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Thursday, July 14, 2016

न्याय का तमाचा

कांग्रेस के ग्रह लगता है फायदे के घरों में लौट रहे हैं। कांग्रेस को लग रहा था कि बगैर चुनाव के वह एक एक कर राज्यों से बाहर होती जा रही है। लेकिन अचानक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के रूप में कांग्रेस के  सितारे गर्दिश से निकले और पहले उत्तराखंड में और बुधवार को अरुणाचल में उसकी सरकार बहाल हो गयी, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उसे भाजपा के खिलाफ एक मसाला भी दे दिया। कांग्रेस अब यह कह सकती है कि भाजपा ने उसके साथ नाजायज किया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर भाजपा ने हरत जाहिर की है और कहा है कि ‘बहुमत वालों को विपक्ष में बैठने को कहा जा रहा है, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लोकतंत्र को बल मिल रहा है या वह कमजोर हो रहा है।’ सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल में तुकी सरकार को हटाने के राज्यपाल के निर्णय को खारिज कर दिया और राष्ट्रपति शासन के पहले की स्थिति को बहाल कर दिया। इसका मतलब है कि वहां कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आ गयी और तुकी दुबारा मुख्य मंत्री बन गये। लेकिन संभवत: यह सरकार ज्यादा दिन चलेगी नहीं क्योंकि तुकी के विरोधी तो अभी भी सक्रिय हैं। 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के महज 26 विधायक है। 21 विद्रोही हैं , 11 भाजपा के हैं और दो निर्दलीय हैं। अब अगर कांग्रेस सदन में अपना बहुमत साबित करती है तो सरकार में टिकी रहेगी वर्ना फिर से उठेगा सियासी बवंडर। यही कारण है कि तुकी विद्रोही कांग्रेस विधायकों को पार्टी में लौट आने को कह रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के लिये यह एक बड़ी कामयाबी है। इस साल के शुरू में चुनाव हुये थे और कांग्रेस की जो दुर्गति हुई वह तो किसी से छिपी नहीं है। इसके बाद संसद के मानसून अधिवेशन में गुड्स एंड सर्विस टैक्स को लेकर उसके अलग थलग पड़ जाने की आशंका है, ऐसे में उत्तरांचल तथा अरुणाचल प्रदेश के बारे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उसे ना केवल नैतिक बल प्रदान करता है बल्कि संसद में बोलने का मसाला भी दे दिया है। कांग्रेस को ऐसा ही तो चाहिये था क्योंकि कोर्ट ने अपने फैसले के साथ अरुणाचल  के राज्यपाल के बारे में भी कठोर टिप्पणी की है। अरुणाचल के राज्यपाल जे पी राजखोवा भाजपा द्वारा नियुक्त किये गये थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ‘राज्यपाल की यह कार्रवाई असांविधानिक है और राज्यपाल को किसी पार्टी के पक्ष में सोचना नहीं चाहिये। विधानसभा में जो कुछ भी हो रहा है उससे राज्यपाल को अलग रहना चाहिये।’ जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी राज्य पाल और तुकी सरकार की अंत:क्रिया पर इसी तरह का निर्णय दिया है। जस्टिस लोकुर ने कहा है कि ‘सांविधानिक प्राधिकारियों के बीच अन्तर्व्यक्तिक सम्बंधों में आत्मीयता का पूर्ण अभाव दुर्भाग्यपूर्ण है। इसका परिणाम शासन पर तमाचे के रूप में दिख रहा है। विधान सभा को एक जिम्मेदार सरकार के सिद्धांतों को अपनाना चाहिये।’ संयोगवश यह फैसला उसी दिन आया जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्वोत्तर गणतांत्रिक गठबंधन (एन ई डी ए) की शुरूआत करने की तैयारी में थे। इसका उद्देश्य था उस क्षेत्र की कांग्रेस सरकारों को अपदस्थ करना। अब इस फैसले के बाद कांग्रेस के पास राज्यपाल राजखोवा के इस्तीफे की मांग कर सकती है। सुप्रीम कार्ट के फैसले से एन ई डी ए का साहस थोड़ा घटेगा जरूर पर जिन कारणों के चलते एन ई डी ए का गठन हुआ है वे कारण तो मौजूद हैं। कांग्रेस द्वारा उस इलाके की लम्बे अरसे तक अनदेखी किये जाने का यह नतीजा था। इस फैसले का सबसे बड़ा आघात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कानून विशेषज्ञ टीम को लगा है। इस टीम में अरूण जेटली जैसे वकील , मुकुल रोहतगी जैसे महाधिवक्ता सहित कई लोग हैं तथा न्यायपालिका में भी अच्छा रसूख है। यह सब कुछ धरा रह गया। अब न्यायिक सुधार की जो प्रक्रिया आरंभ होने वाली है उसे भी आघात पहुंचेगा। यह भी हो सकता है कि विधि मंत्री सदानंद गौडा को बाहर की राह देखनी पड़े और उनकी जगह रविशंकर प्रसाद को लाया जाय। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इसे असांविधानिक कहा है तो यहां सबसे बड़ा प्रश्न है कि क्या मोदी जी की कानून टीम नहीं जानती थी कि वह क्या करने जा रही है।

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