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Tuesday, October 4, 2011

विजयादशमी: 'विरथ रघुवीरÓ की विजय यात्रा



हरिराम पाण्डेय
6अक्टूबर2011
दशहरा यानी विजयदशमी। बुराई पर अच्छाई की विजय। लेकिन इस विजय का अर्थ क्या है? क्या यह आधिपत्य है, अथवा यह कोई अपने लिए किसी वैभव की प्राप्ति है? यदि हम प्राचीन दिग्विजयों की कथाओं का विश्लेषण करें तो तीन बातें स्पष्ट होती हैं -
एक तो इन दिग्विजयों का उद्देश्य आधिपत्य स्थापित करना नहीं रहा हैं। कालिदास ने एक शब्द का प्रयोग किया है - 'उत्खात प्रतिरोपणÓ। यानी उखाड़ कर फिर से रोपना। यह उस क्षेत्र के हित में होता है। उसी क्षेत्र के सुयोग्य शासक को वहां का आधिपत्य सौंपा जाता हैं। उस क्षेत्र की दुर्बलताएं अपने आप नष्ट हो जाती है।
दूसरी बात इस प्रकार की विजय यात्रा में निहित थी कि किसी सामान्य जन को सताया नहीं जाय। विभीषण किसी भी प्रकार रावण की चिता में अग्नि देने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। राम ने कहा कि बैर मरने के बाद समाप्त हो जाता हैं।
तीसरी बात यह थी कि दिग्विजय का उद्देश्य उपनिवेश बनाना नहीं था, न अपनी रीति नीति आरोपित करना था। भारत के बाहर जिन देशों में भारत का विजय अभियान हुआ, उन देशों को भारत में मिलाया नहीं गया, उन देशों की अपनी संस्कृति समाप्त नहीं की गई, बल्कि उस संस्कृति को ऐसी पोषक सामग्री दी गई कि उस संस्कृति ने भारत की कला और साहित्य को अपनी प्रतिभा में ढाल कर कुछ सुंदरतर रूप में ही खड़ा किया।
अब प्रश्न है कि केवल राम का ही विजयोत्सव क्यों इतना महत्वपूर्ण है? इसका कारण है वह अकेले 'एक निर्वासित का उत्साहÓ है, जिसने राक्षसों से आक्रांत अत्यंत साधारण लोगों में आत्मविश्वास भरा और जिसने रथहीन हो कर भी रथ पर चढ़े रावण के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
ऐसी यात्रा से ही प्रेरणा ले कर गांधी जी ने स्वाधीनता के विजय अभियान में जिन चौपाइयों का उपयोग किया वे 'रामचरितमानसÓ की हैं - 'रावनु रथो बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।Ó ऐसी विजय में किसी में पराभव नहीं होता, राक्षसों का पराभव नहीं हुआ, केवल रावण के अहंकार का संहार हुआ। राक्षसों की सभ्यता भी नष्ट नहीं हुई। उसी प्रकार जैसे अंग्रेजों का पराभव नहीं हुआ। अंग्रेजों की सभ्यता नेस्तनाबूद करने का कोई प्रयत्न भी नहीं हुआ, केवल प्रभुत्व समाप्त करके जनता का स्वराज्य स्थापित करने का लक्ष्य रहा। इसलिए विजयादशमी आज विशेष महत्व रखती है। हमारे लिए विजययात्रा समाप्त नहीं होती, यह फिर से शुरू होती है, क्यों कि भय और आतंक से दूसरों को भयभीत करने का विराट अभियान जब तक है, कम हो या अधिक, विरथ रघुवीर को विजययात्रा के लिए निकलना ही पड़ेगा। सभी विज्ञापनदाताओं , पाठकों और हितैषियों की यह विजययात्रा शुभ हो।

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