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Tuesday, December 13, 2016

70 साल का करप्शन कैसे मोदी जी

70 साल का करप्शन कैसे मोदी जी
विश्व का आर्थिक इतिहास अगर देखें तो नोटबंदी उस स्थिति में की जाती है जब नोट के गरीदने की ताकत एकदम घट जाती है जैसा इराक में सद्दाम के पतन के बाद हुआ था। उदाहरण के लिये मान लें कि इक हजार के नोट से उतना ही सामान खरीदा जा सके जितना 50 के एक नोट से खरीदा जाता है तो हजार के नोट या उससे छोटे नोट बंद करने पड़ते हैं। जैसा 5 पैसा , दस पैसा , 20 पैसा , चवन्नी और 50 पैसे के सिक्के के साथ हुआ। लेकिन वर्तमान स्थिति में भारत में ऐसा कुछ नहीं हुआ था उल्टे हमारा विकास दर 7.6 प्रतिशत था। यह दर चीन से ज्यादा है। नोटबंदी की घोषणा करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा था कि इसका उद्देश्य कालाधन को समाप्त करना है लेकिन उस समय से अबतक लगभग सारे अर्थशा​िस्त्रयों ने कहा है कि कालाधन कहीं जमा नहीं रहता , दरअसल यह बाजार में चलता रहता है और इसका स्वरूप बदल जाता हे। यह आभूषण, सोना, जमीन , इस्टेट इत्यादि में बदल जाता है। ऐसा देश के काले धन के साथ होता है ओर हवाला से विदेश में गये कालेदान के साथ भी होता है। रुपयों को जमा करके रखने का तो कोई मतलब ही नहीं होता, क्योंकि रुपये की कीमत मुद्रास्फीति के साथ घटती है। अनुमान है कि देश में 5-10 प्रतिशत कालाधन जमा है और समग्र कालेधन का परिमाण लगभग 20-35 प्रतिशत है। यह आंकड़ा बहुत पहले विश्व बैंक ने दिया था। विदेशों में जमा धन का कोई अंदाजा नहीं है सब सुनी सुनायी बातें हैं लेकिन इतना तो तय है कि उसका भी परिमाण कम नहीं है। 500 और 1000 रुपयों के नोटों को बंद करना सही कदम नहीं कहा जायेगा। हालांकि 500 के नोटों को शक्रवार 9 दिसम्बर तक चलने दिया गया लेकिन यह पर्यापत नहीं था। जैसा कि आंकड़े बताते हैं कि देश की अर्थ व्यवस्था में 1600 करोड़ के 500 के नोटों की जरूरत है। ताजा खबर के मुताबिक यह जरूरत का फकत 5 प्रतिशत है। जैसी कि खबर मिली है यह मोदी जी की नोटबंदी की घोषणा के हफ्ते भर पहले से ये नोट छपने शुरू हुये थे। जबकि नोटब्ंदी की ोषणा के दो महीने पहले से 2000 के नोट छपने लगे थे अतएव ये कुछ उपलब्ध हैं। यही कारण है कि नोटों का अभाव हे और खास कर उन इलाकों में जहां बैंक नहीं हैं या कम हैं। इसके अलावा , दो हजार के नोट आकार में थोड़े छोटे हैं और एटीएम को अगर उनके लायक नहीं बनाया जाय तो उसमें से नोट निकल नहीं सकते। अब हालात यह है कि नगदी के भीषण अबाव से कारोबार या ठप हो गया है या धीमा हो गया है। ट्रक खड़े हैं सामान भेजा नहीं जा पा रहा है। लोगों को नौकरियों से हटाया जा रहा है। अर्थ शा​िस्त्रयों ने आशंका जाहिर की है कि इससे सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 5.6 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। इसका प्रभाव मुद्रास्फीति पैदा करेगा। डालर के मुकाबले रुपये की गिर जायेगी। भुगतान डेबिट कार्ड , क्रडिट कार्ड या पे टी​एम करने की सलाह दी जा रही है। सरकार का मानना है कि नगदी नहीं रहेगी ततो कालाधन नहीं रहेगा। जैसा कि उपर कहा जा चुका है कि कालाधन नगदी की शक्ल में नहीं है और खबर है कि करोड़ो रुपये जनधन योजना में जमा हो रहे हैं। यह ब्लैक मनी को सफेद करने का बाई पास है। 

इस समस्त उपाय का इक सियासी पहलू भी है। प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि यह 70 साल से जमा करप्शन और कालाधन के सफाई का इंतजाम है। महाधिवक्ता मुनकुल रोहतगी ने भी सुप्रीम कार्ट में में कहा है कि यह 70 साल के अशौच धन के सफाई का कदम है। अब अगर राजनीतिक नजरिये से जवाब दें तो कहा जा सकता है कि 15 अगस्त 1947 से 8 नवमबर 2016 तक केवल 69 साल 2 महीने और 23 दिन ही होते हैं न कि 70 साल। दूसरे विगत  ढाई साल से खुद मोदी जी की सरकार है। क्या उनकी सरकार भी करप्शन में शामिल थी? उनकी बात सुनकर निष्कर्ष यही निकलता है। यही नहीं मोदी जी अक्सर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की बात करते हैं ओर यह भूल जाते हैं कि कुछ दिनों तक अटल जी बी प्रधानमंत्री रह चुके हैं, आडवाणी जी भी मे रह चुके हैं। मोदी जी से राष्ट्र जानना चाहता है कि क्या ये लोग भी उस सत्तर वर्ष के करप्शन में शामिल रह चुके हैं?

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