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Sunday, July 17, 2011

ऐसा केवल हमारे ही देश में होता है


हरिराम पाण्डेय
16जुलाई 2011
पाकिस्तान में जिस दिन अमरीकी सेना ने ओसामा बिन लादेन को मारा था उसी दिन से यह लगने लगा था कि अमरीका से बदला लेने के लिये मुम्बई की घटना की तरह कोई घटना हमारे देश में होगी। क्योंकि हेडली के मामले से यह साबित हो चुका है कि भारत पर हमले के लिये अल कायदा या लश्कर ए तायबा को आई एस आई की मदद मिल सकती है। वैसे भी पाकिस्तान भारत को अमरीका का समर्थक मानता है। सरकार को मालूम है कि यह गुनाह किसने किया है पर वह कुछ नहीं कहेगी। विदेश मंत्रालय पाकिस्तान सरकार को एक नरम टिप्पणी भेजेगा और दो एक दिन में गृह मंत्रालय किसी हिंदू संगठन, खास कर राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ, की ओर इशारा करेगा और बात खत्म हो जायेगी। वैसे कांग्रेस के बड़बोले नेता दिग्विजय सिंह ने कुछ इसी तरह कहना शुरू भी कर दिया है। तत्पश्चात धर्म निरपेक्षता की दुहाई देती हुई कांग्रेस साम्प्रदायिकता की भत्र्सना करेगी और फिर सबकुछ सामान्य हो जायेगा। असली दुश्मन से मुकाबले से अच्छा, सहज और सुरक्षित है आर एस एस से लडऩा, इससे चुनाव जीतने में भी सुविधा होगी। सच तो यह है कि पाकिस्तान कुछ सरकारी और कुछ आतंकियों के सहयोग से ऐसे हमले करवा सकता है। शिकागो की अदालत में हेडली- राना की गवाहियों से यह साबित भी हो चुका है। इनसे मुकाबले में भारत अभी भी बेअसर रहा है। विदेश में छिपे आतंकियों ,अपराधियों को पकडऩे के सीबीआई के विभिन्न प्रयासों से हमें यह कई बार देखने को मिला है कि जब मौका आता है तो सीबीआई के कागजात अधूरे होते हैं या पुराने होते हैं। अपराधी चंगुल से निकल जाता है। हमारा विदेश विभाग उन अपराधियों को पनाह देने वाले देशों को एक कड़ा पत्र लिखता है जिसे वह देश बिना पढ़े रद्दी की टोकरी में डाल देता है। अब सवाल उठता है कि क्या कारण है कि भारत इतना नम्र है और क्यों वह अपने अंदरूनी सियासी झगड़ों - कांग्रेस बनाम भाजपा -को निपटाने के लिये इतना बेचैन रहता है। 26/ 11 के हमले के बाद यह घोषणा की गयी थी कि वी आई पी लोगों को बेवजह मिली जेड सुरक्षा हटा ली जायेगी ताकि आम जनता की सुरक्षा के लिये साधन हासिल हो सके। पर यह कभी क्रियान्वित नहीं हुआ। पुराने महाराजाओं की तरह लाल बत्ती का लोभ हमारे नेताओं में वर्तमान में है। बेशक जनता मारी जाये पर नेताओं की सुरक्षा हो। उन्हें यह भी फिक्र नहीं है कि जनता को मरते समय भी यह इतमीनान हो जाय कि हमारी सुरक्षा के लिये जितना हो सकता था नेताओं ने किया। 26/11 की घटना के बाद कुछ भी तो नहीं सुधरा। पता नहीं कितनी जानें जाएंगी तब सरकार को यह अहसास होगा कि इन फालतू नेताओं से आम जनता का मोल ज्यादा है। जब 26/11 की घटना हो रही थी तो सरकार को इस बात की फिक्र सता रही थी कि मुम्बई में कहीं साम्प्रदायिक दंगा ना शुरू हो जाय। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मुम्बई की जनता ना केवल समझदार है बल्कि यह भी जानती है कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन। हेडली- राणा की गवाही से साफ जाहिर हो गया है कि ऐसे जुल्म कौन करवाता है। अमरीका भी हकीकत जानता है।
ऐसा नहीं है कि इससे भी हमारी सरकार कुछ सीखेगी और इस तरह की घटना दुबारा नहीं होगी। यह तय है कि फिर हमले होंगे और फिर इसी तरह हिंदू संगठनों पर तोहमतें लगेंगी। सरकार को इस बात की फिक्र होगी कि कहीं साम्प्रदायिक दंगे ना हो जाएं। सरकार अपनी जनता की हिफाजत नहीं कर पा रही है। सरकारी स्कूलों की तरह सरकारी सुरक्षा व्यवस्था भी नकारा हो चुकी है और ऐसा केवल भारत में ही होता है।

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