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Monday, May 30, 2016

सियासत हर जगह

किसी बड़े नेता के फेसबुक वाल पर कितने लाइक्स हैं या किसी नेता के ट्वीटर पर कितने फालोवर हैं इसका दुनिया के किसी देश में कोई महत्व नहीं है, केवल भारत में इसकी अहमियत है। अभी हाल में भाजपा कई नेताओं को हाई कमान ने केवल इसलिये झाड़ पिलाई है कि वे इंटरनेट पर ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। भारत में इंटरनेट के महत्व का इससे पता चलता है। भारत में इंटरनेट का विकास किस तेजी से हुआ है इसका उदाहरण केवल मिलता है कि सन् 2012 में देश में 20 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता थे जो 2015 के अंत तक बढ़ कर दुगना हो गये। जो बातें अबसे दस साल पहले अविश्वसनीय थीं वह अब लोगों के टेलीफोन में दिखायी पड़तीं हैं। नेता और राजनीतिज्ञ इंटरनेट का लाभ समझने लगे हैं और उन्होंने इससे जुड़े वायदे करने भी शुरू कर दिये हैं। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में मुफ्त वाई फाई की सुविधा देने का वादा किया था और उनकी विजय में इस वायदे की भूमिका भी थी। यही नहीं दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर पटना में चुनाव के दौरान वाई फाई ने नीतीश कुमार की विजय में बड़ी भूमिका निभाई थी। केजरीवाल और नीतीश जी मे फर्क यही था कि केजरीवाल ने चुनाव से पहले वादा किया ओर अभी तक पूरा नहीं हुआ जबकि नीतीश कुमार ने पटना में पहले वाई फाई मुहैय्या कराया उसके बाद वोट मांगे। इसका मतलब यह नहीं है कि वाई फाई या इंटरनेट के बल पर चुनाव जीता जा सकता है। लेकिन चुनाव घेषणा पत्रों में इसका जिक्र इसके महतव को तो बताता है।  अब नेता इंटरनेट के जरिये मतदाताओं को सम्बोधित करते हैं तथा 3-डी परदे पर सामने आकर हकीकत का भ्रम पैदा करते हैं। मोदी जी की सेल्फी डिप्लोमेसी तो एक मिसाल बन गयी। यही नहीं उन्होंने चीनी चाहनेवालों के लिये चीनी सोशल मीडया वीबो में अपना एक इकाउंट बनाया। यह कितना बड़ा अंतरविरोध है कि एक ऐसे देश में जहां इंटरनेट पर खुलकर बोलने पर बंदिशें हैं वहां एक विदेशी नेता उनके नेता से खुल कर मिल रहा है और वहां के लोगों से आभासी बातचीत कर रहा है।  मोदी जी के फेस बुक वाल पर लगी प्रोफाइल को 3.3 करोड़ लाइक मिले हैं जो अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बाद दूसरा है। ट्विटर में भी यही हाल है। यही नहीं अगर आप तनाव ग्रस्त हैं तो आपको समुचित आश्वासन के लिये भी मोदी उपलब्ध हैं। आप अपने स्मार्ट फोन पर नरेंद्र मोदी एप डाउनलोड करें और फिर देखें मजा।

इतना ही नहीं इस साल अप्रैल में भाजपा ने अपने लोकसभा सदस्यों की गतिविधि का विश्लेषण किया। यह देखा गया कि किस नेता ने अपना फेसबुक रखा है या नहीं यदि है तो वह सरकार और पार्टी के कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने के लिये क्या कर रहा है और उसके फेसबुक पर कितने लाइक्स आये हैं, वे अपना ट्वीटर हैंडल का कैसे उपयोग कर रहे हैं। जो उसमें कमजोर पाये गये उन्हें नसीहत दी गयी कि वे इसमें सुधार करें। रेलमंत्री सुरेश प्रभु जिस तरह से अपने ट्वीटर हैंडल का प्रयोग कर रहे हैं उससे वह सत्याभासी लगता है। वे शिकायतों इत्यादि के ज्लिये माइक्रो ब्लॉग की सिफारिश करते हैं। ट्रेन में घायल एक बच्ो की पुकार या फिर परिवार के  खो  गये  सदस्य के बारे में ट्वीटर पर इत्तिला मिलते ही जवाब आता है कि वे अपने लोगों आपकी मदद का निर्देश दे रहे हैं। हां इस तरह की मदद अकसर व्यक्तिगत होती है न कि आप रेलवे में व्यापक सुधार या बुलेट ट्रेन चलाने की मांग करें और उम्मीद करें कि रेल मंत्री का उत्तर आयेगा। हालांकि इंटरनेट की कुछ कमजाेरियां भी हैं लेकिन एक आभासी दुनिया और तीव्र सम्पर्क के लिये तो यह राजनीतिज्ञों के लिये महत्वपूर्ण बन गया है। लेकिन विडम्बना यह है कि अभी तीन चौथाई भारतीयों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है। यह एक ताकवर माध्यम है अपने नेताओं को करोड़ों लागों के लिये कुछ करने के उद्देय से तकाजे करने का , बशर्ते यह सार्वदैशिक हो और सुलभ हो। हमारे देश में शौचालय नहीं तो विवाह नही या बीवी नहीं जैसे उदाहरण तो देखने को मिल गये हैं पर कभी क्या ऐसा आयेगा कि इंटरनेट नहीं तो सरकार नहीं, या वोट नहीं। ीजिस दिन ऐसी जागरुकता आ जायेगी उसी दिन सरकार बाध्य हो जायेगी। इंटरनेट से सियासत हर जगह होती दिखेगी।

 

जिस तेजी से इसका प्रचलन बढ़ रहा है कि अब वह दिन दूर नहीं जब अन्य राजनीतिक दल भी व्यापक तौर आृन लाइन दिखायी पड़ें।

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