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Sunday, September 18, 2011

भारत- बंगलादेश समझौता

हरिराम पाण्डेय
15 सितम्बर 2011
भारत और बंगलादेश में हाल में जो भी समझौते हुए और जो सहमतियां बनीं, उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि दोनों देशों ने रिश्तों की एक ठोस बुनियाद रखी है। हालांकि बंगलादेशी समाज की साइकी को देखते हुए बहुत ज्यादा उम्मीद संभव नहीं है क्योंकि इसकी सफलता के लिये भविष्य में दोनों देशों की सरकारों को राष्ट्रीय संकल्प और लेनदेन की भावना के साथ काम करना होगा। जहां तक सवाल उपलब्धियों का है तो दोनों देशों ने 1974 से लटके शेख मुजीब-इंदिरा सीमा समझौते को संपन्न कर आपसी तनाव की एक बड़ी वजह दूर कर ली है। लेकिन यह स्थिति कब तक रहेगी यह कहना अभी मुश्किल है, क्योंकि बंगलादेशी भद्रलोक इसे भारत के हाथों सेलआउट की संज्ञा दे रहा है और चरमपंथी संगठन इसके पीछे पड़ गये हैं।
कुल 4090 किलोमीटर लंबी सीमा में मात्र छह किलोमीटर के इलाके में ही जहां-तहां पडऩे वाले गांव और कुछ हजार एकड़ जमीन विवाद की जड़ में थी जिस पर लेनदेन का समझौता कर दोनों देशों ने सीमा विवाद को हमेशा के लिए सुलझा लिया है। सीमा मसला दोनों देशों के बीच तनाव की एक बड़ी वजह था और यह बंगलादेश में भारत विरोधी राजनीतिक भावनाएं भड़काने का जरिया बना रहता था। वहां की भारत विरोधी उग्र ताकतों को इस काम में पाकिस्तान की आईएसआई से हर तरह की मदद मिलती थी। भारत की इस शिकायत को अवामी लीग की नेता मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जब दूर किया तो दोनों देशों के बीच सहयोग बनाने और शक दूर करने की एक नयी जमीन बनी।
कहते हैं , ताली दोनों हाथ से बजती है। जब बंगलादेश की मौजूदा सरकार ने असम के उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई कर भारत के साथ सुरक्षा मसलों में सहयोग करने का प्रमाण दिया तब भारत ने भी दो कदम आगे बढ़ कर बंगलादेश को तीस्ता नदी के जल के बंटवारे में अधिक उदारता दिखायी। लेकिन ऐन मौके पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा इसे मंजूरी नहीं देने से बंगलादेश में भारत विरोधी ताकतों को फिर बल मिलेगा।
पूरे 12 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का बंगलादेश दौरा था और इसे लेकर वहां भारी उत्साह था। दो पड़ोसियों का आपस में इतना कम संवाद होना मधुर रिश्तों के लिए ठीक नहीं है। लेकिन भारत की सुरक्षा चिंताएं दूर करने के भरोसे के साथ ही प्रधानमंत्री के ढाका दौरे की तैयारी की गयी। करीब एक साल से इस दौरे की सफलता की तैयारी की जा रही थी। इसके तहत भारत ने बंगलादेश को कई तरह की व्यापारिक रियायतें भी दीं जिससे बंगलादेशी कपड़ा उद्योग को भारी लाभ होगा। दोनों देशों के बीच पांच अरब डालर का सालाना व्यापार पिछले साल हुआ है जो भारत की एकपक्षीय रियायतों के बावजूद काफी हद तक भारत के पक्ष में झुका हुआ है। बंगलादेश को भारत ने जो नवीनतम रियायतें दी हैं उनसे बंगलादेश की शिकायत काफी हद तक दूर होगी।
भारत और बंगलादेश के बीच सहयोग का रिश्ता दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के लिये भी मिसाल बन सकता है। यदि भारत और बंगलादेश ने आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते गहरे किये तो इससे होने वाले लाभों से दक्षिण एशिया के दूसरे देश भी सबक लेंगे। बंगलादेश जब भारत की अर्थव्यवस्था से लाभ उठायेगा तब पाकिस्तान का व्यापार जगत भी भारत के साथ इसी तरह के रिश्ते बनाने का दबाव अपनी सरकार पर डालेगा। शायद इसके बाद पाकिस्तान अपनी जमीन से होकर अफगानिस्तान को भी भारत के साथ व्यापार करने की सुविधा दे दे, क्योंकि इससे पाकिस्तान को राजस्व की आय होगी। इस तरह भारत और बंगलादेश के आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के लिए मिसाल साबित होंगे और दूसरे पड़ोसी देश भी भारत की सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए इसके साथ रिश्ते सामान्य बनाने की कोशिश करेंगे। इस तरह पूरे दक्षिण एशिया में आर्थिक सहयोग का एक नया माहौल बनेगा। इसलिए बंगलादेश के साथ भारत के बेहतर रिश्तों को केवल दो देशों के संबंधों के मद्देनजर ही नहीं देखा जाना चाहिए। इन रिश्तों का सुधरना भारत के लिए पूरे दक्षिण एशिया के संदर्भ में व्यापक महत्व रखता है।

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