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Wednesday, March 23, 2011

कांग्रेस - तृणमूल गठबंधन तो हुआ पर...


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हरिराम पाण्डेय
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस में पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के लिये सोमवार को सीटों का तालमेल हो गया। कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में 98 सीटें मांगीं थीं, पर उसे मिलीं 65 सीटेें। सोमवार की सुबह तक कांग्रेस खेमे में चर्चा थी कि सम्मानजनक तालमेल किया जायेगा पर शाम 4 बजे तक यह जुमला दब गया और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने चाहा वैसा ही तालमेल करना पड़ा। यहां यह बता देना लाजिमी है कि ममता जी ने सोमवार के चार बजे तक का कांग्रेस को इसके लिये अल्टिमेटम दिया था। इस तालमेल को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अनुमोदित कर दिया है। अब तृणमूल कांग्रेस राज्य में 227 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बाकी पर कांग्रेस और एस यू सी आई लड़ेंगे। कांग्रेस को जो अतिरिक्त सीट मिली है वह कैनिंग है। इस पूरे गठबंधन में कांग्रेस की औकात एक जूनियर पार्टनर की बन गयी है। हैरत की बात है कि ममता जी ने उसे कोलकाता में कोई सीट नहीं दी। यहां तक कि कांग्रेस की कई जीती हुई सीटों पर भी अपना दावा कर दिया। इस गठबंधन के बाद हालांकि ममता जी ने यह कहा कि अब हमलोग मिल कर वामपंथ का पत्ता साफ कर देंगे, लेकिन कांग्रेस में भारी रोष है। मानस भुइयां ने तो खले आम अपनी नाराजगी जाहिर की है। अधीर चौधरी हर जगह उबलते दिख रहे हैं। विक्षुब्ध कांग्रेसी नेता अपनी ही पार्टी पर लांछन लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं। कुछ नेता तो यह कहते फिर रहे हैं कि कई विजयी विधायकों को टिकटें नहीं दी गयीं जबकि प्रणव मुखर्जी के पुत्र अभिजीत और उनकी रिश्तेदार शुभ्रा को टिकट दे दिया गया। प्रणव मुखर्जी के पुत्र स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की नौकरी छोड़ कर आये हैं और उन्हें नलहाटी सीट से टिकट मिला है जबकि शुभ्रा घोष को हावड़ा के आमता से टिकट मिला है। मुर्शिदाबाद से वरिष्ठï कांग्रेसी नेता अधीर चौधरी ने तो ऐलान कर दिया है कि वे तृणमूल के लिये प्रचार नहीं करेंगे, क्योंकि यह गठबंधन हम लोगों पर थोपा गया है। उनका कहना है कि तृणमूल कांग्रेस का मुर्शिदाबाद में कोई आधार ही नहीं है। अधीर चौधरी की तरह कई और कांग्रेसी नेता भी गुस्से में हैं और उनका रोष ममता पर कम हाई कमान पर ज्यादा है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह तालमेल प्रदीप भट्टïाचार्य, देवी पाल और अब्दुल मन्नान जैसे वरिष्ठï नेताओं को चुनाव में खड़े होने से वंचित कर देगा। उनका कहना है कि वे 294 सीटों वाली विधान सभा में अपने लिये एक तिहाई सीटें यानी 98 सीटें चाहते थे और बाकी दो तिहाई सीटें तृणमूल के लिये छोड़ रहे थे, पर वह उसे मान्य नहीं है। जबकि 2009 के चुनाव में ममता जी ने ऐसा ही वादा किया था। यही नहीं ममता जी ने एक मात्र दलित नेता राम प्यारे राम का भी पत्ता काट दिया जबकि राम प्यारे राम कई बार चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व का कहना है कि चंूकि कोलकाता की 22 सीटें 'डीलिमीटेशनÓ के बाद 11 सीटों में सीमित हो गयीं। अब इसलिये राम प्यारे राम जैसे कई नेताओं को टिकट नहीं दिया जा सका, अब इसमें हाई कमान का क्या दोष? नाराज कांग्रेसी नेता इसे आत्म समर्पण बता रहे हैं जबकि हाई कमान इसे पश्चिम बंगाल की जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप बता रहा है। उधर एस यू सी आई भी ममता जी की हठधर्मिता से नाराज है। उसका कहना है कि यदि ममता जी 5-7 सीटें नहीं दीं तो वह 12 चुनाव क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े करेगा। जो दो सीटें उसे दी गयी हैं वह तो उसी की थीं और उस पर वह दशकों से जीतती आयी है। ममता जी ने पहले ही अपने उम्मीदवारों की सूची की एकतरफा घोषणा कर दीं थीं। उन्होंने 64 सीटें कांग्रेस के लिये छोड़ी थीं। सोमवार को सोनिया गांधी ने इस समझौते के लिये स्वीकृति दी। संभवत: केंद्र में घोटालों और विकीलीक्स के खुलासे से त्रस्त कांग्रेस को यूपीए की सरकार बचाने के लिये ममता के 19 सांसदों का समर्थन पश्चिम बंगाल में पार्टी के आत्मसम्मान से ज्यादा जरूरी लगा होगा। वैसे भी कांग्रेस की मौजूदा ताकत इतनी नहीं है कि वह पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ कर बहुत अच्छा कर सकती हो। वैसे भी अगर माकपा के खिलाफ वह अकेले खड़ी होती तो केरल में भी उस मुश्किलों का सामना करना पड़ता। कांग्रेस के लिये यह कदम उचित था और उसने जो किया वह सबसे अच्छा विकल्प माना जा सकता है।

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