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Tuesday, January 15, 2013

पाक पर हमला गैरजरूरी

- हरिराम पाण्डेय पिछले कुछ महीनों से विपक्षी दल किसी भी मसले को सरकार के खिलाफ गढ़ देने में महारत हासिल किया हुआ सा दिखने लगा है। हर मामले को देश और समाज से जोड़कर एक ऐसा चित्र पेश करता है देश की जनता के समक्ष कि खून लगता है खौलने। वे शगूफों के आधार पर देश में देशभक्ति का ऐसा जज्बा फैलाते हैं कि लगता है कि फौरन पाकिस्तान पर आक्रमण कर दिया जाय। यदि आक्रमण नहीं हो रहा ह्ै तो सरकार दोषी है। उसमें साहस नहीं है वह नपुंसक बन गयी है। चारो तरफ शोर मचा हुआ है पाकिस्तान पर हमले किये जाएं। जबकि मामूली अक्ल का इंसान भी जानता है कि हमले ऐसे नहीं हुआ करते है। राजनीतिक दल की तो रोटी ही लफ्फाजी से चलती है। हमारे कथित तेज तर्रार पत्रकार और रक्षा विशेषज्ञ भी यह नहीं पूछ पा रहे हैं कि जब हमने दो दिन पहले ऐन ऐसी ही कार्यवाही उसी सेक्टर में पाकिस्तानियों के खिलाफ की थी तो हम उसके पलटवार के लिए तैयार क्यों नहीं थे। दूसरे क्या इस घटना मे कोई गोली नहीं चली? चली थी तो दुश्मन की कोई हताहत क्यों नहीं हुआ। हमारे जवानों के पीछे सपोर्ट तंत्र क्यों नहीं था। अरबों रुपये खर्च करके लगाए गए हमारे निगरानी उपकरण कहां गये थे। ऐसा भी तो कहा जा सकता है कि क्या उन सारे उपकरणों की खरीद में हुआ गोलमाल इन शहादतों का जिम्मेदार है। पाकिस्तान में आज पहली बार लोकतांत्रिक सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी है और अब वहां निष्पक्ष चुनाव आयोग और आम सहमती से चुनी केयर टेकर सरकार की देख रेख में अगले चुनाव होने जा रहे हैं। पहली बार वहां की सुप्रीम कोर्ट मे ऐसे जज हैं जो सेना के घोटालों और उनकी पिछली असाविधानिक गतिविधियों पर कड़े फैसले दे रहे हैं। वहां की मीडिया भारत का खतरा दिखा कर चौसठ साल ऐश करती रही सेना के तमाम दावों की पोल खोल रही है। सेना और आतंकवादियों के गठजोड़ की नीति के कारण आज पाकिस्तान खुद आत्मघाती हमलावरों, बम धमाकों से दहल चुका है। राजनैतिक तंत्र, सिविल सोसाइटी, व्यापारियों, न्यायपालिका के चौतरफा दबाव में वहां कि सेना को अपनी भारत विरोधी नीति को त्याग भारत से खुले व्यापार, सेना मुक्त वीजा नीति और अमन की आशा को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया है। आतंकवाद की नीति से किनारा कर लेने के परिणाम स्वरूप उसके पैदा किए हुए जिहादियों ने अपनी बंदूकें पाकिस्तानी सेना की ओर मोड़ दी हैं। अमरीका ने भी उससे किनारा कर लिया है और पाकिस्तान की दी जाने वाली सैन्य और आर्थिक मदद में भारी कटौती की है। चौतरफ़ा दबाव से बाहर निकलने का उसके पास एक ही रास्ता है कि वह ऐसी कोई खुराफ़ात करे जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही अमन की आशा ध्वस्त हो जाए। भारत का सीधा हित इस भारत विरोधी इस्लामिक कट्टरपंथी बेलगाम सेना पर लोकतांत्रिक शासन की नकेल कसने से जुड़ा हुआ है।

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