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Wednesday, September 21, 2016

उड़ी हमले के बाद अब

संयुक्त राष्ट्र महासभा में तू तू मैं मैं जारी है। भारत कुछ कहे पहले इसके पाकिस्तान छाती पीट पीट कर रहना शुरू कर दिया है कि ‘कश्मीर में अपनी ज्यादतियों पर दुनिया की निगाह फेरने के लिये इंडिया ने उड़ी हमला खुद गढ़ा है।’ यह पहली बार नहीं हो रहा है। इस बार तो भारत के बारे में बात करने के लिये प्रधानमंत्री नवाज शरीफ काफी आगे तक  जा सकते हैं। वे 1948 में राष्ट्र संघ द्वारा पारित जनमत संग्रह के प्रस्ताव को अमल में लाने की बात कर सकते हैं। शायद दुनिया को यह मालूम नहीं है कि पाकिस्तान कश्मीर पर जो कुछ बोलता है वह सही नहीं है। सश्मीर का जहां तक सवाल है वह 1947 में भारत के साथ जुड़ा और जिस राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव को वह दिन रात झुनझुने की तरह बजाता रहता है, उस प्रस्ताव में पाकिस्तान को हमलावर बताया गया है तथा कश्मीर खाली करने की सलाह दी गयी है। यही नहीं जिस जनमत संग्रह की वह दुहाई देता है वह शिमला समझौते के बाद निरस्त हो चुका है और पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से की डिमोग्राफी में काफी तब्दीलियां कर दी हैं इसलिये जनमत संग्रह का कोई मसला ही नहीं है। इसके बावजूद 2009-10 में इंगलैंड के रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स और किंग्स कॉलेज ने वहां एक जनमत संग्रह किया था जिसमें 98 प्रतिशत कश्मीरी पाकिस्तान के साथ नहीं रहना चाहते थे जबकि अधिकृत कश्मीर के 50 प्रतिशत लोग भी पाकिस्तान के साथ नहीं रहना चाहते थे। यही नहीं जिस पैलेट गन से होने वाली हानि के बारे में पाकिस्तान कहता चल रहा है वह आतंकी हमलों तथा बलोचिस्तान पर हवाई हमलों से होने वाली हानि से बहुत कम है। उड़ी हमला पाकिस्तान ने जैश ए मोहम्मद से करवाया। आतंकियों ने डीजल के भंडार पर हथगोले फेंक कर आग लगादी और फिर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इससे चारो तरफ आग लग गयी और फौजी शहीद हो गये। इस हमले के जवाब में फौजियों की कार्रवाई से चारों आतंकी मारे गये।  इनके पास से पाकिस्तान में बने आर डी एक्स , टी एन टी ओर हथगोले , अंडर बैरेल ग्रेनेड लांचर, एक 47 रायफलें इत्यादि बरामद हुईं हैं। पठानकोट में हवाई अड्डे पर हमले और गुरदासपुर हमला भी जैश ए मोहममद ने ही किया था। जुलाई में जारी राष्ट्र संघ सहायता मिशन की एक रपट में कहा गया था कि अफगानिस्तान में जैश ए मोहम्मद और लश्करे तैयबा एकजुट होकर काम कर रहे हैं। इन्होंने ही काबुल पर हमला किया था जिसमें 80 लोग मारे गये थे। हालांकि इस हमले की जिम्मेदारी आई एस आई इस ने अपने ऊपर ली है पर मारे गये आतंकी पाकिस्तानी थे ओर लश्कर तथा जैश से उनके सम्बंधों के सबूत भी मिले थे। इसके बावजूद अमरीका पर आर्थिक बंदिशें नहीं लगायी जा रहीं हैं और ना उसे ‘आतंकी मुल्क’ घोषित किया जा रहा है। अमरीका के एक सीनेट कमिटी ने भी पाकिस्तान पर दोहर चाल चलने का आरोप लगाया था और साफ कहा था कि अफगानिस्तान में अमरीकी सैनिकों को मारने में उसकी भूमिका है। अमरीकी और नाटो जनरल तो अर्से से पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर हमले सिफारिश  करते आ रहे हैं। लेकिन अमरीका न जाने क्यों ऐसा नहीं कर रहा हे। अमरीका का मानना है कि पाकिस्तान एक बड़ा देश है। हालांकि हिलेरी क्लिंटन जब अमरीका की विदेश सचिव थीं उस समय उन्होंने पाकिस्तान से साफ कहा था कि ‘वह आतंक के ​खिलाफ जंग में दुनिया के साथ हो जाय वरना उसे बम मार कर धूल में मिला दिया जायेगा। ’ पता नहीं किन कारणों से अमरीका पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा? क्या कारण है कि वर्तमान प्रशासन हिलेरी क्लिंटन के सुर में नहीं बोल पा रहा। जबकि पाकिस्तान के परमाणु बम की धौंस को खत्म करना जरूरी है। जार्ज बुश पाकिस्तान को लेकर काफी मुखर थे। उनका ‘एक्सिस ऑफ एविल’ वाला जुमला मशहूर हो गया था। वे इराक के बाद सीरिया, लेबनन, लीबिया, सोमालिया, सूडान और ईरान की खबर लेना चाहते थे। 27 जुलाई 2016 को एफ बी आई के निदेशक जेम्स बी कॉमी ने कहा था कि आई एस पर सामयिक विजय का बहुत बुरा असर यूरोप और अमरीका पर पड़ सकता है। एनके इस सामयिक विजय शब्द का बहुत व्यापक अर्थ है। पाकिस्तान ने कभी भी बारत से परम्परागत जंग नहीं जीती है। उसे यह भी मालूम है कि भारत हमला नहीं करेगा। इसलिये वह दुनिया भर में अपने परमाणु बम वाली पूंछ फटकारता चलता है। पाकिस्तानी अातंक से तीन देश सीधे प्रभावित हैं। वे हैं भारत, अफगानिस्तान ओर इरान। सबसे बड़ी जरूरत है कि दुनिया में कूटनीतिक तौर पाकिस्तान का कद छोटा किया जाय। इसके लिये जरूरी है कि ये तीनों देश मिलकर कूटनीतिक प्रयास शुरू कर दें। इसके लिये सैनिक, आर्थिक तथा कनितिक कोशिशों के तहत सूचना युद्ध आरंभ कर दिया जाय। पाकिस्तान की काली करतूतों को दुनिया के सामने लाया जाय और असका कद छोटा किया जाय। कूटनीतिक युद्ध के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।

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