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Friday, September 9, 2016

गैस सब्सिडी का सच

अभी कुछ दिन पहले लेखा महानियंत्रक की रपट में कहा गया है कि लोगों द्वारा स्वेच्छा से रसोई गैस पर सब्सीडी छोड़े जाने से सरकार को केवल दो हजार करोड़ रुपयों का लाभ हुआा। हालांकि संसद के मानसून सत्र में सरकार ने देश को बताया था कि इससे 22 हजार करोड़ का लाभ हुआ था। लेखा महानियंत्रक की रपट में कहा गया है कि कुछ लाभ तेलों और गैस की कीमत में गिरावट की वजह सेभी हुआ है। सन् 2014 में सरकार ने गैस सब्सीडी की रकम सीधे बैंक में भेजने की योजना की शुरूआत की थी। प्रधानमंत्री ने पिछले साल बताया था कि गरीबों का सब्सीडी के नाम पर दिये जाने वाले धन को बिचौलिये खा जाते थे और इसके चलते सरकार को 15 हजार करोड़ रुपयों का घाटा होता था। अब उस रकम को भी बचा लिया गया। लेकिन सरकार का यह दावा सही नहीं है। साथ ही सरकार की इस योजना से गरीबों को लाभ भी नहीं है। क्योंकि सरकार ने तेल और गैस की कीमतों को तय करने का अधिकार बाजार की ताकत को दे दिया है। भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 80 प्रतिशत आयात करता है। अब जून 2014 से जनवरी 2015 के बीच तेल की कीमतों में गिरावट आयी और अभी भी भी बहुत कमबढ़ी है। पर चूंकि हमारी सरकार की नीति बाजारोन्मुखी है और इसलिये तेल की कीमतों के गिरने का लाभ गरीब जनता को मिल नहीं रहा है और ना मूल्यवृद्धि को नियंत्रित करने में उसकी कोई भूमिका दिखती है। गत 1 जुलाई को केंद्रीय तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने चुपचाप सरकारी तेल कम्पनियों को राशन की दुकान से बंटने वाले किरासन तेल की कीमत अप्रैल 2017 तक हर महीने 25 पैसे प्रति लीटर बढ़ाने की इजाजत दे दी। राशन की दुकानें राज्य सरकारें चलाती हैं। इधर देश में पेट्रोलियम उत्पादों पर जो सब्सीडी मिलती है उसका 40 प्रतिशत केवल किरासन तेल के मद में जाता है। अब यह कीमत लगभग 5 वर्षों के बाद बढ़ी है। इससे सब्सीडी में  भरी वृद्धि होगी और उसका कुछ भाग सरकारी तेल कम्पनियों को भी वहन करना पड़ेगा। इस निर्णय की सार्वजनिक घोषणा नहीं हुई क्योंकि किरासन गरीबों का ईंधन है और इसकी कीमत बढ़ाने की घोषणा करने से लोकप्रियता पर असर पड़ सकता है। किरासन का उपयोग आम तौर पर खाना बनाने और रोशनी के लिये किया जाता है। लेकिन गैर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि किरासन तेल की बहुत बड़ी मात्रा का उपयोग डीजल में मिलावट के लिये किया जाता है। इसे रोकने के लिये कई उपाय किये गये। यहां तक कि तेल को नीले रंग में रंग दिया गया। तब भी उसकी मिलावट बंद नहीं हुई। डीजल और पेट्रोल में किरासन तेल मिलाने से काफी बचत है। क्योंकि राशन की दुकानों में बिकने वाले तेल की कीमत काफी कम है। पाठकों को याद होगा कि डीजल पेट्रोल में किरासन तेल मिलाने से रोकने की सख्ती करने वाले अधिकारी मंजुनाथ को लखीमपुर खीरी में जिंदा जला दिया गया था। गैस की कहानी कुछ अलग है। सरकार गैस कु सब्सीडी सीधे बैंक में भेज कर अपनी पीठ ठोक रही है। लेकन सब्सीडी से प्राप्त होने वाले लाभ को लेकर जो दावा सरकार कर रही है उसकी हवा लेखा महापरीक्षक की रपट ते निकाल दी​। बाद में सरकार ने अपने आंकड़ों को सुधारा। सरकार ने कहा है कि दोहरे गैस कनेक्शन या अप्रयाज्य गैस कनेक्शन इत्यादि को पकड़े जाने के बाद सरकार को 21 हजार 260 करोड़ रुपये की बचत हुई है। लेकिन सरकार के पास लेखा महापरीक्षक के इस तर्क का कोई उत्तर नहीं है कि 2014 में प्रति कनेक्शन 6 सिलींडर की खपत थी और सरकार ने सभी बंद पड़े और डुप्लीकेट कनेक्शनों की 12 के दर से खपत की सब्सीडी जोड़ ली। यानी बचत को सीधा दोगुना आकलित किया गया। सरकार चलू योजना को प्रभावशाली ढंग से लागू किये जाने और भ्रष्टाचार रोकने की बजाय मूल्यों को बढ़ने दे रही है। सरकार का अनुमान है कि इससे कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में इजाफा होगा तब सब्सीडी के इस प्रचार की भी हवा निकल जायेगी।

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