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Tuesday, August 2, 2011

अण्णा संसद को पहले अपना काम तो करने दें

हरिराम पाण्डेय
31 जुलाई 2011

सरकार ने अण्णा हजारे के अनशन पर रोक लगाने के लिये कई तरह की अड़चनें लगा दीं। उसे भी शायद लग रहा था कि अगर अण्णा हजारे को अनशन करने दिया गया तो समस्या जटिल हो जायेगी। अतएव टीम अण्णा से कहा गया कि वो जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन के लिए पहले नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लें। जंतर मंतर पर अनशन के लिए अटल अण्णा हजारे ने सरकार को चुनौती दी है कि वो हर कीमत पर आंदोलन के लिए तैयार हैं। वहीं अनशन की इजाजत देने से मना कर मुसीबत मोल लेने वाली दिल्ली पुलिस बचाव की मुद्रा में आ गयी है। पुलिस ने टीम अण्णा को चि_ी लिखकर कहा है कि यदि उनका अनशन सिर्फ एक दिन का हो और इस दौरान 2000 से अधिक लोग जमा नहीं हों तो उन्हें प्रदर्शन की इजाजत दी जा सकती है। मजबूत लोकपाल की मांग को लेकर 16 अगस्त से जंतर-मंतर पर अनशन की तैयारियों में जुटे अण्णा हजारे को दिल्ली पुलिस ने इससे पहले साफ कह दिया था कि वह जंतर-मंतर पर बेमियादी अनशन नहीं कर सकते। पुलिस ने उनसे कहा कि या तो वह अपने आंदोलन के लिए दिल्ली के बाहर कोई जगह चुन लें या फिर पहले से कार्यक्रम बता कर आंदोलन के लिए इजाजत मांगें। संसद के मानसून सत्र के दौरान सदन के आसपास अण्णा धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकें, इसके लिए धारा 144 लागू करने के आदेश भी दिये गये हैं। लेकिन अण्णा का कहना है कि शांतिपूूर्वक प्रदर्शन करना उनका हक है और वह मनाही के बावजूद अनशन करेंगे।
यह नहीं पता कि बीजेपी और अन्य दलों का लोकपाल बिल के मामले में क्या रुख है। बिल संसद में आयेगा तभी पता चलेगा। लेकिन उससे पहले अण्णा हजारे के अगले कदम का इंतजार है। उम्मीद है कि अण्णा की टीम सुप्रीम कोर्ट में जायेगी और शांतिपूर्ण तरीके से प्रतिवाद करने के अपने अधिकार की बहाली की मांग करेगी। यह सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही सक्रिय होती है। अब सवाल उठता है कि अण्णा हजारे को भी 16 अगस्त से फिर से आंदोलन करने की आवश्यकता क्यों लग रही है? यह सही है कि उन्होंने कहा था कि यदि 15 अगस्त तक लोकपाल विधेयक पारित नहीं होता है तो वे फिर से आंदोलन की राह अपनाएंगे, लेकिन क्या यह भी सही नहीं है कि सरकार ने संसद के मानसून सत्र में ही लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करना स्वीकार कर लिया है? यही नहीं, सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने मजबूत लोकपाल विधेयक का समर्थन करने की शपथ भी ली है। बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया कि संसद के अगले सत्र में मजबूत और प्रभावकारी लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा। हां, प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि विधेयक प्रस्तुत करने का यह काम निश्चित प्रक्रियाओं के अनुसार ही किया जायेगा।
इस घोषणा के बाद लोकपाल विधेयक को लेकर किसी आंदोलन की बात का कोई अर्थ नहीं रह जाता। हां, यदि विधेयक पारित होने के बाद अण्णा हजारे के प्रतिनिधित्व वाली सिविल सोसायटी को अथवा अन्य किसी को भी यह लगता है कि पारित विधेयक अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है और अपर्याप्त है तो उसे इस बात का पूरा अधिकार है कि वह अपनी बात के समर्थन में जनमत बनाने की कोशिश करे।
यह बात सही है कि सिविल सोसायटी द्वारा प्रस्तावित लोकपाल विधेयक और सरकार द्वारा रखे गए विधेयक में अंतर है, लेकिन यह नहीं भुलाया जाना चाहिए कि विधेयक पर संसद में बहस होनी है। निश्चित रूप से बहस के दौरान अभी कई संशोधन और रखे जाएंगे और निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार ही कानून बनेगा। ऐसी स्थिति में किसी आंदोलन की धमकी देने के बजाय अण्णा हजारे और उनके सहयोगियों को अपने प्रस्तावित विधेयक के समर्थन में जनमत तैयार करना चाहिए। इस जनमत के जरिए सरकार और सभी राजनीतिक दलों पर यह दबाव बनाना चाहिए कि जो मजबूत और प्रभावकारी लोकपाल विधेयक वे पारित करना चाहते हैं, वह जनमत के अनुरूप हो। दुर्भाग्य से यह जनमत बनाने की कोई कोशिश होती नहीं दिखायी पड़ रही। बहरहाल, जहां तक लोकपाल विधेयक का सवाल है, एक मजबूत और प्रभावकारी विधेयक का पारित होना आज की जरूरत है। लेकिन कोई भी कानून स्वीकृत जनतांत्रिक प्रक्रिया से ही पारित होना चाहिए। यह काम संसद का है। संसद को ही इसे अंजाम देना होगा। सिविल सोसायटी को यह भी देखना चाहिए कि हमारे सांसद जनहित के मुद्दों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचें। वे जन जागृति के लिए आंदोलन चलाएं, राजनेताओं को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए आंदोलन चलाएं। अण्णा, 16 अगस्त को ऐसा आंदोलन शुरू करें, तो पूरा देश उनके साथ होगा।

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