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Wednesday, June 1, 2011

हेडली के बयानों के बाद भारत के पास विकल्प


हरिराम पाण्डेय
27.05.2011
शिकागो की एक अदालत में लश्कर-ए- तायबा के शिकागो सेल के डेविड हेडली का तहव्वुर राना के मामले में बयान को भारत और कनाडा में काफी तरजीह दी गयी। पाकिस्तान में उस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया। पाकिस्तान में अगर उस पर बातें भी हुईं तो केवल गवाह की हैसियत से वह कितना सही है, इसी पर बातें हुईं। राना के वकील ने हेडली की विश्वसनीयता पर संदेह उठाया और कहा कि चूंकि हेडली नारकोटिक्स का तस्कर है और धन के मामले में विश्वसनीय नहीं है इसलिये उसकी गवाही सच नहीं कही जा सकती है। पाकिस्तान में अखबारों ने इसी मुद्दे को काफी उछाला। अब यह नहीं कहा जा सकता है कि डेनमार्क के अखबारों में क्या छपा है। राना पर दो आरोप हैं। पहला मुम्बई हमले के लिये माल इत्यादि सप्लाई करने का और दूसरा डेनमार्क में विस्फोट की साजिश का। हालांकि यह साजिश नाकाम हो गयी थी। राना पर आरोप है कि उसने हेडली के लिये मुम्बई आने का टिकट खरीदा था और उसे अपनी फर्म राना इमिग्रेशन कंसल्टेंसी का मुलाजिम बता कर उसके लिये मुम्बई में दफ्तर खोलने की सहूलियत मुहय्या करायी थी ताकि वह आई आई एस आई के लिये उचित सूचना एकत्र कर सके और लश्कर को हमले के लिये तैयार कर सके। हेडली की गवाही और उसे बल देने वाले सबूतों पर राना के मुकदमे पर निर्णय के समय अदालत यकीनन विचार करेगी। उधर फेडरल ब्यूरो ने यह बंदोबस्त किया हुआ है कि जब हेडली के खिलाफ मुकदमे की सुनवायी शुरू हो तो वह सहयोग करे। वैसे भी इस मामले में न राना मुख्य आरोपी है और ना हेडली। मुख्य आरोपी हैं साजिद मीर, अबू काहफा, मेजर इकबाल,मेजर अब्दुल रहमान हाशिम और सैयद उर्फ पाशा। ये सभी पाकिस्तान में रह रहे हैं और अमरीका सरकार अथवा एफ बी आई ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की या पाकिस्तान पर दबाव डाला है कि बे इन्हें एफ बी आई को सौंप दे ताकि राना या हेडली के साथ उनपर भी मुकदमा चलाया जा सके। इतना ही नहीं वहां इन्हें सह अभियुक्त बनाया गया है। पूरे मामले का बारीकी से विश्लेषण करने से कुछ बड़े दिलचस्प तथ्य सामने आते हैं। जैसे कि हेडली को प्रोत्साहित किया गया है कि वह लश्कर तथा राना के रिश्तों की पोल खोले। कुछ भी ना छिपाये। उसका यह उद्देश्य था कि भारत को खुश किया जा सके। इसी के साथ उसने पाकिस्तान पर भी कोई दबाव नहीं दिया कि वह उन अभियुक्तों को सौंप दे ताकि वह शर्मसार होने से बच जाय। इस मामले में अमरीका की भूमिका संदेहास्पद है। इसलिये भारत को उसका मुंह जोहना छोड़ कर राष्टï्र संघ सुरक्षा परिषद का दरवाजा खटखटाना चाहिये। उसे राष्टï्रसंघ सुरक्षा परिषद के संकल्प 1373 के तहत गठित आतंकवाद मॉनिटरिंग समिति में मांग करनी चाहिये कि वह आई एस आई पर कार्रवाई करे। क्योंकि यह उस संकल्प का सरासर उल्लंघन है। हो सकता है कि चीन के वीटो के कारण राष्टï्रसंघ में मामला चले नहीं। लेकिन भारत को अपनी कोशिश नहीं छोडऩी चाहिये। भारत को सभी सबूत पेश कर यह दबाव बनाना चाहिये कि अमरीका आई एस आई पर उसी तरह का एक्शन ले जिस तरह 1988 में पैन अमरीकन विमान पर लीबियाई खुफिया संगठन की कार्रवाई के खिलाफ लिया था। अगर भारत यह मौका चूकता है तो पाकिस्तान उसे 'साफ्ट स्टेटÓ मानेगा और हर दो- चार साल के बाद हमारी धरती पर धमाके होंगे और निर्दोष भारतीयों का खून बहेगा।

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