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Sunday, September 18, 2011

'कहीं यह कोई साजिश तो नहीं


हरिराम पाण्डेय
16 सितम्बर 2011

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नरेन्द्र मोदी की जीत बताया जा रहा है पर वास्तव में यह राहत भर है। गुजरात में 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक विशेष खंडपीठ के सोमवार के फैसले से भारतीय जनता पार्टी में एक नये उत्साह का संचार करने की कोशिश की जा रही है और इसे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र्र मोदी की जीत के रूप में निरूपित किया जा रहा है। इसी के साथ अचानक अमरीकी कांग्रेस की रिपोर्ट कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री पद के जबरदस्त प्रत्याशी हैं और अगले चुनाव में उनमें तथा राहुल गांधी में टक्कर होगी। भाजपा दोनों स्थितियों को मिला कर कुछ इस तरह प्रचारित कर रही है कि बस वह छा गयी भारतीय समाज पर। यह एक खास किस्म के प्रोपगैंडा की तकनीक है।
अमरीकी रपट के सामाजिक मनोवैज्ञानिक प्रभाव का विश्लेषण तो आगे करेंगे मगर मोदी के संबंध में अदालत का फैसला, यह न तो मोदी की जीत है और न ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कोई क्लीन चिट दी है। यह ज्यादा से ज्यादा मोदी को मिली एक राहत है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी की याचिका पूरी तरह रद्द नहीं की है बल्कि गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी और उनके सहयोगियों की भूमिका की जांच का जिम्मा अहमदाबाद की निचली अदालत को सौंप दिया है। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आर के राघवन के नेतृत्व में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट और इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) की रिपोर्ट को भी निचली अदालत को सौंपने का आदेश दिया है। जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में इस संदेह के आधार पर याचिका दायर की थी कि गुजरात में जिस तरह से गवाहों पर दबाव डाला गया है और सबूतों को नष्ट किया गया है, उसे देखते हुए संभवत: उन्हें न्याय न मिले और मोदी तथा उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच न की जाए। जाहिर है, एसआईटी मोदी से पूछताछ कर चुकी है। इसलिए अब अहमदाबाद की निचली अदालत एसआईटी की रिपोर्ट और एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए ही यह फैसला करेगी कि मोदी और उनके सहयोगियों के खिलाफ मामला चलाया जाए या नहीं और जांच आगे हो या नहीं। खुदा न खास्ता अगर अदालत मोदी एवं दूसरों के खिलाफ मामला बंद करने का फैसला करती है तो उसे पहले जकिया जाफरी का पक्ष सुनना होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा स्पष्ट आदेश भी दिया है। यानी मामला फिर से निचली अदालत में चला गया है मगर कुछ नए आदेशों-निर्देशों के साथ। तो इसे कैसे मोदी की जीत मान लिया जाए? हां, अगर यह राहत है तो इस अर्थ में कि न्यायिक प्रक्रिया और लंबी हो गयी है। हमारे यहां न्याय में देरी के कारण ही लोगों को न्याय नहीं मिल पाता। बहरहाल, मोदी को एक न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही मिली राहत से भाजपा के लोग फूल कर कुप्पा हो गये हैं। वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी उनके सुशासन के गीत गा रहे हैं और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता अरुण जेटली कह रहे हैं कि कांग्रेस को मोदी के खिलाफ प्रोपेगेंडा बंद कर देना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो यहां तक कह दिया है कि यह भाजपा तय करेगी कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जाए या नहीं। भाजपा बेहद जल्दी में है, इतनी जल्दी में कि अपने नेता को जरा सी राहत मिलने को ही वह अपनी जीत बता रही है, मानो इस आदेश के बाद मोदी पर लगे सारे आरोप अपने आप खत्म हो गए हों। क्या वास्तव में ऐसा माना जा सकता है जब हमें मालूम न हो कि एसआईटी आदि की रिपोर्टों में क्या लिखा है? इसे संयोग कहा जाय या अमरीकी साजिश, यह तो अभी स्पष्टï नहीं है। लेकिन देखने से ऐसा लगता है कि अपने मुस्लिम विरोधी गुस्से को उतारने और भारत में सामाजिक सौहार्द को छिन्न-भिन्न कर भारतीय विकास को अवरुद्ध करने की यह अमरीकी साजिश है। इसलिये देश की जनता को इससे गुमराह नहीं होना चाहिये।

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