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Friday, December 3, 2010

विकीलिक्स: संदेश..लीक.. होने का प्रभाव


अमरीकी विदेश विभाग और विभिन्न देशों में अमरीकी मिशन के बीच संदेशों के आदान- प्रदान के दस्तावेज को विकीलिक्स द्वारा ..लीक.. कर दिये जाने से तय है कि अमरीका के दौत्य सम्बंधों और आतंकवाद के खिलाफ उसकी मुहिम पर गंभीर असर पड़ेगा। विकीलिक्स ने लगभग दो लाख संदेशों को लीक किया है।
किसी भी राष्ट्र की कूटनीति को प्रभावशाली और सफल होने के लिये जरूरी है कि वह गोपनीय रहे। अब कूटनीतिक संदेशों को..लीक.. कर विकीलिक्स ने अमरीकी राजनयिकों को काम करना दुरूह कर दिया। अब वे उस तरह से काम नहीं कर सकते जैसा करना चाहिये। अब जाहिर है कि भविष्य में अमरीका के विदेशी वार्ताकार कभी भी सहज होकर काम नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें हर दम यह अहसास रहेगा कि इन बातों का खुलासा हो जायेगा। यही बात आतंकवाद के खिलाफ चल रहे युद्ध पर भी लागू होगी। क्योंकि जंग केवल मैदान में और फौजी सरंजामों से नहीं लड़ी जाती बल्कि उसका एक कूटनीतिक पहलू भी होता है।
राजनयिक आतंकवाद अथवा किसी भी जंग के विरोध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने का काम करते हैं। अब यह कठिन हो जायेगा। दस्तावेजों को फौरी तौर पर देखने से पता चलता है कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में उस क्षेत्र में दौरे पर गये अमरीकी अफसरों और वहां के शासकों की वार्ताएं हुई हैं। मसलन एक वार्ताकार सऊदी अरब गया और वहां उसने सऊदी शासकों से आतंकवाद पर वार्ता की। इसी तरह वह इसराइल गया और वहां उसने इसराइली विदेशी खुफिया संगठन मोसाद के अफसरों से बात की। वरिष्ठ अमरीकी अफसरों ने इस्लामी देशों का भी दौरा किया और मुस्लिम नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध पर उनसे खुल कर बातें कीं। उन्होंने अल कायदा और अन्यान्य आतंकी संगठनों के बारे में निजी तौर पर कई बातें बताईं। ये संदेश अमरीकी मिशनों के माध्यम से विदेश विभाग को भेजे गये। अब जबकि वे संदेश..लीक.. हो गये तो उन्हें मीडिया के लोग या विश्लेषकों के अलावा अलकायदा और अससे जुड़े संगठनों के लोग भी पढ़ेंगे और जब मालूम होगा कि मुस्लिम नेताओं और अमरीकी अफसरों में गाढ़ी छनती है तो वे आगबबूला हो उठेंगे।
मुस्लिम नेता और इस्लामी शासक पहले ही अल कायदा के खिलाफ अमरीका को खुलकर मदद नहीं देते थे तथा अब तो और हिचकेंगे। विकीलिक्स का दावा है कि उसके पास 3000 ऐसे संदेश हैं जिसमें नयी दिल्ली स्थित अमरीकी मिशन ने भारत के बारे में भेजा है। अभी वे संदेश सामने नहीं आये हैं कि जाना जा सके कि उनमें क्या है?
राजनयिकों का काम है कि वे जिस देश में तैनात हैं वहां के राजनीतिक हालात के बारे में अपने विदेश विभाग को पूरी जानकारी दें तथा उस पर अपनी स्पष्ट टिप्पणी भी दें। अगर यह संवेदनशील तथ्य प्रगट हो जाता है तो यकीनन दोनों देशों के सम्बंध खराब हो जायेंगे। यही हालात पाकिस्तान के भी हैं या इससे अधिक। वहां तो अमरीका उसी पर निर्भर है। यह बताना कठिन है कि इस प्रकरण से कितना ज्यादा नुकसान होगा पर यह तो तय है कि अमरीकी कूटनीति के लिये यह भयानक होगा।

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