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Saturday, March 26, 2011

तमाशा बनने से बचे संसद




हरिराम पाण्डेय
बुधवार को टेलिविजन पर संसद की कार्यवाही देखकर देश के भविष्य और संसद की सत्ता के प्रति भारी आशंका हो गयी। एक अमरीकी वेबसाइट विकीलीक्स द्वारा पेश किये गये कुछ दस्तावेज को लेकर दोनों पक्ष गुत्थम गुत्था थे। साफ साफ लग रहा था कि हमारी संसद अपरिपक्व लोगों की जमात है जहां इस तरह के कलंकों पर इतनी लम्बी बहस होती है। भय है कि इससे भ्रष्टïाचार को और बढ़ावा न मिले। भ्रष्टïाचार को लेकर देश में कुछ दिन पहले जो बवंडर उठा था उसके फल मिलने लगे हैं। कुछ राजनेताओं को सियासी कीमत चुकानी पड़ी और कुछ लोगों को दंड मिलने की उम्मीद भी है। अभी जांच चल रही है, कानून अपना काम कर रहा है। आशा है इसका भी फल जरूर मिलेगा। लेकिन संस्थागत साख अभी कायम नहीं हो सकी। संसद में भ्रष्टïाचार पर बोलने के लिये जिसे आधार बनाया गया है वह हमारी संस्थागत साख को और कलंकित कर रहा है। इस कलंक से बचने के लिये हमें अधिक कल्पनाशील सकारात्मक रिवाजों की पड़ताल करनी होगी। जिस तरह से विकीलीक्स की रपटों को संसद में तरजीह दी गयी है उससे पूरी दुनिया में भारतीय मखौल बन कर रह गये हैं। नोट लेकर वोट के मसले पर कई गंभीर सवाल हैं लेकिन उस अमरीकी वेबसाइट की रिपोर्ट को इतनी तरजीह देकर आखिर हमारे प्रतिनिधि संसद की गरिमा को क्यों समाप्त कर रहे हैं? यह तो ऐसा लग रहा है कि एक अमरीकी राजनयिक से गपशप को हमारे नेता संसद की कार्यवाही से ज्यादा महत्व दे रहे हैं। इससे क्या संदेश जायेगा?
पहला यह कि हमारे नेता संसद की कार्यवाही के प्रति गंभीर नहीं हैं। वे इसे बाधित करने और उल्टी- सीधी हरकतें करके समय बर्बाद करने का बहाना खोजते रहते हैं। इसमें सबसे अपमानजनक जो बात है विकीलीक्स की रपट में पेश तथ्य नहीं है बल्कि यह है कि किसी भी दल ने चाहे वह भाजपा ही क्यों ना हो ऐसा होने क्यों दिया। अब वे शोर मचा रहे हैं। अब समय की मांग है कि संसद अपने अधिकार का प्रयोग करे। वह निगरानी समितियों को मजबूत करे और उनकी साख को बढ़ाने का बंदोबस्त करे, ताकि विभिन्न मंत्रालय अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में कोताही न बरतें तथा बचने के लिये कोई बाइपास ना खोजें। दूसरी बात कि सांसदों को इसका ख्याल रखना होगा कि यह केवल शिकायतों को सामने लाने वाला मंच नहीं है, बल्कि मंच विधायी कार्यों के लिये है। लम्बित विधायी मामले बढ़ते जा रहे हैं। कोई काम नहीं हो पाता और करदाताओं का लाखों रुपया इसमें फूंका जा रहा है। इनमें तो कई बहुत महत्वपूर्ण भी हैं। शोर शराबा तो चलता रहता है पर इस बीच कोई ऐसी भी स्थिति पैदा करनी जरूरी हो जब सकारात्मक कार्यवाही हो सके, क्यों कि इसमें हमारी समृद्धि छिपी है। लेकिन ऐसा लगता है कि राजनीतिक दलों ने भ्रष्टïाचार पर बहस को विधायी कार्य के बराबर मान लिया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो दुनिया में बड़ी बेइज्जती होगी। कोई तो इस मूर्खता भरी हरकतों से ऊपर उठ कर सही राजनेता की तरह काम करना शुरू करे। क्या जनता का धन बर्बाद करने के लिये वे संसद में जाते हैं। अगर संसद में ही ऐसा होता रहा तो इसका असर अन्य संस्थानों पर भी पड़ेगा। पहला कि कल्पित अपराध का एक वातावरण चारों तरफ बन जायेगा। इससे चार भयानक हानियां होंगी। यहां यह बता देना जरूरी है कि भ्रष्टïाचार पर कड़ाई ना हो इसकी वकालत करना यहां कत्तई इरादा नहीं है, बल्कि कहना यह है कि अगर हर नीतिगत फैसले पर विवाद होगा तो कोई बी निर्णय लेने में सरकार हिचकेगी। हमारे नेता या मीडिया को यह याद नहीं रहता कि नीतिगत निर्णय करना सरकार का अधिकार है। आज हमारे नेता किसी भी नीतिगत फैसले के पीछे भ्रष्टïाचार का शोर केवल इसलिये उठाते हैं कि वह फैसला उन्हें व्यक्तिगत तौर पर या पार्टीगत तौर पर मान्य नहीं है। दूसरी हानि है कि अगर एक कल्पित अपराध का वातावरण रहेगा तो शासन की वैधानिकता समाप्त हो जायेगी और सरकार का कोई बी पुर्जा किसी भी फैसले से बचेगा। यानी यह भ्रष्टïाचार को रोकने के बजाय उसे और प्रश्रय देने लगेगा। आज इसका असर दिखने लगा है। बैंकों से लेकर अफसरों तक का नैतिक बल गिर गया है। तीसरी हानि होगी कि सरकारी संस्थान अपना काम नहीं करने के बहाने खोजेंगे क्योंकि उनके अफसरों को भय रहेगा कि इस तरह सार्वजनिक अपमान उनका भी हो सकता है। इसके कारण संसद सत्य का संधान करने वाली संस्था न होकर अपने सदस्यों या उसके घेरे में आने वाले किसी को भी अपमानित करने वाली संस्था बन जायेगी। भ्रष्टïाचार की परिभाषा है कि अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये अधिकार का दुरुपयोग। लेकिन यहां भ्रष्टïाचार से मुकाबले के नाम पर अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है। सबसे बड़ा भ्रष्टïाचार तो यही है कि हम कुछ करते नहीं दिख रहे हैं और दुनिया के सामने तमाशा बन कर रह गये हैं।

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