CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, August 2, 2015

याकूब के पक्ष में लामबंदी क्यों?

याकूब के पक्ष में लामबंदी क्यों?
यहां जो लिखा जा रहा है वह किसी टी वी सीरियल को देख कर या फेसबुक के संदेशों को पढ़कर या यह सोच कर कि देश क्या चाहता है या क्या सोचता है, यहां लिखा जा रहा है। यहां वही लिखा जा रहा है जो महसूस किया गया। सबसे पहली बात कि मेमन को बचाने वाली टोली चाहे जितनी भी ताकतवर हो वह देश के विचार से ताकत वर नहीं हो सकती। मेमन को माफ करने वाले बेशक माफ कर दें। लेकिन उन्हें याद रखना होगा कि मेमन की करतूतों से देश खून से नहा उठा था और उसे बचाने वालों की दलीलों से देश का खून खौल रहा है। विगत दो दिनाें में हावड़ा और कोलकाता के चार बार दौरे हुए। इन दो दिनों दोनों महानगरों में न कोई उपद्रवी भीड़ दिखी और ना समाज अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक में विभाजित दिखा। सबसे ज्यादा चर्चा कलाम साहब की मौत से होने वाली कमी पर हुई, याकूब की फांसी पर चर्चा तो थी पर बहुत मुख्तसर। लेकिन मीडिया की चर्चा को देख- सुन कर लगता है कि ऊपर वाली बात गलत है। सारा देश याकूब के लिये चिंतित है। यहां चिंतित होने वालों से फकत एक सवाल है कि किसके लिए है इतनी चिंता, इतनी मशक्कत, इतनी बेचैनी ? उस आतंकी के लिए, जिसने अपने परिवार से रेकी करवाई थी कि बम वहां फटे, जहां स्कूल के बच्चों की बस गुजरती हो। सेंचुरी बाजार की अकेली साजिश को ही लें तो सुनते ही कांप जाएंगे कि वहां कई दिनों तक याकूब के आतंकियों ने यह पड़ताल की थी कि आरडीएक्स कहां भरें। ताकि ज्यादा से ज्यादा निर्दोष लोगों के टुकड़े-टुकड़े हो जाएं। मैनहोल में भरे थे विस्फोटक। अकेले वहीं कुल 113 बच्चे, महिलाएं और बीमार मारे गए थे। मैनहोल के ऊपर से बस के गुजरते ही फटे थे बम। उन चीखों-चीत्कारों को अनसुना कर, हम रात-रातभर कौन सी दया दिखा रहे हैं? 22 साल में हमें कुछ नहीं बताया गया। अब अचानक प्रक्रिया की खामियां गिनाई जा रही हैं। इस बीच एक सनसनीखेज खुलासा किया गया कि याकूब को गिरफ्तार नहीं किया गया था, बल्कि उसे लाया गया था। उससे पाकिस्तान के विरुद्ध सबूत मिल रहे थे। इसलिए वह सजा का पात्र नहीं हो सकता। तो किसे ऐसा हक दिया गया? किसने दिया? कौन ऐसा तय करने लगेगा कि सबूत दो तो 257 हत्याएं भी माफ? याकूब ने तो उसी धरती को तबाह करने का गुनाह किया था जिस पर वह पनपा था। उसके धमाकों ने महज ढाई सौ लोगों की जान ही नहीं ली थी बल्कि हजारों हंसते-खेलते परिवार तबाह कर दिए थे। उसने इससे भी बड़ा गुनाह यह किया कि अपने कुकृत्य को धर्म का रंग चढ़ा कर उसने गरीब नौजवानों को विस्फोटों को अंजाम देने के लिए भड़काया और खुद परिवार सहित दुबई होते हुए पाकिस्तान भाग गया। अफसोस, ऐसे कायर और हत्यारे की वकालत में बकायदा एक जमात खड़ी है जिसमें वे तमाम चेहरे शामिल हैं जिन्हें मीडिया की रोशनी में खुद को चमकाने की आदत पड़ी हुई है। याकूब को फांसी देना इतना संवेदनशील मुद्दा क्यों बन गया, इस समस्या पर बहुत सोच विचार करने की जरूरत है । हम मीडिया में कुछ हिन्दू राजनीतिज्ञों और धार्मिक नेताओं को आतंकवाद का इस्लाम से रिश्ता जोड़ते हुए देखते और सुनते हैं, लेकिन इस देश का आम नागरिक उनकी बातों में नहीं आता, क्योंकि सभी जानते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। वास्तव में किसी को न तो याकूब की चिन्ता है और न ही मुसलमानों की, सबको चिन्ता है मुस्लिम वोट बैंक की । मुस्लिम वोट बैंक के कारण ही ये नेता ऊटपटांग हरकतें कर रहे हैं । ये चाहते हैं कि मुसलमान अपना भला- बुरा सोचने के बजाये इनके पीछे चलते रहें, जैसा कि अब तक होता आया है । एम.आई.एम के नेता औवेसी ने सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं की नींद उड़ा रखी है, उन्होंने अब तक मुस्लिम वोट बैंक के सहारे अपनी रोजी- रोटी चलाने वाले इन लोगों से इनका धन्धा छीन लेने की पूरी तैयारी कर ली है, इसी कारण ये लोग औवेसी के बढ़ते प्रभाव से घबराये हुए हैं। औवेशी ने अपने कट्टरवादी और भड़काऊ भाषणों के सहारे इनके वोटबैंक में सेंध लगानी शुरू कर दी है । कट्टरवाद के बारे में एक सत्य यह भी है कि ये कभी एकतरफा नहीं होता । कट्टरवाद की प्रतिक्रिया कट्टरवाद ही होती है । अगर मुस्लिम कट्टरवाद बढ़ता है तो इसके जवाब में हिन्दू कट्टरवाद भी बढ़ेगा । हो सकता है कि फांसी पर तर्क कुछ सही हों लेकिन इस जगह वे तर्क बेवजह हैं , क्योकि उन तर्कों पर ध्यान देने का मतलब है कि एक मौन आबादी को नजरअंदाज करना। राजनीतिज्ञों के तर्क चाहे जो हों लेकिन इस देश की अधिकांश जनता जो चाहती है वही हुआ। अंग्रेजी मीडिया की अदालत में पहुंच ने पूरी संस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है और मजे की बात है कि वे सवाल कुदरती न्याय के दर्शन पर नहीं बल्कि बौद्धिक लफ्फाजी पर आधारित हैं।



0 comments: