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Thursday, March 10, 2011

मोहम्मद यूनुस के सम्बन्ध हूजी और अल कायदा से


जालसाजी करके पाया नोबेल पुरस्कार, भारत में आतंकवाद के लिये धन मुहय्या कराते हैं
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और बंगलादेश में ग्रामीण बैंक के संस्थापक मोहम्मद यूनुस न केवल घोर पाखंडी, छली, 'टिपीकल रक्तशोषकÓ के स्तर तक सूदखोर हैं बल्कि भारत में आतंकवाद के लिये हरकत- उल- जेहद- अल- इस्लामी (हूजी) तथा अलकायदा को कथित रूप में धन भी मुहय्या कराते हैं। भारत में होने वाली आतंकी घटनाओं में भी उनके धन के उपयोग का आरोप है। कल से शुरू हुई भारत बंगलादेश वार्ता में भी यह मसला उठाया जा सकता है।
वैसे तो बंगलादेश की प्रधानमंत्री उन्हें शुरू से ही 'ब्लड सकरÓ यानी खून चूसने वाला बताती रहीं हैं लेकिन आतंकवादियों से उनके रिश्तों का जैसे ही पर्दाफाश हुआ उन्हें ग्रामीण बैंक के शीर्ष पद से हटने का आदेश दे दिया गया।
बंगलादेश के खुफिया विभाग द्वारा सरकार को प्रेषित साठ पेज की एक रपट में मो. यूनुस के आतंकियों से सम्बंधों का कच्चा चि_ïा खोला गया है। कथित तौर पर यह भी है कि उस रपट में शेख हसीना के शासन सम्भालने के बाद वहां बंगलादेश रायफल्स में विद्रोह के पीछे यूनुस और हूजी की बड़ी भूमिका थी। प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद के कार्यालय के एक बड़े अफसर ने 'सन्मार्गÓ को बताया कि मोहम्मद यूनुस पर करोड़ों डालर के घोटाले के आरोप हैं। अभी हाल में नार्वे की सरकार ने उन्हें माइक्रो फाइनांस के नाम पर 10 करोड़ डालर दिया था वह रकम कहां गयी इसका कोई जिक्र नहीं है। अफसरों को शक है कि वह रकम आतंकियों को दी गयी है। यही नहीं उस अफसर के मुताबिक 'निर्धनतम ग्रामीण महिलाओं को बहुत कम ब्याज पर कर्ज देकर उनका जीवन स्तर उठाने की अफवाह फैलाने वाले इस कथित मसीहे का सच यह है कि उन्हें विदेशों से इस नाम पर हर साल बहुत बड़ी रकम दान में या अधिकतम तीन प्रतिशत ब्याज की दर पर ऋण मिलता है जबकि वे गांवों की महिलाओं को 40-50 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज देते हैं तथा उसके वसूली का तरीका भी इतना अमानुषिक है कि कइयों ने उस डर से खुदकुशी कर ली है।Ó
उस रपट में कथित तौर पर यह खुलासा किया गया है कि कैसे उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला? रपट में कहा गया है कि चूंकि कट्टïरपंथियों से उनके प्रगाढ़ï संबंध थे और पहले भी वे उन्हें मोटी रकमें दिया करते थे। उन्हें भी एक ऐसे आदमी की जरूरत थी जिसकी छवि एकदम उज्ज्वल हो और उन्हें जहां जरूरत हो प्रचुर धन भी दे सके। 9/11 की घटना के बाद आतंकियों को धन का अभाव महसूस होने लगा था और धन देने वालों पर निगाह भी रखी जाने लगी थी।
इसीलिये कथित तौर पर अलकायदा और हूजी के गुर्गों ने तबलीग की जमीयत की आड़ में पूरी दुनिया में उनका गुणगान शुरू कर दिया। दूसरी तरफ मुस्लिम साइक को मरहम लगाने के लिये उस अवधि में एक ऐसे आदमी की जरूरत थी जो मुस्लिम हो और जिसेे 'ग्लोबल आइकनÓ बनाया जा सके। नोबेल कमेटी आतंकियों के इस छल में आ गयी।
अभी हाल ही में चटगांव के जोबरा गांव के एक निवासी ने 'सन्मार्गÓ को बताया कि मोहम्मद यूनुस ने नोबेल पुरस्कार लिये जाने के बाद जो डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखायी थी, वह झूठ का पुलिंदा है। 13 अक्टूबर 2006 को ओस्लो में दिखायी गयी उस डॉक्यूमेंटरी में चटगांव के जोबरा गांव की ही एक महिला का वृत्तांत है कि ग्रामीण बैंक से पहला कर्ज उसी ने लिया था। उस महिला सुफिया ने कर्ज का उपयोग कर किस तरह अपना जीवन सुखमय बनाया। वह एकदम दयनीय स्थिति से उठकर दो मंजिले मकान की मालकिन बन गयी। सच तो यह है कि सुफिया और उसका परिवार अभी भी उस दो मंजिले मकान के बगल में एक टूटी झोपड़ïी में रहता है। वह मकान जाबाल हुसैन नाम के आदमी का है और जाबाल अभी दुबई में रहता है। सन्मार्ग को जिस व्यक्ति ने जानकारी दी, वह जबाल का रिश्तेदार है। उसने बताया कि जाबाल ने मोहम्मद यूनुस को मुकदमा करने की चेतावनी दी थी तब कहीं जाकर उसने वह डॉक्यूमेंटरी दिखानी बंद की। यही नहीं जाबाल के उस रिश्तेदार ने सुफिया की दो बेटियां नुरुननाहर और हलीमा से भी सन्मार्ग की बात करवायी। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी मां सुफिया गरीबी में एडिय़ां रगड़ कर मरी और वे भिखारियों की मानिंद जिंदगी गुजार रहीं हैं।
यही नहीं अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति की पत्नी और वर्तमान में अमरीकी विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन जब अमरीका की प्रथम महिला के तौर पर बंगलादेश आयीं थीं तो उनके सम्मान में मोशीतला के ऋषिपल्ली में यूनुस ने 'हिलेरी आदर्शÓ के नाम से एक परियोजना शुरू की। इसके कुछ ही दिन के बाद यह गांव सूद वसूली के आतंक में डूब गया और पूरा गांव कंगाल हो गया। आज 'हिलेरी आदर्शÓ सूदखोरी के आतंक का प्रतीक हो गया है। यह कहा जा रहा है कि उस गांव की दर्जनों लड़कियां कोलकाता और मुम्बई के चकलाघरों में बिक गयीं और कई लोगों ने आत्महत्या कर ली।

1 comments:

Smart Indian said...

अगर यह बात सच है तब तो यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि आतंकवादी पैसे के लिये पिछले दरवाज़ों के बजाय इस तरह के बडे फ़ाटकों का प्रयोग कर भोली जनता को खुलेआम लूट रहे हैं।