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Sunday, November 13, 2016

अभी और कुछ होने वाला है

अभी और कुछ होने वाला है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जापान के कोबे में भारतीय समुदाय को सम्बोधित करते हुये कहा कि 30 दिसम्बर के बाद अभी और कुछ होगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि यह और कुछ क्या है पर इतना तो इशारा किया कि काला धन रखने वालों को ठिकाने लगा दिया जायेगा। बैंकों में जो लोग इस समय भारी धन जमा कर रहे हैं उनके रिकार्ड्स की 1947 के बाद से छानबीन की जायेगी। 8 नवम्बर के बाद से कुछ भी हुआ यह कोई नयी बात नहीं है ऐसा पहले भी हुआ है और बाद में भी होगा। सरकार के इन कदमों से आशा की जाती है एकबार ब्लैक मनी तो खत्म हो जायेगी पर उसके आने के रास्ते नहीं बंद होंगे। रास्तों को बंद करने के लिये दीर्घकालीन प्रक्रिया अपनानी होगी। अभी जो हुआ इससे होने वाले लाभ से इंकार नहीं किया जा सकता। इससे और नहीं तो राजनीतिक प्रक्रिया खास कर चुनाव इत्यादि में सफाई आयेगी और ​दिखावटी खर्चे तथा कुछ लोगों के भड़कीले रहन सहन के कारण आम आदमी जो हीन महसूस करता था उससे तो एक बार निजात मिलेगी। यही नहीं , कुछ दिनों के लिये जाली नोटों की आवक पर भी रोक लगेगी और इससे आतंकवाद तथा राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरों पर भी लगाम लगेगी। सन 1978 में भी कुछ बड़े नोटों का चलन बंद किया गया था और उस समय इससे जो लाभ हुआा था उससे कहीं ज्यादा लाभ इस बार होगा। विख्यात अर्थ शास्त्री गुनर मिरडल ने एक बार कहा था कि भारत ‘सॉफ्ट स्टेट’ है। उसकी यह बात कई बार साबित हो चुकी है। बढ़ता भ्रष्टाचार, बढ़ती काले दान की व्यवस्था और कालेदान के पैदा करने की राह। ये सब मिल कर भारत को सचमुच ‘साफ्ट स्टेट’ बना रहे थे। इस बार जो कदम उठाया गया है उसका लाभ उठा कर सरकार चाहे तो राष्ट्रीय आर्थिक आचरण में परिवर्तन ला सकती है। देश के दूर दराज के गावों की अभी भी बैंक तक पहुंच नहीं है। इससे रुपयों को दबा कर रहने की आदत और असके अवसरों को बढ़ावा मिलता है। मोदी जी ने देशहित में बड़ा कदम उठाया है और इसका श्रेय उन्हें मिलना ही चाहिये। प्रधानमंत्री के इस कदम का भारी राजनीतिक असर भी पड़ेगा। चर्चा है कि , कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और इसमें कांग्रेस, सपा तथा बसपा काले धन पर ज्यादा निर्भर है। हालांकि यह केवल नकारात्मक अफवाह है पर ऐसा नहीं हो सकता है ऐसी बात नहीं है। हो भी सकता है। अगर यह अफवाह सच है तो मोदी ने मास्टर स्ट्रोक लगाया है। यहां यह जानना जरूरी है कि कालाधन कैसे तैयार होता है। केलकर समिति की रपट में कहा गया है कि वेतन भोगी या बड़े कारपोरेट क्षेत्र में कालाधन का सृजन नहीं होता। यह बीच के सतह में पैदा लेता हे। जैसे अकाउंटेंट, अफसर , डॉक्टर इत्यादि। कालेधन का ज्यादा उपयोग आभूषण खरीदने और रीयल इस्टेट में ज्यादा होता है। एक साधारण सी दलील है कि इनकम टैक्स ज्यादा लगता है और उसके नियम जटिल हैं इसलिये टैक्स से बचा जाता है और इसके फलस्वरूप काला धन पैदा होता है। अब सवाल यह उठता है कि देश में 14 लाख करोड़ के बड़े नोट चलन में थे। इनमें 7.85 लाख करोड़ के 500 के नोट थे और 6.33 लाख करोड़ के हजार के नोट थे। ये सारे वे हठात बंद हो गये। अब इसकी जगह 500 रपये और 2 हजार रुपये के नोट दिये जा रहे हैं। अभी थेड़ी समस्याह है उपलब्धता की पर वह जल्द ही हल हो जायेगी। बड़े नोटों को बंद करने के बाद एक नयी समस्या पैदा होने वाली है। वह है कि सस्ते नोट बंद हो गये और महंगे नोट चलन में हैं। बहुतों को शायद नहीं मालूम होगा कि हजार रुपये का नोट छापना सबसे सस्ता है। क्योंकि इसकी छपायी में इसके फेस वैल्यू से 0.32 प्रतिशत ही खर्च लगता है जबकि 100 का नोट छापने में 1.8 प्रतिशत, 50 के नोट पर 3.6 प्रतिशत और 10 के नोट पर 9.6 प्रतिशत खर्च लगता है। देश में 15.7 अरब 500 के नोट तथा 6.3 अरब एक हजार के नोट चलन में थे। ये लगभग 22 अरब नोट बंद हो गये। अब देश के कोने कोने में नोटों को पहुंचाने की समस्या बहुत कठिन है। इसका सामयिक असर पड़ेगा और अगर यह असर राजनीति में बदला तो थोड़ी कठिनायी पैदा हो सकती है। लेकिन कुल मिला कर यह एक सकारात्मक कदम है।

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