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Thursday, December 8, 2016

व्यंग्य : ये नेता नेता क्या है

व्यंग्य : ये नेता नेता क्या है
एक फिल्म का गाना था ' ये इलू इलू क्या है" बतर्ज उसी गाने के एक सज्जन ने मुझसे पूछा , भाई ये नेता नेता क्या है. मैं पहले तो चकराया फिर फ़रमाया कि यह " ता " उपसर्ग जडित एक ख़ास प्रजाति का जन्तु है जो हर देश और सोसायटी में पाया जाता है. यह दो अक्षरों के योग से बना ऐसी प्रजाति है जिसके दोनो अक्षरों का अपना मूल्य है. मसलन इस  "ता" को देखो, यह जहाँ जाता उसे ख़ास बना देता है. अगर आयेज आता है तो और विचित्र हो जाता है. अब देखो जैसे जूता. यह हथियार से लेकर खाने तक की वास्तु है. अगर यह मादा होकर जूती बन जाता है तो इसकी टूटी बोलने लगती है. अगर पुल्लिंग भी है तो भी बड़ा महिमावान है. कई बार कई नेताओ के सामने जा कर इसने उस नेता को तो शोहरत दी ही ले जाने वाले को भी सुर्ख़ियो में ला दिया. अभी इन दिनो  एक जुमला निकला हुआ है कि " एक नेता जो जूते नहीं पहना करता था उससे एक पत्रकार ने पूछा महोदय आप जूते काब्से नहीं पहनते है तो उन्होने कहा कि बचपन से. क्यों? नेता जी ने कहा , मेरी मा ने सिखाया है कि बेटे खाने की वस्तु को पाँव  नहीं लगाते." हाँ तो चर्चा चल रही थी कि नेता क्या है. भाई साहब सारा महत्व उस " ता" का है. " ता" हट जाएगा तो ने बेकार है. नेता की सबसे बड़ी खूबी होती है की वह जनता, इसका भी ता इसे महिमावान बनाता है, के सिर पर सवार हो कर सभाओं से ले कर मैदानो तक में दौड़ता है. मज़े की बात है कि इसकी सूरत बिकुल जनता से मिलती है लेकिन यह खुद को जनता का सेवक कहता है. लेकिन कभी सेवा करता नहीं उल्टे जनता इसकी सेवा में लगी रहती है. यह जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है. यह जो करता दिखता है वा करता नहीं और जो करता है वह दिखता नहीं. कहते हैं न कि माया महाठगिनी हम जानी. नेता माया का एक स्वरूप है. खुद को जनता का सेवक कहने वाला यह जन्तु सेवक पद से जौ भर भी नीचे जाने को तैयार नहीं होता बेशक प्रधान सेवक बनाने के जुगाड़ में लगा रहता है. वा अपनी पोज़ीशन के खिलाफ ना कुछ सुन सकता है ना उसे कम होते देख सकता है. जिस तरह सरकार सदा पीस और आडर के लिएपरेशान रहती है उसी तरह नेता भी सदा तक़रीर और तारीफ़ के लिए परेशान रहता है और उसकी परम ख्वाहिश होती है कि तक़रीर की तारीफ मय फोटो अख़बारों में छप जाय, टी वी में दिख जाय, रेडीओ में बाज जाय. यह दूसरों को अपने पीछे देखना चाहता है ना कि खुद किसी के पीछे चलना.  जिस घड़ी इस जन्तु के जिगर में देश का दर्द खौलने लगता है यह व्याकुल  होकर सभाओं की ओर दौड़ता है.  देश का दर्द जब बेपनाह हो उठता है तो यह अनशन से आंदोलन तक करने लगता है. बेतहाशा चीघड़ता है चिल्लाता है, भूमि पर पैर पटकता है,  जनता को जनार्दन बना देता है. जिस तरह एक समय के नेता रावण ने सोने का हिरण बना कर खुद जनार्दन को ठग लिया था उसी तरह आज के नेता आंदोलनो , भाषनो के स्वर्ण मृग के बाल पर जनता नामक जनार्दन को ठग लेता है. कभी कभी यह इस मायाजाल को फैला कर सरकारी अतिथि शाला यानी जेल भी चला जाता है , जहाँ उसे मन पसंद दाना चारा भी मिलता है. नेता की सबसे बड़ी खूबी होती है कि वा अपने पैरों पर कम और देश की खोपड़ी पर ज़्यादा चलता है. यह सदी गली हवेलिओं में नहीं आलीशान इमारतों में रहना चाहता है. कई बार यह धारा 144 तोड़ कर जेलजाना पसंद करता है.जिस तरह बलि के पहले बकरे को पूजा जाता है उसी तरह वा बवही चुनाव के पहले पब्लिक को पोजता है और  फिर गला काटने के रूप में वोट ले लेता है. यह अलग अलग लोगो से अलग अलग रूप में मिलता है. किसी से दाँत निपोरकर तो किसी से त्योरियाँ  चढ़ा कर.जब यह नेता से नेतेन्द्र बन जाता है तो जनता  की शक्ल भी भूल जाता है. नेता हज़ारों तरह के होते हैं  और इनकी राह  भी अलग अलग होती है. सबके वर्णन उसी तरह कठिन है जिस तरह कहा गया है ना कि " पृथ्वी को काग़ज़ और धरा को स्याही  तब भी प्रभु की महिमा नहीं लिखी जा सकती है," उसी तरह नेता की महिमा नहीं लिखी जा सकती है.

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