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Tuesday, September 6, 2016

कश्मीर में भरोसे का लौटना जरूरी

कश्मीर में शांति कायम करने के प्रयास स्वरूप श्रीनगर में आयोजित सर्वदलीय शिष्ट मंडल की बैठक बिना किसी नतीजे खत्म हो गयी। इस बैठक की अध्यक्षता गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की थी। बैठक के दौर शिस्ट मंडल के कुछ सदस्यों ने अलगाववादी दलों के नेताओं को भी वार्ता की मेज पर लाने का प्रयास किया। पर , अलगावादी दलों के प्रतिनिधि वहां नहीं आये। वार्ता से कोई नतीजा नहीं निकला और खिसियाये राजनाथ सिंह नेकहा कि अलगाववादियों के व्यवहार ने दिखा दिया कि वे कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत में विश्वास नहीं करते।  हालांकि गृह मंत्री ने यह नहीं माना कि  जताई कि यह मिशन नाकाम हो गया है। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों और समूहों के साथ ‘‘बहुत अच्छा संवाद’ हुआ है। प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में बैठक करेगा और भविष्य की कार्य योजना पर चर्चा करेगा। कश्मीर दौरा पूरा करने से पहले सिंह ने अलगाववादियों को कड़ा संदेश दिया और इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर हमेशा भारत का अभिन्न हिस्सा बना रहेगा। उधर जी 20 शिखर सम्मेलन मेंप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान पर निशाना साधा और कहा कि आतंकवाद का प्रायोजन करने वालों को प्रतिबंधित और अलग-थलग किया जाए और उम्मीद जताई कि इस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय एकसाथ बोलेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि दक्षिण एशिया में ‘‘एक अकेला देश’ ‘‘आतंक के एजेंट’ फैला रहा है। उन्होंने जी20 के समापन सत्र के दौरान कहा, हम आशा करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय एकसाथ बोलेगा और कदम उठाएगा तथा इस समस्या से लड़ने के लिए तत्कालिक आधार पर कदम उठाएगा। जो आतंकवाद का प्रयोजन और समर्थन करते हैं उनको अलग-थलग और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। उनको पुरस्कृत नहीं किया जाना चाहिए। अब जब्कि सरकार के लचीले रुख का हुर्रियत ने सम्मान नहीं किया तो सरकार के पास एक तरफा कार्रवाई करने के कई रास्ते खुले हैं। इनमें जो सबसे उचित रास्ता कहा जा सकता है वह कि सबसे पहले सड़क पर उतरने वाले प्रदर्शनकारियों को घर वापस भेजा जाय और इसके लिये घातक उपाय नहीं किये जाएं। दूसरे सुरक्षा बलों के हमलों में मारे गये लोगों के परिजानों को उचित मुआवजा देने के उपाय किये जाएं। साथ ही सैनिक अदिकार कानून की सहानुभूतिपूर्वक समीक्षा की जाए। इसके साथ ही संस्थागत वार्ता आरंभ की जाय जिससे कश्मीर की जनता में भरोसा पैदा हो सके। इसके बाद आर्थिक मामलों को समाहित किया जाय। अगर कश्म​र से हम इतनी मुहब्बत करते हैं कि इसकी चर्चा किये बिना एक ​दिन भी नहीं रह सकते हैं तो हमारे लिये जरूरी है कि हम वहां शाति बहाल करें। यह जिममेदारी सरकार- केंद्र और राज्य- की है। यह तय है कि कश्मीरी भी खुश नहीं हैं। जिन हाथों में किताबें होनी चाहिये वे हाथ पत्थर फेंक रहें हैं। घरों में बंद माओं की आंखें देखिये कैसी निराशा में डूबी हैं। मस्जिदें जहां से अल्लाह को सदा दी जातीं थीं आज वहां से हमलों की आवाज सुनाई पड़ रही है। वहां तैनात सिपाही अपना नाम बताने में डर रहे हैं दुकाने बंद हैं कारोबार ठप है। यह आने वाले दिनों में संकट के संकट के संकेत हैं। ये बता रहे हैं कि एक कौम कुछ दिनों में इतनी गरीब हो जायेगी जिसे खाना और दवा के नाम पर कोई बरगला सकता है। घाटी में फहरते हुये हरे झंडे उनकी मंशा के सबूत नहीं हैं। कश्मीरी भ्रमित हैं और उन्हें राह पर लाना जरूरी है।  आज कश्मीर से जो खबरें आ रहीं हैं उनसे लगता है कि सरकार अलग जंग लड़ रही है, लोग अलग आंदोलन कर रहे हैं। जितने बी पक्ष हैं सब अलग अलग लड़ाई में मशरूफ हें। कोई बुरहान वानी के मामले  को लकर चल रहा है तो कश्मीरी पंडितों के मामले  को तो कई इस पूरी लड़ाई में मारे गये सुरक्षा सैनिकों के मसले को। सुरक्षा बलों पर बवलात्कार के आरोप लग रहे हैं , घाटी से कई लोग लापता हैं। इस ताजा स्थिति से लाभ उठा कर पाकिस्तानी आतंकी ततवण् और आइ एस आइ के गुर्गे घाटी में भीतर तक दास आये हैं और उनहें छांट कर निकालना तबतक संभव नहीं होगा जब तक वहां के लोग सहयोग नहीं करेंगे। इस सहयोग के लिये सबसे जरूरी है कश्मीर में भारत के प्रति भरोसा लौटना। यह आसान नहीं है और ना जल्दी हो सकता है। ऐसे वार्ता ही एक मात्र उपाय है जो इस बंद राह में दरवाजे खोल सकती है।   गृहमंत्री राजनाथ सिंह का यह कथन तारीफ के काबिल है कि वार्ता के लिये हमारी खिड़कियां ही नहीं दरवाजे भी​ खुले हैं।

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