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Tuesday, November 8, 2016

हम अपने बच्चों को कैसा भविष्य दें

हम अपने बच्चों को कैसा भविष्य दें

पिछले हफ्ते यूनिसेफ के एक प्रतिवेदन  के हवाले से न्यूयार्क टाइम्स की एक रपट में कहा गया था कि दक्षिण एशिया में दो करोड़ 20 लाख बच्चे जहरीली हवा में सांस लेने के लिये अभिशप्त है। क्योंकि बच्चों के फेफड़े अभी विकास के दौर से गुजर रहे हैं इसलिये उनपर हवा के प्रदूषण का ज्यादा असर हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पी एम 2.5 के जो कण हैं वे मनुष्य के केश की माटाई से भी कम हैं और ये पेट्रोल डजिल के धुएं और बारीक धूलकण के मिश्रण से बनते हैं तथा सांस के जरिये ये जहरीले कण मनुष्य की शिराओं तथा धमनियों में पहुंच जाते हैं। इससे ह्रदयाघात से लेकर निमोनिया और दमा तक होता है। डब्लू एच आहे के अध्ययन के मुताबिक 2012 से 2015 के बीच वायु प्रदूषण से 70 लाख लोग मरे हैं जिनमें पांच साल से कम उम्र के 6 लाख बच्चे थे। यानी हर दसवीं मौत पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की थी। इस रपट के संदर्भ में भारत की स्थिति देखें तो भयावहता और बढ़ जाती है।  भारत में हर साल 6 लाख 20 हजार लोग वायु प्रदूषण से काल के गाल में समाजाते हैं।ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, जिसे अमरीका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है, में वायु प्रदूषण को दुनिया के शीर्ष दस हत्यारों की सूची में और दक्षिण एशिया में इसे छठा सबसे खतरनाक हत्यारा कहा गया है। देश के कई नगरों में दिवाली के बाद बिगड़ी वातावरण की स्थिति अब तक सही नहीं हुई है। आम तौर सर्दियों में हमारे देश में लोगों की कार्यक्षमता बढ़ जाती है पर इस वर्ष तो प्रदूषण के कारण हवा में कायम धुंध के कारण सबनकुछ धीमा सा हो गया है खास कर राजधानी दिल्ली सहित कई महानगरों में। दिल्ली में तो हालात इतने बिगड़ गये हैं कि स्कूल बंद करने पड़े हैं। राजधानी में इस के कई कारण एक साथ मिल गये हैं और सब्के मिल जाने से स्थिति अतयंत चिताजनक हो गयी है। इनमें दिवाली में इस्तेमाल किये गये पटाखे, वाहनों से निकलते धुएं, उत्तर भारत में फसल कटाई के बाद खेतों में बचे डंठल और भूसे को जला देने के कारण निकले धुएं तथा हवा की गति में धीमापन जैसे कई कारण हैं। हर राजनीतिक दल विकास की बात करते हैं लेकिन ऐसे विकास का करेंगे जो विनाश का कारण बने। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वायु प्रदूषण को लेकर 91 देशों के 1600 शहरों पर डाटा आधारित अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। सबसे ज्यादा चिंता हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों (पार्टिकुलेट मैटर अथवा पीएम) को लेकर जताई गई है। ये कण फेफड़ों को सीधा नुकसान पहुंचाते हैं। मनुष्य दिन भर में जो कुछ ग्रहण करता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है जबकि ऑक्सीजन 21 प्रतिशत और कार्बन डाइ ऑक्साइड 0.03 प्रतिशत पाई जाती है। शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओजोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अंतर आने पर वायु असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। भारत में उद्योगीकरण के कारण यह प्रदूषण और बढ़ता जा रहा है। लेकिन प्रिंसटेन विश्वविद्यालय के पर्यावरण के प्रोफेसर रमनन लक्ष्मीनारायणन मुताबिक भारत में अगर थोड़ी सावधानी बरती जाय तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है और अर्थ व्यवस्था को भी आघात नहीं पहुंचेगा। । प्रदूषण रोकने के लिए किसी भी सरकार ने गंभीर प्रयास नहीं किए। जो प्रयास किए गए वे नाकाफी साबित हुए और यह संकट बढ़ता ही गया। इसे रोकने के लिए अब ठोस प्रयासों की दरकार है। प्रो. लक्ष्मीनारायणन के अनुसार ऐसे उद्योग लगायें जाएं जिससे प्रदूषण कम हो। जैसे दवा के कारखाने। अब हमें सोचना होगा कि हम अपना अस्तितव बनाये रखने के लिये क्या करें और अपने बच्चों को कैसा भविष्य दें

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