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Thursday, November 26, 2015

युद्ध आई एस आई एस को नहीं मिटा सकता


20नवम्बर 2015
पेरिस पर हमला क्या हुआ पूरी दुनिया में एक खास किस्म की गोलबंदी आरंभ हो गयी। यह गोलबंदी अाई एस आई एस के खिलाफ है और यही समूह खुद स्वीकार करता है कि एक बहुत बड़ा वर्ग आई एस आई एस के साथ है। यानी, आई एस आई एस के साथी और उसके मुखालिफ दोनों ही दिखायी पड़ रहे हैं। एसे में दोतरफा हमले अक्सर युद्ध की परिसीमा में प्रवेश कर जाते हैं। अब सवाल उठता है कि क्या दुनिया एक और बड़ी लड़ाई की तरफ बढ़ रही है। एक ऐसी लड़ाई जिससे विश्व के वजूद का खतरा है, क्योंकि कहा जाता है कि कई इस्लामी आतंकवादी संगठनों के पास परमाणु हथियार भी हैं और ये आई एस आई एस के सम्पर्क में हैं। इसका सीधा अर्थ है कि जंग की सूरत में दुनिया को परमाणु खतरा है। इससे साफ हो गया कि इस समस्या का सैनिक समाधान नहीं है, जैसा फ्रांस करना चाह रहा है। तो क्या है समाधान? समाधान की तलाश से पहले हमें समस्या को समझना होगा। समस्या आई एस आई एस नहीं है बल्कि उसे चलाने वाले चंद ‘गंदे और बेवकूफ ’ वे लोग हैं जो गली मोहल्ले के ‘छेछड़ों’ की तरह हैं। विचारधारा और ताकत का जाम पीकर बौराए हुए गली के छोकरे। इसके बारे में अभी तक दुनिया की जो राय बनी है वह यकीनन उनकी मार्केटिंग और जनसंपर्क अभियान का ही नतीजा है। वे आम लोगों के सामने खुद को सुपरहीरो की तरह पेश करते हैं, लेकिन कैमरे से दूर वे सिर्फ रुग्ण किस्म के लोग हैं। इस बात का अर्थ कतई यह न लगाया जाए कि यहां बेवकूफी की हत्यारी संभावनाओं को कम करके आंका जा रहा है। वे पागलों की तरह खबर सुनते हैं , पर तथ्यों को अपने हिसाब से छांटकर ग्रहण करते हैं। वे पूरी तरह लकीर के फकीर हैं, तर्क-वितर्क से कोई मतलब नहीं। जो भी रटाया गया , रट लिया था। हर चीज उन्हें यकीन दिलाती है कि वे सही रास्ते पर हैं। एक ऐसी सर्वग्रासी प्रक्रिया शुरू हो गई है जो दुनिया को 'मुस्लिम बनाम अन्य' के टकराव की ओर ले जा रही है। सोशल मीडिया में अपनी दिलचस्पी की बदौलत वे पेरिस हमलों के बाद आ रही सारी प्रतिक्रियाओं को देख रहे होंगे और नारा लगा रहे होंगे कि 'हमारी फतह हो रही है।' विभाजन, भय, आशंका, नस्लवाद, बाहरी लोगों का डर आदि से जुड़ी तमाम खबरें उन्हें खुशी दे रही होंगी। यह विश्वास उनकी विश्वदृष्टि के केंद्र में है कि बाकी दुनिया मुसलमानों के साथ मिलकर नहीं रह सकती। हमेशा वे अपने इस यकीन को मजबूती देने वाले उदाहरणों की तलाश में रहते हैं। जर्मनी में शरणार्थियों के स्वागत वाली तस्वीरें उन्हें विचलित करती हैं। लोगों की एकजुटता, सहिष्णुता उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती। मतलब वे एकजुटता और सहिष्णुता से डरते हैं। इसलिये यहां सबसे बड़ा सवाल है कि आई एस आई एस को समाप्त कर कैसे एक बेहतर क्षेत्र का निर्माण हो। इस चुनौती के मुकाबले के लिए यह आकलन जरूरी है कि समस्या कितनी बड़ी है। अबसे साठ साल पहले चंद एशियाई तानाशाहों ने अपने आवाम से कहा था कि ‘आपकी आजादी को छीना जा रहा है और उसके बदले हम आपको देंगे बेहतरीन शिक्षा- स्वास्थ्यसेवा , निर्यातोन्मुख अर्थव्यवस्था, सर्वोत्तम ढांचागत सुविधाएं। जिनके माध्यम से आप इतने विकसित हो जाएंगे कि अपनी आजादी हासिल कर लें।’ लेकिन अरब दुनिया में तानाशाहों ने कहा, ‘हम आपकी आजादी छीन लेंगे और बदले में देंगे अरब इसराइल की जंग-एक ऐसा मुजस्सिमा जिसकी चमक में आपकी आंखें चौंधिया जाएंगी और आपको हमारी ज्यादतियां तथा भ्रष्टाचार नहीं दिखेंगे।’ इसलिये दुनिया को एकजुट कर यह कोशिश करनी चाहिये कि ‘जहां व्यवस्था नहीं है वहां व्यवस्था कायम करें, आतंक के मुकाबले मुस्लिम ब्रदरहुड को तरजीह दें। जहां व्यवस्था है उस समाज को ज्यादा से ज्यादा दूरंदेशी तथा आधुनिक विचारधारा वाला बनाए। इसके साथ ही जहां बेहतर व्यवस्था हो, जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन और कुर्दिस्तान उसे ज्यादा से ज्यादा खुला समाज बनाने का प्रयास करें। ’इसके साथ ही आई एस आई एस द्वारा की जा रही हिंसा को नहीं भूला जाना चाहिये। इसके लिये जरूरी है कि एक बेहतर मुस्लिम समाज को बनाया जाय।

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