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Tuesday, July 26, 2011

सपनों को हकीकत में बदलने का वायदा



हरिराम पाण्डेय
22 जुलाई 2011
अल्फ्रेड टेनिसन ने कहा था
'वहां तक मैने भविष्य को निरखा,
इंसानी आंखों से सम्भव हो सकता है जहां तक ,
और उस विश्व के दर्शन किये, वे सारे अजूबे देखे,
जो कभी हकीकत बन जाएंगेÓ

यहां के मशहूर ब्रिगेड परेड ग्राउंड में गुरुवार को पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की विशाल सभा में उनके भाषण में विकास के सपने नहीं दिखे बल्कि विकास की शपथ और प्रतिबद्धता दिखायी - सुनायी दी। सपनों को हकीकत बनाने का अहद महसूस हुआ। सुबह से तेज बारिश और मैदान में घुटनों तक कीचड़ के बावजूद राज्य भर से आए लाखों लोगों की उस सभा में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नया चेहरा दिखा। मर्दों की किसी भी सीढ़ी के सहारों के बिना फकत परिवर्तन के नारे के जरियेे अपराजेय समझे जाने वाले वाममोर्चे के दुर्ग को ध्वस्त कर देने के दो महीने बाद हुई सभा ने साफ तौर पर ममता की विकास की तड़प को महसूस किया। लगभग 35 मिनट चले अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने पिछले दो महीनों में सरकार की उपलब्धियों का जिक्र किया। आने वाले दिनों में राज्य सरकार की ओर से उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी दी। उनके सम्पूर्ण भाषण को अगर संक्षेप में कहा जाय तो उसमें 'गरीबी और अज्ञान के अंत तथा बीमारी एवं अवसरों की विषमताओं के उन्मूलन की प्रतिज्ञा थी।Ó ममता जी की सभा पूर्ववर्ती शासन की सभाओं से भिन्न थी, क्योंकि वह नेताओं के आश्वासन और बड़बोले नारों को सुनने के लिये जुटाई गयी भीड़ नहीं थी बल्कि वह सत्ता से जनता के संवाद का 'स्पेस Ó था और वहां लोक मतदाता नहीं था , वह तंत्र का परीक्षक था। जिन्होंने इतिहास पढ़ा हैै, वे जानते होंगे कि भारत में महात्मा गांधी के पहले आंदोलन में शरीक चंपारण के निलहे किसानों में लगभग यही भाव था। वे गांधी समर्थक नहीं थे उनके परीक्षक थे। ममता जी की सभा में उपस्थित समुदाय में भी यही भाव था। पिछले बीस वर्षों में पहली बार दिखा कि राज्य में सत्ता के शीर्ष से 'इंटरएक्शनÓ के लिये एकत्र भीड़ इतनी अनुशासित और स्वत:स्फूर्त थी। इसका मुख्य कारण था कि उस भीड़ में सत्ता से सम्पर्क का सामूहिक दंभ नहीं था, उसमें सत्ता के प्रति जिम्मेदारी का बोध था। वहां उपस्थित समुदाय के माध्यम से उन्होंने राज्य की जनता से कहा कि वह इस बात का ध्यान रखे कि उसे माकपा की राह पर नहीं चलना है। ममता जी ने अपने दो माह के कार्यकाल में किये गये कार्यों का जिक्र करने से पहले परिवर्तन का एक बेहतरीन चाक्षुष बिम्ब प्रस्तुत किया। आकाश की ओर हाथ उठा कर कहा 'सभा से पहले घने बादल और तेज बारिश थी और सभा के दौरान बादल छंट गये, बारिश थम गयी और धूप निखर गयी, इसी को कहते हैं परिवर्तन।Ó उन्होंने दो महीनों के शासन काल में जो कुछ भी किया वह इतना स्पष्टï और प्रत्यक्ष है कि उसका यहां जिक्र जरूरी नहीं है। इससे अलग उन्होंने जो वायदे किये उसके बारे में बताना प्रासंगिक होगा। उन्होंने वायदा किया कि वे तीन साल में राज्य के हर गांव में बिजली पहुंचा देंगी, दुर्गापुर, आसनसोल तथा उत्तर व दक्षिण 24 परगना में बनेगी कमिश्नरी, नये जिलों का गठन होगा , नए थाने बनेंगे , पुलिस का आधुनिकीकरण होगा, अगले दो साल में बुनियादी सुविधाओं के विकास, औद्योगीकरण की प्रक्रिया में तेजी लायी जायेगी, रोजगार के अवसर सृजित किये जाएंगे, बालूरघाट , मालदह, हल्दिया, दीघा , सुंदरवन को हवाई यातायात से जोड़ा जायेगा।Ó ये वायदे बेशक महत्वाकांक्षी हैं और लुभावने भी लेकिन ममता जी के अब तक के ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए यह यकीन करने में कोई दिक्कत नहीं है कि वे इन्हें हकीकत में बदल सकती हैं। ममता जी के भाषण और वहां एकत्र भीड़ तथा राज्य भर में टी वी से चिपके लाखों लोगों के रेस्पांस को देखते हुए सहज ही कहा जा सकता है कि उनसे आम जन को बड़ी उम्मीदें हैं। पूर्ववर्ती सरकार ने यहां की जनता के भरोसे और उसके जायज विरोध की उर्जा को दुरभिसंधि के बल पर नियंत्रित कर अपने सियासी एजेंडे को पूरा करने के लिये निष्क्रिय कर दिया था। नतीजा हुआ कि राज्य की कार्मिक दक्षता और कार्यसंस्कृति दोनों पंगु हो गयी और आर्थिक स्थिति तार- तार हो गयी। ममता जी ने उस उर्जा को नियंत्रणहीन तो नहीं किया , उन्होंने उसे सकारात्मक दिशा में निर्देशित करना शुरू कर दिया है। अगर वे कार्य संस्कृति का पुनरुद्धार कर सकीं तो यकीनन 'वेस्ट बंगाल Ó जल्दी ही 'बेस्ट बंगालÓ बन जायेगा।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये

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