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Wednesday, May 25, 2011

एक और हरित क्रांति की जरूरत


हरिराम पाण्डेय
24.05.2011
हाल ही में देश की तेल बेचने वाली कंपनियों द्वारा पेट्रोल के दामों में की गयी 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी देश के करोड़ों लोगों को भारी पड़ रही है। पिछले एक वर्ष में 11 बार पेट्रोल के मूल्यों में थोड़ी-थोड़ी बढ़ोतरी के बाद इस बार सबसे अधिक मूल्य वृद्धि महंंगाई की आग में घी का काम कर रही है। इतना ही नहीं सरकार द्वारा डीजल और रसोई गैस के दामों की वृद्धि की तैयारी ने आम आदमी के चेहरे पर महंंगाई की चिंताओं को बढ़ा दिया है। निश्चित रूप से वैश्विक बाजार में बढ़ते हुए तेल मूल्यों से भारत का तेल बाजार भी प्रभावित हो रहा है। महंंगाई को रोकने की कुछ बुनियादी जरूरतों पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। पिछले दिनों वल्र्ड डेवलपमेंट मूवमेंट (डब्ल्यूडीएम) की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत सहित पूरी दुनिया में खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों के लिए दुनिया के तीन सबसे बड़े सट्टेबाज बारक्लेज कैपिटल, गोल्डमैन सैन्स और मॉर्गन स्टैनली जिम्मेदार हैं। इन सट्टेबाजों की मुनाफाखोरी के चलते थालियों में रोटियों की कमी के कारण करोड़ों लोग भूख एवं कुपोषण से जूझ रहे हैं।
देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ रहा है। एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) ने अपनी अप्रैल 2011 की अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर चेतावनी दी है कि भारत में अनाज की कीमतों में 10 प्रतिशत उछाल आ जाने से ही भारत के ग्रामीण इलाकों में 2.30 करोड़ और शहरी इलाकों में 66.80 लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे। अगर अनाज की कीमतें 20 प्रतिशत बढ़ती हैं तो ग्रामीण इलाकों में 4.56 करोड़ और शहरी इलाकों में 1.33 करोड़ भारतीय बुरी तरह प्रभावित होंगे। एडीबी ने कहा कि गरीब अपनी आय का 60 प्रतिशत से ज्यादा अनाज पर खर्च करता है। अगर अनाज के दाम और बढ़े तो करोड़ों परिवारों में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा के लिए उसके पास थोड़े पैसे भी नहीं बचेंगे।
मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया तथा वित्त मंत्रालय को और कठोर कदम उठाने होंगे। पिछले दो वर्षों में रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के सारे प्रयासों के बाद भी इस समय खाद्य मुद्रास्फीति उच्चस्तर पर बनी हुई है। बहरहाल, रिजर्व बैंक ने अब तक ब्याज दरों में वृद्धि के जो छोटे कदम उठाए हैं वे बेबी स्टेप ही कहे जा सकते हैं। इनसे महंंगाई नियंत्रण पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है। लिहाजा अब वित्त मंत्रालय एवं रिजर्व बैंक की ओर से बड़े कदम उठाने की उम्मीद की जा रही है। देश में महंंगाई पर नियंत्रण और बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्यान्नों की बढ़ती मांग को पूरा करने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन के लिए भी देश में कृषि क्षेत्र के कई मोर्चों पर जूझकर कृषि की वृद्धि दर बढ़ाने की जरूरत है। आंकड़े बताते हैं कि पहली पंचवर्षीय योजना यानी 1950-51 से लेकर 2010-11 तक जीडीपी की वृद्धि दर 300 प्रतिशत रही, लेकिन कृषि क्षेत्र की वृद्धि सिर्फ 75 प्रतिशत रही है। ऐसे में कृषि क्षेत्र में एक और हरित क्रांति की जरूरत है।

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