CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, July 27, 2016

लोकतंत्र में हुकूमत और करप्शन

आंख पर पट्टी रहे अक्ल पर ताला रहे

अपने शाहे वक्त का यूं ही मर्तबा आला रहे

जब मोदी जी की सरकार बनी थी तो उन्होंने एक नारा दिया था कि ‘कम शासन या ज्यादा सुशासन।’ मोदी जी को भारी बहुमत मिला और उसके बाद जब सुशासन की बात आयी तो सरकार और शासन की परिभाषाएं बदल गयीं। विख्यात दार्शनिक बट्रेंड रसल  का कहना था कि सत्ता और सियासत में बड़ा प्रगाढ़ संबंध होता है और उस सम्बंध का कारण होता है दौलत। यह अवधारणा करीब 75 वर्ष पुरानी है पर अभी भी मानेखेज है। क्योंकि सत्ता – सियासत- दौलत , इन तीनों के बिना समाज में भ्रष्टाचार नही पनप सकता है। भ्रष्टाचार एक जहर है जो दौलत का विनाश कर देता है और मानव समुदाय के लिये विपत्तियां पैदा करता है। ब्रिटिश इतिहासकार लार्ड एक्टन ने कहा था ‘सत्ता भ्रष्ट बनाती  है। सत्ता का चरित्र ही भ्रष्ट करना है लेकिन चरम सत्ता चरम तौर पर  भ्रष्ट करती है।’  लार्ड एक्टन ने एक मुहावरा गढ़ा था ‘ग्रेट मेन’ यानी महान हस्तियां। उस समय इस शब्द का इशारा उनलोगों की ओर था जो उच्च पदों पर रहकर सत्ता की धारा को प्रभावित करते थे। आज यह शब्द यकीनन बड़े नेताओं और अफसरशाहों के लिये उपयोग किया जाता है। एक्टन का दावा था कि बड़े लोग यानी महान हस्तियां सदा ही बुरी रहीं हैं हालांकि व्यवहारिक तौर पर वे सही दिखती रहीं हैं।

तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे

आये दिन अखबार में प्रतिभूति घोटाला रहे

 अगर ऐसा नहीं होता तो लोकतंत्र में जहां सत्ता ताकवतवर होती है वहां गलत लोग कैसे निर्वाचित हो जाते हैं। सत्ता, सियासत, दौलत और करप्शन में विश्लेषणात्मक रिश्ता क्या है? इसका अगर आर्थिक विश्लेषण किया जाय और  संक्षेप में कहा जाय तो कह सकते हैं कि हुकूमत  की ताकत आर्थिक गतिविधियों को प्रबावित कर एक आदमी को दौलत कमाने के मौके मुहय्या कराती है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि अर्थ व्यवस्था पर हुकूमत की पकड़ जितनी मजबूत होगी सियासत के जरिये दौलत कमाने के मौके उतने ही ज्यादा मिलेंगे। ये मौके ही गलत लोगों को राजनीति की तरफ खींचते हैं।

रहनुमा धृतराष्ट्र के पद चिनह पर चलने लगे

आप चुप बैठे रहें ये कौम की रुस्वाई है

इसको ऐसे समझा जा सकता है कि एक खास राजनीतिक पद के कारण बेहिसाब धन कमाने का अवसर प्राप्त होता है। अब चुनाव में उस पद के लिये जो पूर्ववर्ती आदमी था वह जितनी दौलत खर्च कर सकता है एक ईमानदार आदमी कैसे करेगा। एक भ्रष्ट इंसान ही चुनाव में अपने प्रतिद्वद्वी को धन के बल पर पराजित कर सकता है क्यों कि पद पर पहुंच कर वह उस धन को दुबारा पा सकता है।एक ईमानदार आदमी कहां से उतना धन लायेगा।

जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी​ है

एक पहेली सी दुनिया ये गल्प भी है इतिहास भी है

इसी तरह हुकूमत की ताकत आगे चल कर आर्थिक शक्ति में बदल जाती है। कह सकते हैं इससे अर्थ व्यवस्था का राजनीति करण हो जाता है और आर्थिक नीतियों में वैसी ही बातों को स्थान मिलता है जो राजनतिक रूपसे लाभदायक हों।  इसके कारण समन्वित आर्थिक लाभ मिलता ही नहीं और अगर मिलता भी है तो बहुत सीमित मिलता है। जब अर्थ व्यवस्था का राजनीतिकरण होता है तो इसमें भ्रष्टाचार और आपराधिकता को बढ़ावा मिलता है क्योंकि अंतत: धन ही यह तय  करता है कि चुनाव कौन जीतेगा। यहां कहने का तमलब है कि भ्रष्टाचार अनअभिप्रेत पार्श्व प्रभाव ही नहीं है नियंत्रित अर्थ व्यवस्था द्वारा गढ़ी गयी एक स्थिति है।

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें

संसद बदल गयी है यहां की नखास में

राजनीतिज्ञ अक्सर दावा करते हैं कि वे परोपकार और जनहित के लिये काम करते हैं पर शायद ही कभी वे नीतियों को सामाजिक तौर पर लाभकारी बनाते हैं। इसके दो कारण हैं पहला कि आम जनता को यह मालूम है कि किस तरह की नीतियां  उनके कल्याण के लिये लाभदायक हैं और दूसरा कि राजनीतिक नेता आम जनता की इच्छा के मुताबिक नीतियां तैयार करने को प्रवृत रहते हैं। लेकिन दोनो मामलों में आम आदमी भ्रमित है। उएसे यह गुमान भी नहीं होता कि कौन सी नीति अंतिम तौर पर उसके लिये लाभप्रद होगी और दूसरे वे नहीं जानते कि आम जनता की किस भलाई वाली नीति में नेताओं का लाभ है। यहां कहने का यह अर्थ नहीं है कि अच्छी नीतियां बनतीं ही नहीं। बनती हैं लेकिन अच्छा या भला करना ही प्राथमिक उद्देश्य नहीं होता।

सदन में घूस देकर बच गयी कुर्सी तो देखोगे

वो अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे

मसलन, अमरीका सबसे धनी मुल्क है और भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है। निश्चय ही दोनों देशों में अर्थ तंत्र का आकार बहुत व्यापक है और इसके कारण चुनाव में भारी प्रतिद्वंदिता होती है। सरकार का आकार जितना बड़ा होगा प्रतिद्वंदिता उतनी ही ज्यादा होगी। लुडविग ने लिखा है कि लोकतंत्र बहुमत की इच्छा और योजना के अनुसार शासन पद्धति की गारंटी देता है पर साथ ही यह गलत नीतियों और गलत आदर्शों का शिकार होने से बहुमत को नहीं बचा सकता।

जो व्यवस्था को बदलने के लिये बेताब थे

कैद उनके बंगले में इस मुल्क की रानाई है

0 comments: