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Thursday, November 17, 2016

आखिर ऐसी भी क्या जल्दी थी

आखिर ऐसी भी क्या जल्दी थी
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कालाधन को खत्म करने की गरज से 8 नवम्बर की रात एक हजार और 5 सौ के नोटों का चलन रद्द कर देने की घोषणा की। इससे सारा देश हैरत में डूब गया। विरोध के स्वर को दबाने के लिये कहा जाने लगा कि कालाधन मिटाने की नीति की ऐसी ही घोषणा जरूरी थी। कालधन मिटाने का वादा करके यानी अर्थ व्यवस्था में स्वच्छता का वादा करके सरकार में आयी भाजपा या यूं कहें कि एन डी ए ने काला धन मिटाने का जो नारा चलाया और जो स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया और जो नोटबंदी की उन्होंने घोषणा की उसके एक सपताह बाद तक के समन्वित सरकारी आंकड़े बताते र्हैं कि नतीजा बहुत अच्छा नहीं हुआ है। सरकारी रपट के मुताबिक इस एक् हफ्ते में यानी 9 नवम्बर से 14 नवम्बर के बीच बैंकिंग सिस्टम में कुल मिला कर 1.1 लाख करोड़ रुपया सामने आया है।  मोदी सरकार ने काले धन को जुर्माने के साथ सफेद बनाने की वीडीआईएस स्कीम शुरू की जिसके तहत 65,250 करोड़ की रकम सामने आई। इसके अलावा वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने 12 अगस्त को लोकसभा को जानकारी दी कि 2014 से 2016 के बीच 21,354 करोड़ रुपये की अघोषित आय सामने आई। इस दौरान 22,475 करोड़ की रक़म पकड़ी भी गई। साथ ही 1474 करोड़ रुपये ज़ब्त किए गए। यानी 2014 से 2016 के बीच 1.1 लाख करोड़ से ऊपर का काला धन सामने आया। इसके अलावा नोटबंदी के बाद से पहले चार दिनों में 3 लाख करोड़ रुपया बैंकों में जमा हुआ है। अभी 30 दिसमबर तक समय है देखना है कि कितनी रकम सामने आती है। जबकि वित्त मंत्रालय की ही रिपोर्ट के मुताबिक मनमोहन सिंह के काल में या यों कह लें कि यू पी ए – 2 के काल में यूपीए-2 के समय अप्रैल 2009 से दिसंबर 2012 तक 39,500 करोड़ से ज्यादा की अघोषित आय सामने आई। इस दौरान करीब चार साल में 25,500 करोड़ से ज्यादा की अघोषित आय पकड़ी गई। करीब 3,000 करोड़ रुपये के बराबर की संपत्ति जब्त की गई। यानी कुल करीब 68,000 करोड़ की रकम यूपीए-2 के समय सामने आई। यद्यपि सरकार का यह कदम या साहस तारीफ के काबिल है पर अगर इसके लिये समुचित तैयारियां कर ली गयीं होती हैं तो इतनी आलोचना नहीं होती। खबर है कि इसके लिये 6 महीने से तैयारी चल रही थी पर उस तैयारी का नतीजा तो नहीं दिख रहा है। जो दिख रहा है तो केवल बेचैनी, अव्यवस्था और असुविधा है। आंकड़ों के मुताबिक देश में विबिन्न बैंकों की 1 लाख 32 हजार 587 शाखायें हैं। बैंकों में कुल जितने खाते हैं उनके आधार पर औसतन 9500 नागरिकों पर एक शाखा है। लेकिन यह सामान्य औसत है। क्योंकि 250 जिलों में केवल सौ शाखायें हैं और गावों में कुल मिला कर 49902 शाखायें हैं जबकि देश की 69 प्रतिशत आबादी गावों में बसती है। बड़े शहरों में जहां कैशलेस लेन देन के कई तरीके हैं गांवों के लाग पूरी तरह नगदी लेन देन पर निर्भर हैं। दूर दराज के इलाकों में बैंकों में भरने के लिये नगदी पहुंचाने के लिये समुचित सुरक्षा व्यवस्था चाहिये वह अलग। यही नहीं सरकार की घोषणाओं को लेकर भारी विभ्रम भी फैल गया है। सरकार ने कहा कि अघोषित सम्पति पर टैक्स के अलावा 200 प्रतिशत पेनल्टी लगेगी। अब इसे लेकर आयकर विभाग में भारी कन्फ्यूजन है। किस कानून के तहत दो सौ प्रतिशत टैक्स अपने आप लगया जायेगा।  यही नहीं सरकार ने कहा है कि शक होने पर 1947 से रिकार्ड खंगाले जायेंगे जबकि आयकर विभाग की हकीकत यह है कि दो लाख से ऊपर वालों की गणना करने के लिये उनके पास आदमी नहीं हैं। रुपया देने के लिये एटीएम बने हैं पर छोटे नोटों के कारण एटीएम जल्दी ही खाली हो जा रहे हैं। संकट बना हुआ है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में 2 लाख 1 हजार 867 एटीएम हैं जिनमें 70 प्रतिशत  मुख्यत: शहरी इलाकों में हैं। इससे लोगों की तकलीफें बढ़ी हैं। प्रधानमंत्री ने इस कदम को भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ एक 'जिहाद' की तरह से जनता के सामने पेश किया है। जनता परेशान जरूर है लेकिन इस एक्शन के खिलाफ नजर नहीं आती। सोमवार को गाजीपुर में एक सभा को सम्बोधित करते हुये प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि पांच सौ और एक हजार रुपए के पुराने नोट को बदल कर नए नोटों के लाने के फैसले से आम लोगों को कष्ट हो रहा है इससे किसी को इनकार नहीं, पर  50 दिनों के बाद लोगों की तकलीफें दूर हो जाएंगी। उन्होंने कहा, "केवल वो लोग परेशान हैं, जो बेईमान हैं। लेकिन उनके लिए कोई और चारा भी नहीं है ।" प्रधानमंत्री की इस बात का असर पड़ता दिख रहा है।  इस सम्बंध में विपक्ष की भूमिका से निराशा हो रही है। सरकार को कटघरे में खाड़ा करने का यह अच्छा अवसर था जिसे विपक्ष ने गवां दिया। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह विपक्ष की खिल्ली उड़ा रहे हैं, कह रहे हैं  कि मायावती और मुलायम के चेहरे से चमक गायब हो गई है। विपक्ष चुप है। बेशक विपक्ष के बड़े नेताओं के बयान जरूर आ रहे हैं। लेकिन एक्शन गायब है। अरविंद केजरीवाल का विरोध सोशल मीडिया से आगे कभी नहीं बढ़ पाया है। बुधवार से संसद का नया सत्र शुरू हो रहा है। सरकार को कई अहम बिल पारित कराने हैं जिसके लिए मोदी सरकार को विपक्ष की ज़रुरत पड़ेगी जबकि राज्य सभा में भाजपा को बहुमत प्राप्त नहीं है। अब यह स्थिति दिलचस्प होगी कि इस सत्र में विपक्ष नोटों की वापसी के मुद्दे पर सरकार को कितना झुका सकती है। प्रधानमंत्री के अब तक के सार्वजनिक भाषणों से ऐसा लगता है कि सरकार झुकने वाली नहीं है। 

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