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Thursday, December 4, 2014

रामलला के बहाने


सिर्फ दो दिन बाद अयोध्या विवादास्पद ढांचा को ढहाये जाने की बरसी है। मुस्लिम समुदाय के सियासतदां इसे बाबरी मस्जिद ढाहने का काल दिवस कहते हैं और हिंदू राजनीतिक नेता इसे राममंदिर निर्माण की दिशा में उठाया गया कदम बताते हैं। दो दशक पहले अयोध्या के बहाने पूरे देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया गया था। लेकिन उस हवा में बहने से तब भी अयोध्या ने इनकार किया था। देश के अनेक हिस्सों में टकराव हुए, खूनखराबे तक की नौबत आई, पर अयोध्या का माहौल नहीं बिगड़ा। मंदिरों की घंटियां पहले की तरह ही बजती रहीं, मस्जिदों में अजान होती रही। रोजी-रोजगार और सारा कारोबार उसी तरह चलता रहा। सुख-दु:ख में एक-दूसरे का हाथ लोग उसी तरह थामे रहे, जिस तरह सदियों से थामते आए थे। इंसानियत की ऊष्मा थोड़ी भी कम नहीं हुई। सदियों से चले आ रहे भाइचारे में रत्ती भर फर्क नहीं पड़ा। लेकिन अब भी जोशीले भाषणों से वहां का और उसकी आड़ में देश भर का माहौल गरमाने का प्रयास चल रहा है। राम मंदिर बनेगा या नहीं पर इस दिशा में दोनों समुदाय के कुछ अगुआ सकारात्मक कदम उठा रहे हैं तथा प्रयास कर रहे हैं कि मामला सुसंगत तौर पर सुलझ जाय। बाबरी मस्जिद मुकदमे के पैरोकार और मुद्दई हाशिम अंसारी ने  बुधवार को घोषणा कर सबको चौंका दिया  कि वे अब केस की पैरवी नहीं करेंगे। उन्होंने मंगलवार को यह कहते हुए सबको चौंका दिया कि  वे  रामलला को आजाद देखना चाहते हैं। हाशिम ने यह भी साफ कर दिया कि वह छह दिसंबर को मुस्लिम संगठनों द्वारा आयोजित यौमे गम (शोक दिवस) में भी शामिल नहीं होंगे। वह छह दिसंबर को दरवाजा बंद कर घर में रहेंगे। कुछ ही दिन पहले कोलकाता में अयोध्या की हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञानदास से मुलाकात हुई थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने हाशिम अंसारी  को लेकर पूरी कोशिश की थी कि  हिंदुओं और मुस्लिमों को इक_ा करके मामले को सुलझाया जाय। पर उस समय हिंदू समुदाय का संगठन सुप्रीम कोर्ट चला गया। नवम्बर के आखिरी हफ्ते में गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्य नाथ ने भी कोलकाता में एक खास मुलाकात में बताया था कि एक वर्ष के भीतर राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार हो जायेगी और यह तैयारी संविधान के दायरे में होगी। राममंदिर को लेकर सुसंगत ढंग से सोचने वाले इन तीन रहनुमाओं की बातों से लगता है कि एक बड़ी आबादी देश की एकता, अखंडता और सामाजिक सौहार्द की समर्थक है। हाशिम अंसारी ने तो साफ कहा कि 'बाबरी मस्जिद पर हो रही सियासत से वे दु:खी हैं।  रामलला तिरपाल में रह रहे हैं और उनके नाम की राजनीति करने वाले महलों में। लोग लड्डू खाएं और रामलला इलायची दाना ,यह नहीं हो सकता...।Ó हाशिम ने कहा, 'बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी बनी थी मुकदमे की पैरवी के लिए। आजम खां तब साथ थे, अब वे सियासी फायदा उठाने के लिए मुलायम के साथ चल रहे हैं। मुकदमा हम लड़ें और फायदा आजम उठाएं!Ó यही नहीं, चौरासी कोसी परिक्रमा के पहले उस पर सवाल उठाया था और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ट्विट किया था कि 'अयोध्या का मैच फिक्स है।Ó इस पर हिंदू महासभा और बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटि ने काफी बवाल मचाया था। हालांकि उस परिक्रमा पर शास्त्रज्ञों और पंडितों ने भी सवाल उठाये थे। पंडितों ने तो तमाम धर्मशास्त्रीय स्रोतों के आधार पर इसे गलत ठहराया। उन्होंने दलील दी कि चातुर्मास यानी वर्षा ऋतु के चार महीनों में हिंदू शास्त्रों के मुताबिक कोई शुभ काम नहीं होता, क्योंकि मान्यता है कि इस समय देवता सोने चले जाते हैं। रामायण में प्रसंग है कि भगवान राम ने भी इस काल में अपनी यात्रा स्थगित कर दी थी। ऐसे में यह यात्रा ही सनातन परंपरा के विरुद्ध है। कई आचार्यों ने यह भी कहा कि अयोध्या के चौरासी कोस की परिक्रमा की परंपरा न तो प्राचीन है, न ही शास्त्रसम्मत। अंसारी से मुस्लिम पक्ष को सीख लेनी चाहिए। अंसारी का बयान तब आया है जब बाबरी ऐक्शन कमिटी छह दिसंबर को काला दिवस मनाने जा रही है। अंसारी के इस कार्य का यह संदेश पूरे देश को समझना चाहिए। पूरे देश के लोगों को धर्म और धर्म की राजनीति के बीच अपनी समझ साफ रखनी चहिए।

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