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Saturday, May 21, 2011

विष कुम्भम् पयोमुखम्

हरिराम पाण्डेय
18 मई 2011
पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों से लगातार हथियारों के भंडार मिल रहे हैं। पहले केवल कहा- सुनी की बातें थीं कि यहां हथियार जमा किये जा रहे हैं पर अब जब उन्हें पुलिस बरामद कर रही है तो लोग दांतों तले उंगली दबा रहे हैं। हथियारों के इतने बड़े जखीरे और इस संख्या में सबको हैरत में डालने वाले हैं, क्योंकि सियासी मदद और पुलिस तथा जिला प्रशासन के सहयोग के बिना इस तरह के शस्त्र इतनी बड़ी संख्या में जमा करना नामुमकिन था। सत्ता का रंग बदलते ही रोजाना सुनने में आ रहा है कि हथियार बरामद किये गये। जन कल्याण का दिन- रात ढिंढोरा पीटती माकपा का ऐसे कार्यों में सहयोग देना 'विष कुम्भम् पयोमुखम्Ó वाली कहावत चरितार्थ करती है। पुलिस अचानक हरकत में आ गयी है। पुलिस अचानक इस स्तर तक सक्षम हो जायेगी, यह बात गले नहीं उतरती। मतलब साफ है कि पुलिस को सब मालूम था कि हथियारों के भंडार कहां हैं पर चूंकि उसे हुक्म नहीं था कि उन्हें हाथ लगाये तो वह चुपचाप थी, क्योंकि ये हथियार कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के काडरों ने ही जमा किया हुआ था और वे ही इसका इस्तेमाल करते थे और भविष्य में करने वाले थे। अचानक चुनाव ने सारा गुड़ गोबर कर दिया। इसमें जो सबसे खतरनाक तथ्य है कि पार्टी ने, जो कि खम ठोंककर खुद को ग्रास रूट स्तर की पार्टी कहती थी उसने हथियारों के भंडार बनने दिये। यहां यह कहने का इरादा बिल्कुल नहीं है कि अन्य पार्टियां हथियारों या 'ग्रे ऐटिट्युडÓ से अलग हैं और वे नाजायज हथियारों का इस्तेमाल नहीं करतीं, लेकिन दोषी माकपा ही कही जायेगी, क्योंकि वह सत्ता में थी। यदि माकपा निर्दोष होती अथवा उन हथियारों की मुखालिफ होती तो पुलिस पर दबाव देकर हथियार बरामद करवा सकती थी और उसकी सप्लाई रुकवा सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। क्यों? सरगोशियां तो हैं कि माकपा के कुछ बड़े नेता और काडर जिहादी आतंकियों तक को हथियारों की सप्लाई करते थे। हथियारों के सम्बंध में नयी सरकार के सामने स्पष्टï लक्ष्य है कि वह न केवल इन्हें बरामद करे तथा भंडारों को नष्टï करे, बल्कि उनकी आपूर्ति के स्त्रोत को भी बंद कर दे। साथ ही उन सभी लोगों को पकड़ कर दंडित करे जो इसमें शामिल थे। इसके लिये किसी के राजनीतिक रंग को ना देखा जाय। यह तभी संभव होगा जब जिला प्रशासन और पुलिस को खुली छूट देनी होगी। उस पर राजनीतिक लगाम नहीं होनी चाहिये। नयी सरकार पुलिस को ताकीद कर दे कि वह सत्ताधारी दल की न ठकुरसुहाती करे और ना सत्ता से गवां बैठे लोगों पर बेवजह सख्ती करे। अभी जो कानून हैं और जो व्यवस्था है अगर उसमें पुलिस और प्रशासन निष्पक्ष हो कर काम करे तो कम से गैरकानूनी हथियारों का आतंक खत्म हो जायेगा। पश्चिम बंगाल में नयी सरकार को अभी बहुत कुछ करना है इसलिये हथियारों का टंटा खत्म कर दूसरी दिशा में कदम उठाने जरूरी होंगे। हथियार चूंकि खतरनाक इरादों से जमा किये गये थे इसलिये समय रहते उसके हर पहलू की जांच कर दोषियों को दंडित करना जरूरी है वरना आगे न केवल काम करने में कठिनाई होगी बल्कि व्यापक खून खराबे की आशंका भी है।

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