CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Saturday, January 19, 2013

सेना को सियासत में ना घसीटें

हरिराम पाण्डेय 18.1.2013 पाकिस्तानी सेना के नियंत्रण रेखा को पार करने और दो सैनिकों को मार डालने तथा उनमे से एक का सर काट डालने की घटना पर दो दिन पहले यानी गत 14 जनवरी को सेनाध्यक्ष विक्रम सिंह ने प्रेस के सामने जितना जोशीला भाषण दिया, उसे देख कर एक सवाल मन में उठता है कि 2011 में भी तो इसी तरह की घटना हुई थी पर उस समय सरकार या विपक्षी दलों में इतना जोश - ओ- खरोश नहीं दिखा। इस बार ऐसा क्या हो गया? इस बात को बहुत गोपनीय रखा गया कि घटना को लेकर जनता में बहुत ज्यादा गुस्सा नहीं था और ना ही दोनों देशों में चल रही वार्ता प्रक्रिया रुकी थी। गत 8 जनवरी को कुछ पाकिस्तानी फौजी नियंत्रण रेखा पार कर घुस आये और दो भारतीय सैनिकों को मार डाला तथा एक का सिर काट कर ले गये। इस घटना को जम कर प्रचारित किया गया। टी वी चैनलों पर मुबाहसे हुए और सेनाध्यक्षों ने जोशीले भाषण दिये। जनता में रोष भड़काने की हरचंद कोशिश की गयी। भाजपा के साथ कुछ विरोधी दलों ने भी निहित स्वार्थ के लिये बाकायदा आंदोलन किया और जन-भावना को भड़काने का प्रयास किया। सवाल उठता है कि 2011 और 2013 की इन घटनाओं में क्या फर्क है? एक फर्क तो सीधा दिख रहा है कि उस दौरान चुनाव दूर थे और 2013 अर्थात भविष्य में चुनाव काफी नजदीक हैं। राजनीतिक दलों का आकलन है कि जनता में भावुकता फैला कर वोट बटोरे जा सकते हैं। सबसे पहले भाजपा ने नारे लगाने शुरू किये। उसने मांग की, जो कि सबसे लोकप्रिय मांग है, कि पाकिस्तान को कठोर जवाब दिये जाएं, इसमें उससे वार्ता प्रक्रिया भी निरस्त कर दी जाय, यह भी शामिल है। कई रिटायर्ड फौजी तथा सिविल अफसर भी टी वी चैनलों द्वारा फैलायी जाने वाली उत्तेजनाओं में शामिल हो गये। जो नहीं शामिल हुए उन्हें मजाक की नजरों से देखा जाना लगा। इसका सबसे बड़ा प्रभाव मनमोहन सिंह पर दिखा। वे सेना दिवस के एक कार्यक्रम में गये थे। उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध काफी कड़े शब्दों का प्रयोग किया जबकि वे पाकिस्तान से दोस्ती के हामी हैं। कुछ पत्रकारों से वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि जो लोग दोषी हैं उन्हें दंड दिया जायेगा और अब पाकिस्तान से पहले जैसे रिश्ते नहीं रह जायेंगे। सरकार पास्तिान की हुकूमत को यह बता देने का मन भी बना रही है कि वरिष्ठï नागरिकों का विजा रोका जायेगा , हाकी टीम का दौरा रद्द किया जायेगा और महिला क्रिकेट टीम को खेलने की अनुमति नहीं दी जायेगी। यह सरकार के नये रुख की पहचान है। साथ ही सरकार ने इस मसले पर वार्ता के लिये भाजपा को भी बुलवाने का निर्णय किया है। सरकार का यह रुख ज्यादा अवसरवादी लगता है। सरकार का यह रुख केवल इसलिये है कि इस आक्रोश का लाभ भाजपा न भुना ले। सरकार का यह हथकंडा तबतक जारी रहेगा जबतक जनता का आक्रोश ना खत्म हो। जैसे ही आक्रोश खत्म होगा सबकुछ सामान्य हो जायेगा। लेकिन इन मौकापरस्त हालात को बदलना ज्यादा जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसा न हो और इसके लिए जरूरी है कि सरकार विपक्ष से परामर्श के बाद खुफिया- भेदिया कारोबार को फिर से गहन करे और पाकिस्तान की अंदरूनी गतिविधियों की जानकारी रखे। क्योंकि वहां जो कुछ हो रहा है वह भारत के लिये शुभ नहीं है। पाकिस्तान में मंगलवार को आये सुप्रीम कोर्ट के प्रधानमंत्री अशरफ़ को गिरफ़्तार करने के बाद पाकिस्तान एक बड़े राजनैतिक भूचाल की ओर मुड़ गया है। उधर लाखों लोगों को लेकर इस्लामाबाद में धरने में बैठे ताहिर अल कादरी साहब संसद तथा इलेक्शन कमिशन को भी बर्खास्त करने पर अड़े हुए हैं। कल के फ़ैसले के बाद पाकिस्तान के राजनैतिक हल्कों और मीडिया में ये चर्चा जोरों पर है कि सुप्रीम कोर्ट भी सेना के साथ इस लोकतांत्रिक सरकार को बर्खास्त करने की योजना में शामिल है। अगले अड़तालीस घंटों में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दो बड़े मामलों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को दोषी करार दे सकते हैं। इसमें से एक मामला आसिफ अली जरदारी के एक साथ दो पदों राष्ट्रपति, पार्टी के अध्यक्ष बने रहने का है। धीरे-धीरे पाकिस्तान फिर फौजी हुकूमत की ओर बढ़ता नजर आ रहा है। भारत के लिए सेना की सत्ता में वापसी के गंभीर परिणाम होंगे। हाल में सीमा पर जारी तनाव भी पाक सेना की इसी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। जिसमें मीडिया के द्वारा हाइप बनाने के बाद भारत पाक सेना की चालों मे फंसता नजर आ रहा है। भारत के लिये सबसे मुफीद नवाज शरीफ और जरदारी ही रहेंगे।

0 comments: