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Sunday, October 2, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अब

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अब
सीमा पर तनाव है। पाकिस्तान के आतंकी समूह मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घेषित करने के भारत के आवेदन को राष्ट्र संघ में चीन ने वोटो कर दिया मामला लटक गया। सार्क सम्मेलन रद्द हो गया और दोनो देश के नेता उत्तेजक बयानबजियों में लिप्त हैं। बात यहा तक बढ़ गयी हे कि दुश्मन परमाणु विकल्प की भी बातें करने लगा है। चारो तरफ उत्तेजना भरा एक असंतुलन दिख रहा है। लेकिन सच यह है कि कम से कम भारत पूरी जंग नहीं चाहता। इसके दो कारण हैं। पहला कि हम भारतीय स्वभाव से हिंसक नहीं हैं , अमन पसंद लोग हैं। दूसरा यह कि परमाणु हथियारों का खतरा। हमें मालूम नहीं कि उस पार जो लोग बैठे हैं उनमें कौन परमाणु हथियार के उपयोग का हुक्म देने का अधिकारी है। यकीनन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तो नहीं हैं। वे केवल कहने को प्रधानमंत्री हैं। ऐसी हालत में जोखिम कौन ले। जापान पर अमरीका द्वारा परमाणु बम गिराने के बाद विख्यात दार्शनिक बट्रेंड रसल ने अपनी मशहूर पुस्तक ‘फेट ऑफ दी अर्थ’  में साफ कहा है कि ‘यह एक शस्त्र है जिसके बटन पर अगर किसी सिरफिरे ने उंगली रख दी तो सृष्टि को खतरा पैदा हो जायेगा।’ पाकिस्तान के बारे में भी यही बात है कि आखिर कौन है जो परमाणु हथियारों के इस्तमाहल का हुक्म देने का अधिकारी है। क्या वे चुनिंदा जनरल जिन्हें जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है या सेना अधिकारियों और आतंकियों के समूह को यह अधिकार है या उनींदे मुल्लाओं को ये हक हासिल है। कोई नहीं जानता। यह तो सब जानते हैं कि अगर जंग होती है ओर परमाणु हथियार का उपयोग होता है तो हफ्ते भर में जितनी बर्बादी होगी उसका अनुमान नहीं है। यह नामुमकिन नहीं है। अतएव सोचिये कि हम कैसी दुनिया में रहते हैं?पाकिस्तान को अलग थलग छोड़ देने की बात दुनिया वाले कह रह रहे हैं। इसी समरनीति के तहत सार्क सम्मेलन रद्द हुआ। लेकिन इससे फायदा क्या होगा। आतंकवाद पाकिस्तान की रणनीति है और हमारे देश के निर्दोष को मारना उसका शगल है जो मुम्बई से लेकर उड़ी तक साफ दिख रहा है। अब ऐसे में क्या किया जाय। यह तो तय है कि पाकिस्तान अब कोई मुल्क नहीं रहा वह परमाणु हथियारों से लैस एक आतंकी क्षेत्र है। जैसे अलकायदा का एक इलाका था, तालिबान की एक टेरीटरी थी या आइ एस आई एस का एक गढ़ है। ये ऐसे लोगों का समूह है जो दुनिया के लिये खतरा है। हमें दुनिया को यह बताना चाहिये और इस खतरे से वाकिफ करना चाहिये। उससे कूटनीतिक सम्बंध खत्म कर दिया जाय। आतंकियों के लिये हम दिल्ली में क्यों जगह दें और उसकी पार्टियों हमारे नेता क्यों शामिल हों। क्या कभी आपने जैश ए मुहम्मद , अलकायदा या आई एस की पार्टी में किसी नेता या मंत्री या प्रमुख नागरिक को शामिल होते हुये देखा सुना है। इसके साथ ही पाकिस्तान से भाईचारा वाला प्रसंग खत्म किया जाना चाहिये, क्योंकि अगर हम लड़ते रहे, हर साल हमारे सौ पचास लोग मारे जाते रहे और तब भी हम भाईचारा की बात करते हैं तो भरोसा उठ सकता है देश की जनता का या दुनिया का। दुनिया को एक विभ्रम पैदा हो सकता है। आज अपने देश के एक कलाकार ने कहा कि कलाकार आतंकी नहीं होता। लेकिन यह तो बताना होगा कि वह जनता का हिस्सा है और वही जनता ऐसे गैरजिम्मेदार लोगों को समर्थन देती है। हमें दुनिया को अपनी तरफ करना होगा ताकि पाकिस्तान की जनता यह समझ सके कि वे जिन्हें अपना मुल्क सौंप रखे हैं वे गलत लोग हैं और हमें नाकामयाबी की तरफ ले जा रहे हैं। जिस दिन वहां की जनता यह यकीन कर लेगी उसीदिन पाकिस्तान अपनी ये हरकतें बंद कर देगा। वो कहते हैं न कि ‘जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।’ इसका साफ मतलब है कि गलत करने वाले के गलत किरदार के बारे में दुनिया को जानकारी मिले। तोप खुद हार जायेगी। पाकिस्तान को हराने का एकमात्र तरीका यही है कि उसके गलत कामों से उसकी जनता वाकिफ हो, दुनिया को इसकी जानकारी हो।

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