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Wednesday, October 5, 2016

प्रतिमान का बदल जाना

प्रतिमान का बदल जाना

विख्यात सामरिक विशेषज्ञ एल्विन जे कोट्रेल ने अपनी पुस्तक ‘प्रोट्रैक्टेड कन्फ्लिक्ट’ में लिखा है कि ‘ हमारे काल में युद्ध एक एसी अलग सनक नहीं है जो इतिहास की सामान्य शांतिपूर्ण धारा को प्रभावित करती है बल्कि अमन का इतना अभाव हो जाता है कि हालात जंग में बदल जाते हैं। ’ अब भारत पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव पर गौर करें। उड़ी घटना के बाद देश के लगभग हर कोने से पाकिस्तान को सबक सिखाये जाने की मांग होने लगी। इसी मांग के परिप्रेक्ष्य में सर्जिकल हमला किया गया जिसका उद्देश्य वह नहीं था जो बताया गया। लेकिन इससे क्या हुआ। क्या पाकिस्तान ने अपने जेहादी उत्पादन बंद कर दिये। नहीं इस  हमले के महज चार दिन में पाकिस्तान ने  6 बार युद्धविराम के भारी उल्लंघन किया और दो बार नियंत्रण रेखा को पार करने के प्रयास किये।  इनमें बी एस एफ का एक जवान मारा गया और एक घायल हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय सेना के हमलों का जेहादियों पर कोई असर नहीं पड़ा। साथ ही इन घटनाओं को यदि ठीक से समझा जाय तो भारत के सामरिक समुदाय की अपेक्षाओं के बारे में भ्रम महसूस होगा। यह विचार कि एक सर्जिकल स्ट्राइक या इसी तरह का कोई अकेला कदम चाहे वह सैन्य उपाय हो या अन्य साथ ही वार्ता या कोई हैरतअंगेज समझौता जिससे जेहादियों या आतंकियों को पाकिस्तान आने से रोक लेगा यह एक भ्रम है। यही नहीं यह भी कहने वाले कम नहीं हैं कि  कश्मीर समस्या का हल वार्ता से हो सकता है। एक तरह से यह प्रहसन है। क्योंकि इन लोगों ने आतंकवाद के 25 वर्ष और पाकिस्तान के बनने के 70 वर्षो की अदावत का इतिहास जरूर देखा समझा होगा। वर्तमान में सर्जिकल स्ष्ट्राइक के बाद मीडिया की बहस ने दोनों नजरियों को हाशिये पर पहुंचा दिया है। जब सर्जिकल स्ट्राइक का ज्वार उतरेगा और पाकिस्तान भी अपने को संभाल लेगा तो वह फिर से उसी बेढंगी चाल को अपना लेगा जैसा पहले चल रहा था। यहां दो प्रत्यक्ष विरोधभासी स्थितियां हैं इन दोनों के अंतर्सम्बंधों को समझना जरूरी है। भारत में आतंकवाद से मुकाबले पर जितनी बहसें होतीं हैं उनमें से बहुत को विपक्ष द्वारा इसे निराशावाद या आशावाद कह कर  खारिज कर दिया जाता है। बहसों को इन दो कोटियों या कैटगरीज में बांधने की कोशिश की जाती है। हालांकि ये कैटेगरी नहीं हैं ये उनके माइंड सेट हैं या बिलीफ सिस्टम हैं या नीतिहीनता की तरफ ले जाते हैं। निराशावादी मानते हैं कि ऐसे हर उपाय  समस्या को उलझा देंगे। जबकि आशावादी यह कहते सुने जाते हैं कि इससे सबक मिलेगा और हालात सुधरेंगे। ये विरोधी वृत्तियां किसी ऐसे सामरिक परिगणन पर आधारित नहीं हैं जो जिहादी आतंकियों से निपटने में भारत को मदद दे या विगत दशकों में ​दिया हो। ये सारे ढांचे अब व्यर्थ हो चुके हैं। यह व्यर्थता सर्जिकल हमले की तीव्रता के कारण नहीं हुई है बल्कि उसके खुलेपन और उसके वैश्विक प्रक्षेप के कारण हुई है। यही नहीं, बल्कि भंगिमा तथा नीति में नाकिय परिवर्तन के कारण भी ऐसा हुआ। राष्ट्रसंघ में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भाषण और उसके बाद इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन का वहिष्कार साथ ही सर्जिकल हमला सब मिलाकर एक तरह से पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर  दोषी बताने का प्रयास है। कई दशकों से पाकिस्तान ने स्थितियों को गलत ढंग से पेश कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने पक्ष में धारणाएं तैयार करता रहा है तथा इस्लामाबाद मुतमईन था कि उसे ऐसा करने रोका नहीं जा सकता है। राष्ट्रसंघ में नवाज शरीफ का भाषण इसी प्रयास का नमूना कहा जा सकता है। जब सर्जिकल हमला हुआ तो पाकिस्तान ने परमाणु हमले की बात शुरू कर दी। यह दुनिया को संदेश देने का तरीका आा। इस चेतावनी के बाद अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मार्क टोनर ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह संयम बरते। यही नहीं अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के दौर में चल रही हिलेरी क्लिंटन ने भी पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह इस बात पर नजर रखे कि कहीं परमाणु हदियार आतंकियों के हाथ ना लग जाएं। सर्जिकल हमले की कामयाबी और भारत के पक्ष में बने अंतरराष्ट्रीय वातावरण ने भारत में एक नये तरह के आत्म विश्वास का संचार किया है। लेकिन इस स्थिति को बनाये रखना जरूरी है। पाकिस्तान इन दिनों ​इतिहास की गलत राह पर खड़ा है और फिलहाल वह इस स्थिति में सुधार भी नहीं ला सकता है। अब प्रतिमान बदल चुके हैं। अब तक दिल्ली परेशान रहती थी कि पाकिस्तान क्या करेगा किंतु इस समय  पाकिस्तान चिंतित है कि दिल्ली का अगल कदम क्या होगा। उसे इस हालत में रखा जाय वही हमारे लिये श्रेयस्कर है।

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