदेश नीति के बारे में उन्हें पूरी जानकारी मिलनी चाहिये। लेकिन जब इस सारे प्रकरण पर गंभीरता से सोचें तो लगता है कि यह किसी अपरिपक्व आदमी के हाथों में डायनामाइट है और वह ऐसी सुरंग को चौड़ा करना चाहता है, जिसमें शहर भर के बिजली के तार बिछे र्है। इस लीक से किसी को लाभ मिले या नहीं पर अमरीकी कूटनीति की तो साख गयी।

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