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Wednesday, April 27, 2011

बंगाल में सियासत से समाज हार चुका है



हरिराम पाण्डेय
गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने सोमवार को बंगाल में अपने चुनावी भाषण में बंगाल के कानून और व्यवस्था की स्थिति की जमकर आलोचना की और एक तरह से घोषणा कर दी कि बंगाल वाममोर्चा शासन में बर्बाद हो गया है। हालांकि जो आंकड़े दिये गये हैं वे सामाजिक अपराध वैज्ञानिक गवेषणा की कसौटी पर बिल्कुल सही नहीं उतरते हैं लेकिन अपराध तो बहरहाल अपराध है। उन्होंने सियासी झगड़ों और उससे जुड़ी हिंसा का जिक्र किया है। उन्होंने पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार को आड़े हाथ लेते हुए आज कहा कि यह प्रदेश देश के बदतर शासित राज्यों में शामिल है और यहां प्रशासन 'स्तरहीनÓ है। गृह मंत्री की इस टिप्पणी से दो दिन पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि पश्चिम बंगाल कृषि, उद्योग, निवेश, स्वास्थ्य और शिक्षा सहित 'हर क्षेत्रÓ में पिछड़ गया है। चिदंबरम ने रिपोर्टों के हवाले से दावा किया कि वर्ष 2010 में राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष में 204 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से तृणमूल कांगे्रस के 99 और कांग्रेस के 60 कार्यकर्ता थे। उन्होंने कहा कि इस वर्ष पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा में अब तक 26 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें तृणमूल कांग्रेस के 14 और कांग्रेस के चार कार्यकर्ता शामिल हैं। उन्होंने कहा, ''यह कर्ज में डूबे उन प्रदेशों में से एक है जहां आम Ÿोणी के राज्यों में कर - जीडीपी का अनुपात सबसे कम है।ÓÓ चिदंबरम ने कहा कि प्रदेश सीमा से अधिक कर्ज लिये जा रहा है। उन्होंने कहा कि अप्रैल में पश्चिम बंगाल ने खुले बाजार से 3,173 करोड़ रुपये का कर्ज लिया। विख्यात अपराध शास्त्री सैमुअल सोडरमैन के अनुसार किसी व्यवस्था में विकास के थम जाने से अपराध बढऩे लगता है। प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री और पश्चिम बंगाल योजना बोर्ड के सदस्य अजित नारायन बसु का कहना है कि पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार से गांव के गरीबों के आर्थिक विकास में कोई मदद नहीं मिली है। बसु के अनुसार पश्चिम बंगाल के 53. 38 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास कुल कृषि योग्य जमीन में से मात्र 3.29 फीसदी कृषि योग्य जमीन है। यह राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है। राष्ट्रीय स्तर पर 58. 28 फीसदी परिवारों के पास 5. 97 फीसदी कृषि योग्य जमीन है। इसी तरह पश्चिम बंगाल के 13. 24 फीसदी समृद्ध ग्रामीण परिवारों के पास 58. 56 फीसदी कृषि योग्य जमीन है। बसु ने रेखांकित किया है पश्चिम बंगाल में 1992 और 2001 में कृषि मजदूरों को तयशुदा सरकारी मजदूरी की तुलना में क्रमश: 12.3 और 21.5 फीसदी कम न्यूनतम मजदूरी मिलती है। सरकार के अनुसार न्यूनतम मजदूरी का यह आंकड़ा 7,052 करोड़ रुपये होता है। बसु का मानना है दो वर्षों में वाममोर्चा सरकार यदि चाहती तो कृषि योग्य उपलब्ध जमीन में से 143. 69 एकड़ जमीन को 68 लाख किसान परिवारों में बांट सकती थी। यदि ऐसा हो जाता तो इससे समस्त गरीब ग्रामीण परिवारों को गरीबी की रेखा से ऊपर ले जाने में मदद मिलती लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दूसरी ओर गरीबी बढऩे से सांस्कृतिक क्षय आरंभ हो जाता है। जिसका असर जनतांत्रिक परिवेश पर पड़ता है। आज सांस्कृतिक क्षय की अवस्था है। संस्कृति को राजनीति ने हड़प लिया है। सब कुछ राजनीतिक है। राजनीति के अलावा सब बेकार है। यही कारण है कि चुनाव में जो लोग खड़े हो रहे हैं उनमें से बहुतों की पृष्ठïभूमि साफ सुथरी नहीं है। पश्चिम बंगाल में कुल सीटों के उम्मीदवारों में से कम से कम 54 ऐसे हैं जिन पर आपराधिक मामलों में मुकदमा चल रहा है। तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी, सीपीआई-एम सभी के कुछ उम्मीदवार ऐसे हैं। पश्चिम बंगाल में सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर की गयी एक स्टडी में यह बात सामने आयी है। कुल सीटों में से 54 मुकदमे आपराधिक हैं और इनमें से 34 पर गंभीर आरोप हैं। इलेक्शन वॉच के राज्य समन्वयक बिप्लव हालिम के अनुसार इनमें हत्या, हत्या की कोशिश और जबरन वसूली जैसे आरोप शामिल हैं। हालिम ने कहा कि सभी मुख्य पार्टियों ने ऐसे लोगों को टिकट दिया है जिन पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस में 29, बीजेपी में 13, सीपीआई-एम में 10 और कांग्रेस और आरएसपी में एक एक ऐसा उम्मीदवार है। सर्वे में यह भी सामने आया है कि 31 उम्मीदवार करोड़पति हैं और 100 ऐसे हैं जिन्होंने कभी आयकर रिटर्न फाइल नहीं किया। 57 उम्मीदवारों ने पीएएन की जानकारी नहीं दी है। यह राजनीति के अपराधीकरण का छोटा सैंपल है और संकेत देता है कि वाममोर्चे के शासन में सोशल इंटरलॉकिंग कितनी ज्यादा टूटी है। सियासत के प्रहारों से समाज कितनी बुरी तरह क्षत विक्षत हो गया है। आने वाले दिनों में नयी सरकार का यह कत्र्तव्य होना चाहिये कि वह इस स्थिति को सुधारने के लिये जरूरी कदम उठाये।

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