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Friday, January 25, 2013

कोलकाता कल्लोलिनी है, तिलोत्तमा है

हरिराम पाण्डेय किसी शहर को सुंदरी के रूप में देखा जाना सचमुच बड़ी अजीब कल्पना है। लापियरे ने बेशक कोलकाता को जीवंत तौर पर परखा है लेकिन तिलोत्तमा के रूप में इस शहर की कल्पना के साथ ही कोलकाता के बारे में गालिब का वह शेर याद आता है कि, जिक्र कलकत्ते का तूने किया जो जालिम इक तीर मेरे दिल में वो मारा के हाय हाय। गालिबन मिर्जा गालिब दुनिया के पहले शायर थे जिन्होंने कोलकाता या कलकत्ता में दुविधाओं के बीच भी जीवन की राह तलाशनी शुरू की थी। कोलकाता ऐसा शहर है जहां सवाल ईमान और कुफ्र का नहीं, सवाल धर्मी और विधर्मी का नहीं, सवाल एक नयी रोशनी का है एक नये नजरिये का है। पता नहीं आपको मालूम होगा या नहीं कि जब हम किसी शहर को देखते हैं तो वह शहर भी हमें देखता है। हुगली नदी के किनारे तीस मील की लम्बाई में बसा हुआ महानगर, एक करोड़ के आसपास आबादी जिसके जवाब में सिर्फ टोकियो, लन्दन और न्यूयॉर्क के नाम लिए जा सकते हैं लेकिन इसमें उनसे कहीं ज्यादा वहशतें आबाद हैं। आसमान की बुलंदियों से नीचे देखें तो दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देती है, कहीं गहरी सियाही, कहीं पीलाहट लिए हुए। लेकिन ये सारे रंग प्रदर्शन , अभिव्यक्ति के लिए बेचैन एक अनदेखी ऊर्जा का रूपक हैं। ठीक वैसे ही जैसे सोलहों सिंगार के बाद कोई सुंदरी दर्पण देखने को बेचैन होती है। आसमान से दिखने वाली इन्हीं हरियालियों में यहां-वहां चमकता, चौंकता, कौंधता हुआ पानी। झीलें, नहरें और नदी। एक तरफ हद्दे नजर तक फैली हुई चांदनी की चादर। एक नन्हा सा बिंदु इस लैंडस्केप में धीरे-धीरे फैलता जाता है और एक शहर की तस्वीर उभरती है। कुत्ते के पैर जैसी आकृति रखने वाली चौड़ी भूरी नदी के गिर्द बसा हुआ यह शहर, किनारों पर लंगर डाले कश्‍ितयां और जहाज, बड़ी बड़ी क्रेनेंं, मिलों की चिमनियां और कारखानों की जंग लगी लोहे की चादरों की छतें। फिर जरा और नीचे आने पर ताड़ के झुण्ड दिखते हैं। एक तरफ से झुण्ड से उभरता हुआ ब्रिटिश राज की यादों में बसे हुए पुराने गिरजे की सफेद खामोश मीनार जैसे स्कूली जमाने की किताबों में प्रेमी द्वारा दिये गये सूखे फूल। यह शहर अजीब द्वन्द्व का है और अनोखे टकराव भरे तजुर्बों का। गालिब ने लिखा है कि जब वे यहां से लौटे तो 'जेहन में आधुनिकता लेकर लौटे थे।Ó मैने कहा न कि टकराव भरे तजुर्बे का यह शहर है। ठीक एक शायर की तरह , चौदहवीं की रात में शब भर रहा चर्चा तेरा किसी ने कहा चांद है, मैंने कहा चेहरा तेरा लॉर्ड क्लाइव के खयाल में कलकत्ता दुनिया की सबसे बुरी बस्ती थी, लेकिन एक अंग्रेज अफसर विलियम हंटर ने एक रात अपनी प्रेमिका को लिखे पत्र में कहा 'कल्पना करो उन तमाम चीजों की जो फितरत में सबसे शानदार हैं और उसके साथ-साथ उन तमाम कलाकृत्तियों का जो कला के मामले में सबसे ज्यादा हसीन हैं, फिर तुम अपने आप कलकत्ता की एक धुंधली सी तस्वीर देख लोगी। Ó उन्नीसवीं सदी के अंत में चर्चिल ने अपनी मां से कहा था 'कलकत्ते को देखकर मुझे हमेशा ख़ुशी होगी क्योंकि इसे एक बार देखने के बाद दोबारा देखने की जरूरत नहीं रह जाती। ये एक शानदार शहर है। रात की ठण्डी हवा और सुरमई धुन्ध में ये लन्दन जैसा दिखाई देता है।Ó कोलकाता एक बहुवचनी नगर है। एक में अनेक - मोराज(फिल्म संग्रथन) की तरह। कोलकाता अर्धनारीश्वर महानगर है। एक अंग से राजनीति का तांडव है तो दूसरे से दुर्गा उत्सव, रवींद्र संगीत का लास्य-टू-इन-वन। 'भीषण सुंदरÓ या 'दारुण सुंदरÓ जैसे बंगला के विरोधाभासी शब्द युग्म विरोधों के सामंजस्य के प्रतीक हैं या विपरीतों के मिलनोत्कर्ष के? तभी तो 'वर्ग संघर्षÓ के 'भीषणÓ के साथ अमीरी का 'सुंदरÓ मजे में मिल कर रहता है। मुझे नहीं लगता कि सुरुचि, सौंदर्य, कोमलता, दर्शन, भक्ति, कल्पना, प्रेम, करुणा, उदासी जैसी भाव-राशि को कोलकाता ने वैज्ञानिक यथार्थवाद के दुद्र्धर्ष काल में भी कभी त्यागा होगा। शरद और रवींद्र कभी उसके जीवन से परे धकेले न जा सके। रवींद्र और नजरूल या सुभाष और राम कृष्ण की पूजा कोलकाता एक ही झांकी में बराबर से कर सकता है। तभी तो कोलकाता पूरे भारत का कोलाज बना हुआ है। कोलकाता का स्वभाव सुंदरियों की तरह लिरिकल है - गेय है। कोई भी शुभारंभ यहां बिना रीति के नहीं होता। आंदोलन या उग्र रैली (मिछिल) में भी जो नारे लगाए जाते हैं वे बोल कर नहीं गाकर लगाए जाते हैं। अन्याय अत्याचार के नारे भी गेय हैं और उसे 'चलने न देंगेÓ का उद्घोष भी गेय है - 'चोलबे ना, चोलबे नाÓ नारा भी वे ऐसा झुलाते हुए लगाते हैं कि उसे कहीं न गद्य का झटका लगे, न ठहराव आए। कभी आपने सोचा है कि कोलकाता पर लिखी प्राय: सभी कविताएं उसकी प्रशंसा और सामथ्र्य में क्यों लिखी गई हैं, जबकि दिल्ली पर लिखी कविताओं में दिल्ली के प्रति तल्खी, आशंका, भय और निंदा से भरी है? कोलकाता भी एक 'गोपनÓ का नाम है,और बंगाल भी। वह भी अपने मूल्यवान को दबाए-ढांपे हैं, यहां जो कुछ भी मूल्यवान और अप्रतिम है उसे आप सतह पर नहीं पा सकते - फिर चाहे वस्तु हो या व्यक्ति। कोलकाता का पारंपरिक और किसी हद तक वर्तमान वास्तु इसका प्रमाण है कि बाहर से देखने पर भीतर खुलने वाले भव्य और विराट का अनुमान नहीं लगा सकते।

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