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Saturday, October 24, 2015

रावण का प्रश्न


24 अक्टूबर 2015
गुरुवार को यहां साल्ट लेक में रावण दहन का आयोजन हुआ था। जलता हुआ रावण बड़ा अजीब लग रहा था। आतिशबाजियां मानो उसकी चीख हों और उसका मानव ध्वनि रूपांतरण किया जाय तो ऐसा सुनने को मिलेगा जैसे , जलता हुआ रावण सामने खड़े लोगों से पूछ रहा हो कि , भाई तुम लोगों में राम कितने हैं? सचमुच यह एक विकट सवाल है। रावण ज्ञानी था, पंडित था, महादेव सिद्ध था, समृद्ध इतना कि पूरी लंका सोने की बनवा डाली थी , फिर भी मारा गया राम के हाथों। गौर करें ​कि राम ने लक्ष्मण से कहा था कि वे रावण के पैर छूकर आशिष लें और ज्ञान की याचना करें। आखिर क्यों? दरअसल , रावण की जो 10 बुराइयां थीं उनका अंत हो चुका था, वे बुराइयां आज भी हम सभी में हैं और राम में भी थीं पर वे उस पर विजय पाकर राम बने और रावण उनका गुलाम होकर रावण बना तो ये आप तय करें कि आप रावण हैं या राम। दशहरा का बहुत गहरा अर्थ है जो उसके नाम में छुपा हुआ है दश और हरा यानी दशहरा मतलब दशों अवगुणों को हरने वाला। वे दस अवगुण कौन से हैं जिनके हारने या जीतने की बात यहां हो रही है। हर इंसान में 10 प्रकार की बुराइयां होती हैं जो मुख्यत: हैं काम, लोभ, मोह, माया, अहंकार, क्रोध, पर स्त्री चिंतन, वासना, घमंड और अधर्म। रावण में ये सब बुराइयां थीं जिनके वशीभूत होकर वह परमात्मा से दूर हो गया था। अपने आप को भगवान समझने लगा था और लोगों पर अत्याचार करने लगा था। देश- काल और परिस्थित के अनुसार बुराइयां और रावण के रूप भी बदलते गए हैं, आज के समय में रावण जात पात ,आतंकवाद,देशों की आपसी लड़ाइयां, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार, नशाखोरी, बलात्कार, ईर्ष्या, लालच इन रूपों में पैर पसार रहा है, यदि सही में रावण का अंत इस दुनिया से करना है तो रावण रूपी इन बुराइयों का अंत करना जरूरी है तभी असली रावण का अंत संभव है। रावण का एक ही दोष था और वह बहुत बड़ा था कि उसमें अहंकार बहुत था, इसलिए वह सत्य-असत्य और विवेक-अविवेक में फर्क नहीं कर पाता था। इस योग्यता के लिए व्यक्ति को उदार होना चाहिए। जब तक हम दूसरे का पक्ष देखेंगे नहीं तब तक यह कैसे पता चलेगा कि दूसरा भी सही हो सकता है। यह योग्यता अहंकार होने पर पैदा नहीं हो पाती। रावण भौतिक शक्ति व संपदा का प्रतीक है और संदेश यही है कि भौतिक शक्ति हमेशा आध्यात्मिक शक्ति से पराजित होती है। श्रीराम के इतने सद्गुणों के बाद भी उन्हें लेकर कुछ विवाद हैं। जैसे सीताजी को लेकर उनका व्यवहार या बालि वध का प्रसंग , लेकिन इनमें सत्य का अंश ही होता है। समय के साथ किंवदंतियां जुड़ती जाती हैं। हमारे पास तो प्रमाण हैं कि श्रीराम ने सीताजी का कभी त्याग नहीं किया था। उस काल के अादर्श व मर्यादाओं को आज के संदर्भ में देखेंगे तो वे वैसे ही नहीं दिखाई देंगे। श्रीराम, सीताजी के लिए जितना रोए हैं, वह नारीवादी विचारकों के लिए विचारणीय है कि उनका प्रायश्चित उनकी गलती से बहुत ज्यादा बड़ा है। सबसे समग्र चरित्र तो हनुमान का है। भारत में जितने संप्रदाय हैं शैव हों, शाक्त हों, सभी में उन्हें स्थान है। इतनी स्वीकार्यता और किसी देवता को नहीं मिली है। वर्तमान के वे सबसे प्रासंगिक देवता हैं। काम में समर्पण ही विजय दिलाती है। यह वही संदेश देते हैं। निष्ठा भी उनका गुण है। जिसे स्वीकार किया है उसके प्रति निष्ठा। श्रीराम के अयोध्या से निर्वासन से लेकर रावण पर विजय तक की यात्रा देखें तो हमें आचरण के कुछ नियम और व्यक्तित्व के कुछ गुण नजर आते हैं, जो बताते हैं कि इन पर चलकर हम बुराई पर जीत हासिल कर सकते हैं। ये ऐसी बातें हैं, जिन्हें बार-बार रेखांकित करने की जरूरत है, क्योंकि यह बाहर के बजाय भीतर की लड़ाई ज्यादा है। जैसे अयोध्या छोड़कर वनवास पर जाने में श्रीराम का जो गुण नजर आता है वह है साहसपूर्वक दु:ख सहन करने का निश्चय। समाज से बुराई की शक्तियां खत्म करनी हैं तो श्रीराम की तरह हमें कष्ट झेलने के लिए तैयार होना पड़ेगा। यह संघर्ष लंबा है। मौजूदा वक्त में हम हर काम में शॉर्टकट खोजने लगते हैं। इस प्रवृत्ति से गलतियां हो जाती हैं। देश की मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में हमें इसका उदाहरण मिलता है। पर्याप्त संघर्ष के बाद एक तीसरा विकल्प सामने था, लेकिन शॉर्टकट में उलझकर वह आंदोलन भटक गया। शॉर्टकट जो अपनाएगा, समय उसे कट करके शॉर्ट कर देगा।

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