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Sunday, December 12, 2010

विकास के दुर्गंण


बराक ओबामा भारत आये थे। उन्होंने कहा था कि भारत आर्थिक रूप से विकासशील देश नहीं बल्कि पूरा विकसित देश है। ऐसी बातें सुन कर हम भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। दुनिया के नेताओं का मानना है कि भारत का समय आने वाला नहीं, बल्कि आ चुका है। हम कभी अपने आर्थिक विकास, आईटी क्षेत्र में ताकत और दुनिया में हमारी बढ़ती इज्जत और हमारे लोकतंत्र की महानता की बात करते नहीं थकते। लेकिन डर है कि यह सब फील-गुड फैक्टर के लिए तो ठीक है लेकिन इसके पीछे कई कड़वे सच छिपे हुए हैं।
अक्सर नये बनते शहरों के जवान लड़के लूटपाट में लिप्त पाये जाते हैं। लगातार यह सुनने में आता है। नयी पीढ़ी शहरों में अक्सर ऐसा ही होता है। लेकिन आश्चर्य है कि स्थानीय मीडिया में इन घटनाओं का कवरेज जरा भी देखने को नहीं मिलता है। क्या अब यह रोज का मामला हो गया है, क्या अब इसमें कोई अनोखी बात नहीं है ?
क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि हमें कोई भी बात नहीं चौंकाती?
मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। जो बात हमें समझ आई वह यह कि नये बने मिलेनियम सिटी और उसके आसपास के इलाकों में भारी अंतर है। ऐसा लगता है कि शहर कई सदियों आगे हैं और इन ग्रामीण इलाकों में वक्त हमेशा के लिए ठहर गया है।
हमारे सामने एक भयानक सामाजिक - आर्थिक समस्या मुंह बाए खड़ी है। ये सारे लड़के पहले जमीन वाले थे। इसी बीच भ्रष्ट नेता तस्वीर में आ गए और बिल्डर माफिया के साथ मिलकर, इन लोगों ने गांववालों की जमीनें खरीद डालीं। गांववालों को यह जताया गया कि उन्हें जमीन की अच्छी कीमत मिल रही है। शिक्षा का अभाव तब भी था और अब भी है। उन्हें किसी ने नहीं बताया कि अचानक रईस होने के बाद वह इस धन का क्या करें ?
विकास उनके पास नहीं पहुंचा। जमीन के बदले में मिली रकम को ज्यादातर फूंक-ताप चुके हैं। अब उनके पास कोई विकल्प नहीं है जिसके सहारे वह जिंदगी में आगे बढ़ें। इसलिए उनका फ्रस्ट्रेशन बढ़ाता जा रहा है। उनकी हताशा मौकों के अभाव की वजह से है। उनकी हताशा विकास न होने की वजह से है। उनकी हताशा शिक्षित न होने की वजह से है। वे अपनी जमीन पर बनी इमारतों में रईसों को रहते देखकर हताश हैं। वे इसलिए हताश है कि अब वे इस बारे में कुछ नहीं कर सकते। उनकी हताशा अपना सब कुछ गंवा चुकने की है जबकि उन्हें लालच देने वाले आगे ही बढ़ते जा रहे हैं।

ईमानदारी से कहा जाय तो उनकी क्या गलती है ? वे भी हमारे ही जैसे हैं। यह हमारे नेताओं और प्रशासकों की हार है कि सिचुएशन इस हद तक बिगड़ गई है। अगर उन्होंने बिल्डर्स लाबी के साथ गहरे संबंधों के चलते इन अशिक्षित ग्रामीणों को अपनी जमीन बेचने के लिए मना लेने के साथ ही इन इलाकों का विकास में इनवेस्ट किया होता, अवसरों का निर्माण किया होता तो सिचुएशन काफी हद तक बेहतर होती....।

लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब जब इन ग्रामीणों को लगता है कि दुनिया जिन चीजों की बात करती है वह उनके हाथ से निकल चुकी है, वह खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं। वे उनके खिलाफ गुस्सा महसूस करते हैं जिन्होंने उन पर राज किया और उनका नेतृत्व किया। और, यह सब उन्हें वह सब करने पर मजबूर कर रहा है जिसका ऊपर जिक्र किया गया है। यहां जो बात डराती है वह यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस दुविधा से बाहर आने का सबसे आसान तरीका यानी अपराध का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। इसके बावजूद, हमारे शासक इस खतरनाक ट्रेंड से बेखबर हैं। वे सिर्फ अपने लिए और... और ... बनाने के बारे में सोचते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि यह कभी न खत्म होने वाला लालच एक दिन उन्हें ले डूबेगा। और, सामाजिक खाई को और बढ़ाएगा।

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