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Monday, February 28, 2011

अरब की क्रांति : लोकतंत्र का दावानल



हरिराम पाण्डेय
लीबिया में अंतरिम सरकार की घोषणा हो चुकी है और आज नहीं तो कल वह कथित रूप से आजाद भी हो जायेगा। मध्य पूर्व के देशों में भड़की क्रांति की लपटों का सीधा अर्थ है सर्वसत्तावाद, कुनबापरस्ती और अत्याचारपूर्ण शासन का अंत और लोकतंत्र की स्थापना। पूरा मध्य पूर्व देश वर्तमान में बेकारी, अत्याचार , भ्रष्टïाचार, मानवाधिकारों के हनन और व्यापक कुनबापरस्ती का शिकार है। लेकिन हमारे ज्यादा ज्ञानी लोग और मीडिया इस क्रांति पर नाक भौं सिकोड़ रहा है तथा शासकों को ही बता रहे हैं कि कैसे प्रभावशाली लोकतंत्र की स्थापना करें। लेकिन अरब विश्व के साथ उसकी सबसे बड़ी दिक्कत उसका सामाजिक 'साइकÓ है। अरब के सामाजिक संस्कारों में सर्वसत्तावाद घुला हुआ है इसलिये यह कहना अभी मुश्किल है कि इस क्रांति का भविष्य क्या होगा और उसका राजनीतिक प्रतिफल कैसा स्वरूप ग्रहण करेगा। अब इस्लामी धर्मग्रंथों की आधुनिक नजरिये से व्याख्या नहीं की जा सकी है और ना इस्लाम इसे बर्दाश्त करेगा ऐसे में आधुनिक लोकतंत्र के बारे में सोचना बड़ा कठिन है। क्योंकि शरिया कानूनों और आधुनिक लोकतंत्र के आदर्शों में बड़ा अंतर है, खासकर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये स्वतंत्र चुनाव आयोग की स्थापना, औरत और मर्द को समान अधिकार , मानवाधिकार का सम्मान , स्वतंत्र न्यायपालिका और मानव जाति के लिये समग्र विकास। अल्लाह की सर्वोच्च सत्ता के नाम पर वहां लोगों को अपना शासक चुनने के अधिकार नहीं हैं। यही नहीं मध्य इसराइल में बीसवीं सदी में स्थापित हिज्ब- ए- तहरीर उस जैसे कई संगठन, जिनकी शाखाएं दुनिया के कई भागों में हैं, अब भी लोकतंत्र को कुफ्र मानते हैं और शरिया कानून भी इसकी मान्यता नहीं देता। 'द इकोनोमिस्टÓ ने हाल में एक सर्वे प्रकाशित किया था कि पूरी दुनिया में लोकतंत्र की क्या स्थिति है। इसमें एक सूचकांक दिया गया था जिसके अनुसार पूरी दुनिया में सम्पूर्ण लोकतंत्र 26 देशों में है जबकि दोषपूर्ण लोकतंत्र 53 देशों में , मिश्रित सत्ता 33 और सर्वसत्तावाद 55 देशों में है। जिन इस्लामी देशों में इस समय आंदोलन हो रहे हैं वे सूचकांक के अंतिम पायदान पर हैं। सच तो यह है कि जिस देश में भी मुस्लिम आबादी का प्रतिशत ज्यादा है वहां दोषपूर्ण लोकतंत्र भी नहीं है पूर्ण लोकतंत्र की बात क्या कहें। दरअसल दुनिया के आठ देश ऐसे हैं जहां चुनाव तो होते हैं पर वहां भी संविधान का आधार इस्लामी कानून ही है। विकीपीडिया के मुताबिक ये आठ देश हैं अफगानिस्तान, बहरीन, ईरान, मॉरितानिया , ओमान, पाकिस्तान, यमन और सऊदी अरब। अन्य 14 देशों - अल्जीरिया, बंगलादेश, मिस्र, इराक, कुवैत, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, मोरक्को, सूडान , सोमालिया और सोमाली लैंड - ने आधिकारिक तौर पर सरकारी धर्म ही इस्लाम मान लिया है। बाकी 19 मुल्क जिनमें तुर्की भी शामिल हैं खुद को धर्मनिरपेक्ष राष्टï्र बताते हैं। इन देशों में खिलाफत शासन दरअसल आधुनिक नजरिये से लोकतांत्रिक नहीं था लेकिन इसे ही वे आदर्श शासन व्यवस्था मानते थे। इसी तरह इन देशों में लागू शासन व्यवस्था राजा या अमीर या राष्टï्राध्यक्ष के नेतृत्व में मस्जिद तथा सेना के मेलजोल से शासन चलता है और ये शासक आधुनिक लोकतंत्र का समर्थन नहीं करते। इस्लामी देशों के मनमाने शासकों में से अधिकांश ने अपनी सत्ता को कायम रखने के लिये शक्तिशाली सैन्य और खुफिया तंत्र को विकसित कर लिया है साथ ही कई पश्चिमी देशों से समझौता भी किया हुआ है। अब ऐसी स्थिति में इन देशों में लोकतंत्र का भविष्य बड़ा खराब लगता है। इन देशों के आंदोलनकारी अपने नेताओं से मोटामोटी स्वतंत्रता तथा आजादी की अपेक्षा करते हैं लेकिन स्पष्टï 'रोडमैपÓ के अभाव में राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति में संदेह है।

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