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Sunday, August 19, 2012

मनोवैज्ञानिक जेहाद की साजिश



-हरि राम पाण्डेय
19 अगस्त 2012
उत्तर-पूर्व के निवासियों का दक्षिण भारत से लगातार पलायन जारी है और महाराष्टï्र में भारी तनाव व्याप्त है। इसे देख कर और सुन कर देश भर में सही सोचने वाले आशंकित हैं। लेकिन आम आदमी लाचार है। हम देख रहे हैं कि विगत 20 मई से इंटरनेट, विभिन्न सोशल मीडिया और मोबाइल फोन एवं आई पैड के माध्यम से प्रॉक्सी जिहाद चल रहा है। इसकी शुरुआत म्यांमार के राखिने प्रांत से हुई। वहां बौद्धों और राहिंगा मुसलमानों के बीच संघर्ष हो गया। इस संघर्ष में दोनों तरफ के लगभग 80 लोग मारे गये। दर असल रोहिंगा मुसलमानों को म्यांमार बंगलादेशी घुसपैठिया मानता है। इस संघर्ष के बाद वहां बड़े पैमाने पर लोग उस क्षेत्र को छोड़ कर चले गये। भारी पैमाने पर आंतरिक विस्थापन हुआ। उसी समय से भारत , बंगलादेश और म्यांमार के कुछ अज्ञात कट्टïरपंथी तत्वों ने इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिये म्यांमार की सरकार को बदनाम करना शुरू कर दिया और मुस्लिम एकजुटता प्रदर्शित करने लगा। म्यांमार के प्रेजिडंट सीन थीन ने ओ आई सी के प्रतिनिधिमंडल से बातें कीं। उन्होंने उस प्रतिनिधि मंडल को बताया कि कैसेे सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिये यह बताने की कोशिश की कि कैसे झूठी तस्वीरों और मनगढ़ंत खबरों के आधार पर सरकार को बदनाम किया जा रहा है। दरअसल ये अफवाहें न केवल म्यांमार को अस्थिर करने की साजिश हैं बल्कि बंगलादेश की शेख हसीना सरकार को भी अस्थिर करने का षड्यंत्र है। क्योंकि हसीना सरकार ने रोहिंगाओं को बंगलादेश में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। साथ ही यह भारत में विद्वेष फैलाने का प्रयास है। इससे दोतरफा काम करने की कोशिश की जा रही है। यदि हसीना सरकार कमजोर होती है तो जेहादी ताकतवर होंगे और भारत पर दबाव बना सकते हैं, साथ ही भारत स्वयंमेव विपर्यय में उलझ जायेगा। चंद मुस्लिम कट्टïरपंथी ताकतें और समूह हैं जो रोहिंगा मुसलमानों पर जुल्मोसितम की झूठी तस्वीरें और ब्यौरे फैला रहीं हैं। इन तस्वीरों और ब्यौरों का असर धार्मिक विचारों वाले मुसलमानों के मन पर बड़ा तीखा होता है और उनमें क्रोध जमा होने लगता है। असम में भड़की हिंसा के विरोध में गत 5 अगस्त को मुम्बई के आजाद मैदान में सभा के बाद उपद्रव इसी गुस्से की अभिव्यक्ति थी। सोशल मीडिया पर डाली गयी तस्वीरों और झूठे ब्योरों से गुस्साये लोगों के समक्ष मुस्लिम नेताओं के भड़काऊ भाषणों ने आग में घी का काम किया। भीड़ ने पुलिस पर हमले किये यहां तक महिला पुलिस के सदस्यों पर भी हमले किये गये, एक अनाम सैनिक के स्मारक को तोड़ डाला और मीडिया के लोगों को पीटा। मीडिया के लोगों पर हमले के बारे में उनका कहना था कि वे सही बात नहीं बता रहे हैं। दरअसल उस भीड़ का अचेतन तो सोशल मीडिया पर डाली गयी तस्वीरों और कहानियों को ही सच मान रहा था इसलिये मीडिया के ब्यौरे को वे गलत मान रहे हैं और मीडिया से क्रोधित हैं। कई मुस्लिम नेताओं ने मुम्बई उपद्रव की निंदा की है। मुम्बई के बाद इन कट्टïर पंथियों ने दक्षिण भारत में अपनी साजिश शुरू कर दी। दक्षिण भारत में बड़ी संख्या के पूर्वोत्तर वासी पढ़ रहे या काम काज कर रहे हैं। यहां यह अफवाह फैलायी जा रही है कि भारत सरकार चूंकि असम में रह रहे बंगलादेशियों को नागरिकता नहीं दे रही है इसलिये इस इलाके में पूर्वोत्तर के लोगों को भी नहीं रहने दिया जायेगा। यहां यह गौर करने वाली बात है कि यह मनोवैज्ञानिक जेहाद धर्म आधारित नहीं है बल्कि क्षेत्र आधारित है। जो लोग दक्षिण भारत या मुम्बई-पुणे से भाग रहे हैं उनमें केवल हिंदू नहीं हैं, बल्कि ईसाई भी हैं। अब पलायन कर रहे ये लोग जब अपनी विपदगाथा के साथ पूर्वोत्तर में अपने घर पहुंचेंगे तो साम्प्रदायिक तनाव की एक नयी लहर शुरू होगी। आजादी के बाद से उत्तर-पूरब के लोगों और भारत की शेष आबादी के मन में एक खास किस्म का विभाजन था जिससे विभिन्न तरह के विद्रोह हो रहे थे। विगत दस वर्षों में ये विद्रोह धीमे पडऩे लगे थे। पूर्वोत्तर के नौजवानों की एक बड़ी संख्या अपने को भारत से साथ जोडऩे लगे थे जिससे विद्रोही संगठनोंं को मिलने वाले जांबाज नौजवानों की तादाद घट गयी और दूसरी तरफ वहां के युवक युवतियां देश के अन्य भागों में जाने लगे। इस नये मनोवैज्ञानिक जेहाद से डर है कि कहीं फिर ना मानसिक विभाजन हो जाये और पूर्वोत्तर तथा देश के शेष भाग के बीच एक बड़ी और चौड़ी खाई ना बन जाये। दुर्भाग्यवश हमारी सुरक्षा एजेंसियां इस मनोवैज्ञानिक जेहाद को समय पर नहीं भांप सकीं और ना अभी दोषियों को ढूंढ कर उन्हें निष्क्रिय करने की कोशिश होती दिख रही है। जो लोग इस जंग को अंजाम दे रहे हैं उन्हें तत्काल नेस्तनाबूद किया जाना चाहिये और साथ ही पलायन करने वाले लोगों में सुरक्षा का विश्वास पैदा किया जाना चाहिये वरना आने वाले दिन बड़े भयानक परिणाम ला सकते हैं।

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