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Wednesday, June 1, 2011

भारत को भी पाक में घुसकर आतंकियों को मारना होगा

हरिराम पाण्डेय
1.06.2011
दो खबरें एक पाकिस्तान से और एक हिंदुस्तान से। दोनों देश आतंकवाद से पीडि़त हैं। पाकिस्तान से खबर है कि अमरीका ने फिर पाक में! घुसकर कार्रवाई की और पांच आतंकियों को उठा ले गया। भारत से खबर है कि नयी दिल्ली में भारत और जर्मनी ने आतंकवाद से मिलकर लडऩे का समझौता किया है। दानों खबरों में एक तथ्य गौर करने के काबिल है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी के भरोसे या किसी के सहयोग से नहीं लड़ी जा सकती है। अपने में कुव्वत है तो घुसकर मारें वरना इधर- उधर रिरियाते फिरें। इस परिदृश्य में भारत की क्या भूमिका है? जो दुनिया में आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीडि़त है और जहां पिछले 20 सालों में आई एस आई के एजेंटों द्वारा 80 हजार से अधिक भारतीयों की हत्या की जा चुकी है। उस देश को आतंकवाद के विरुद्ध सबसे अधिक सक्रिय और आक्रामक होना चाहिए था। लेकिन अमरीका वह कर रहा है जो भारत को करना चाहिए था। विडम्बना यह है कि जिस प्रकार की छद्म सेकुलर तथा वोट बैंक की राजनीति भारत में है उसे देखते हुए संदेह होता है कि सरकार कुछ कर पायेगी। जो सरकार संसद पर हमले के अपराधी अफजल तक को फांसी देने से कतरा रही है वह भारत पर हमला करने वाले आतंकवादियों को विदेश में ढूंढ़कर उन्हें खत्म करेगी, ऐसा क्या विश्वास किया जा सकता है?
अमरीका के पाकिस्तान में घुसकर हमले करने के बाद अब विश्व राजनीति के समीकरण तथा भारत की कूटनीति भी बदलेगी। यह समय है जब भारत को पाकिस्तान के प्रति सुनियोजित आक्रामकता के साथ आतंकवाद बढ़ाने में उसकी भूमिका के प्रति विश्व जनमत मजबूत बनाना होगा। पाकिस्तान दुनिया की सबसे बड़ी आतंकवादी फैक्ट्री बन गया है। उसके पास परमाणु बमों का जखीरा भी है। इसलिए भारत को तुरंत मांग करनी चाहिए कि अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देश पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति बदलें और उसे अधिक डॉलर अनुदान देने के बजाय उसे आतंकवादी देश घोषित किया जाए।
विगत आठ वर्षों में अमरीका पाकिस्तान को 18 अरब डॉलर की सहायता दे चुका है। यह सहायता न केवल पाकिस्तान में भारत विरोधी तत्वों को मजबूत करने में इस्तेमाल हुई बल्कि इससे पाकिस्तान में एक ऐसे डॉलर पोषित वर्ग का निर्माण किया जो सेना समर्थक, सामंतशाही का प्रतिनिधित्व करता है और जिसकी पाकिस्तान के आम आदमी की तरक्की और खुशहाली और लोकतंत्र में कोई दिलचस्पी नहीं है। यही वर्ग एक ओर अमरीका से डॉलर प्राप्त करता है दूसरी ओर आतंकवादियों को भी प्रोत्साहन और संरक्षण देता है। इसलिए सबसे बड़ी जरूरत तुरंत पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर राष्टï्रसंघ का अमरीकी देख-रेख में नियंत्रण करवाने की जरूरत है। जब तक भारत और अमरीका मिलकर बराबर की साझेदारी में आतंवाद के विरुद्ध युद्ध को तार्किक परिणति तक नहीं ले जाते तब तक आतंकवाद का निर्मूलन संभव नहीं हो सकता। एक ओर अमरीका अपने पर हमला करने वालों को छावनी में घुसकर पाकिस्तान की इजाजत की परवाह किए बिना आतंकियों को मारकर दुनिया में वाहवाही लूटता है। दूसरी ओर वही अमरीका भारत के विरुद्ध पाकिस्तानी आतंकवाद को नजरअंदाज करते हुए भारत पर दबाव बनाता है कि वह पाकिस्तान से शांतिवार्ता करे। आने वाले समय में पाकिस्तान के प्रति अमरीकी दृष्टिकोण में परिवर्तन की बहुत उम्मीद नहीं है। वैसे भी पाकिस्तान सम्प्रभुता सम्पन्न देश रह ही कहां गया है। उसे अमरीका का 53 वां राज्य माना जाता है। शेष प्रभाव चीन का है जिसकी फौजें गिलगित और बाल्टिस्तान तक में विभिन्न बहानों से उपस्थित हैं। इसलिए कोई साथ दे या न दे भारत को आतंकवाद के विरुद्ध अपनी लड़ाई अपने कंधों और अपनी शक्ति के बल पर ही लडऩे की तैयारी करनी होगी। ऐसी परिस्थिति में आतंकवाद के विरुद्ध एक सर्वदलीय राष्टï्रीय नीति बनाने की आवश्यकता है।

1 comments:

Smart Indian said...

जब जहाज़ अपहृत हुआ तब प्रशासनहीन अफगानिस्तान में घुसकर नहीं मार पाये तो फिर एक सम्प्रभुतासम्पन्न देश में घुसकर मारने की बात सोचना एक मज़ाक सा ही है।