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Tuesday, July 12, 2016

वैचारिक शून्यता की ओर बढ़ता समाज

हमारा देश भी अजीब देश है। पैसे लिये खेले जाने वाले क्रिकेट मैच में अगर धोनी शून्य पर आउट हो जाते हैं तो उनकी तस्वीर पर जूतों की माला पहनायी जाती है और अगर कुम्बले दो शतक बना लेते हैं तो उनका दर्जा यार लोग भगवान के बराबर कर देते है। यही नहीं अगर यही कुम्बले और यही धोनी किसी अगले मैच में विलोम प्रदर्शन करते हैं तो गालियों और तालियों के रुख बदल जाते हैं। अगर सबकुछ सामान्य होता है तो यही समर्थक अपनी बातों में उनका ऐसे जिक्र करेंग, ऐसी ऐसी तुलनायें करेंगे जो सुनकर आपको पसीने आ जाएंगे। आप यकीन नहीं कर पायेंगे कि ये वही लोग हैं जो कल दूसरा रुख अपनाये हुये थे। हमारे देश में यह एक आदर्श निर्माण और पूजन विधा है जो हर दिन और हर वक्त चलता रहता है। खेल जो सचमुच पसंद करते हैं वे ऐसी स्थितियों से दूर रहते हैं. जो ऐसा नहीं करते वे समर्थक होते हैं। यहां यह मानसिकता केवल पुरुषों या लड़कों में ही नहीं होती वह लड़कियों और महिलाओं में भी होती है। यह केवल खेल तक ही सीमित नहीं है , राजनीति , सिनेमा और पूंजपतियों तक के बारे में हमारे देश में ऐसा होता है। ऐसे लोग उनकी गुशवत्ता में सुधार नहीं करते बल्कि केवल शोर मचाते हैं और उनकी तिजारत को बढ़ावा देते हैं। कहावात है ना कि जबतक बिल्लियां आपस में लड़ती हैं चूहे जश्न मनाते हैं। यह मानसिकता दुनिया भर में थोड़ी बहुत है पर हमारे देश में कुछ ज्यादा ही है। हमारे देश में हर स्तर पर है और हर क्षेत्र में है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की इसी मानसिकता का आरंभ से ही कुछ नेता लाभ उठा रहे हैं तथा हालातों का दोहन कर रहे हैं। विगत दोतीन वर्षों से यह साफ देखने में मिल रहा है। देश की एक बहुत बड़ी आबादी भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अंध भ क्त बन गयी है। इसी मानसिकता ने आम आदमी पार्टी को जन्म दिया और उसका आकर्षण था कि वह पार्टी आम आदमी को और अधिकार देगी। इस मंशा की आग में घी का काम किया मीडिया ने। हालात कुछ ऐसे बन गये कि एक बात निकलती है और उसके पीछे हजारों लोग खलड़े दिखते हैं या उसके विरोध करने वाले की तादाद हजारों में जमा हो जाती है। कभी 56 इंच के सीने की हवा बही और बिना सीना नापे 56 इंच के सीने का जुमला मुहावरे में बदल गया। यही नहीं मीदिया के किसी कोने सै एक नाम आया ‘पप्पू’ और ढाई आखर का यह नाम कुछ ऐसे मुहावरे में बदल गया कि एक राजनीतिक के नेता के लिये इह्तेमाल होने लगा। काई इन बातों पर सोचता नहीं है, तर्क की कसौटी पर उसे कसता नहीं है। किसी से पूछो कि वह ऐसा क्यों करता है तो जवाब मिलेंगे वे पूछने वाले को लाजवाब कर देंगे। अभी ताजा उदाहरण देखें। एक दल देश की आधी विपदा के लिये जवाहर लाल नेहरू को दोषी बताने में लगा है और देश की देश की आधी आबादी उसे मान रही है। पर ऐसे भी वाकये दिख रहे हैं कि जब  नेहरू पर आरोप लगाने वाली सरकार की विफलताओं को गिनाया जाता है इन्हीं मानने वालों में से बहुत लोग उसपर भी तालियां बजाते दिखते हैं। हैरत तो तब होती है जब उनसे यह पूछें कि वे लोग मोदी जी को क्यों इतना समर्थन दे रहे हैं तो कहेंगे मोदी जी ने अर्थ व्यवस्था में काफी सुधार किया और सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ावा दिया। अमरीका में उन्हें बेहद सम्मान मिला और वे दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। ये समर्थक नहीं समछा पा रहे हैं कि वे क्या गड़बढ़ कर रहे हैं। क्योंकि इसी देश मैं यह माननेवालों की संख्या कम नहीं है जिनका दृढ़ विश्वास है कि मोदी जी ने चुनाव के दौरान झूठे वादे किये और लोग ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं। ऐसा इसलिये होता है कि कि हमलोग या इस तरह के सोचने वाले दो मिनट रुक कर नहीं सोचते कि क्या गलत गलत है क्या सही है। जो कुछ सोशल मीडिया या इंटरनेट पर मिला उसे आगे बढ़ाया और विपक्षियों को गालियां देनी शुरू कीं। ऐसा करने वाले लोग यह नहीं जानते किरिजनीतिज्ञों की ओर से जो लोग सोशलमीडिया या इंटरनेट की जानकारी का प्रबंधन कारते हैं उनन्हें इस देश की कमजोरी का इल्म है और वे मुतमईन हैं कि यह आग बुझने वाली नहीं है। ऐसे समर्थक समूह नहीं जानते कि लोकतंत्र कोई क्रिकेट मैच नहीं है कि आप जिधर चाहे उस पक्ष की ओर से तालियां बजायें। अगर आप किसी पार्टी का समर्थन करते हैं तो इसका कारण फेसबुक या अन्य सोशलमीडिया या इंटरनेट पर दी गयी जानकारी नहीं होनी चाहिये। अगर आपने किसी को वोट दिया है और उस वोट से सरकार बनी है तो उसका समर्थन करना आपका कर्तव्य है पर आपका यह भी कर्त्तव्य है कि उसकी कमियों की आलोचना ठीक से सुनें और उस पर तर्कपूर्ण विश्लेषण करें। अगर वह सही है तो उसका समर्थन करें। जिसदिन ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी उसी दिन हमारे राजनीतिज्ञ यह काम करने को बाध्य हो जायेगे।  आज जो हालात है उससे लगता है कि हमारे समाज में , आम आदमी के समूह में वैचारिक शून्यता की ज्स्थिति उत्पन्न हो रही है।

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