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Tuesday, December 20, 2016

हिन्दू धर्मावलम्बियों में शिक्षा का घटता अनुपात

हिन्दू धर्मावलम्बियों में शिक्षा का घटता  अनुपात 
दुनिया भर में हिन्दू धर्मावलम्बी जितना समय स्कूलों में गुजरते हैं उसके मुकाबले ज्यादा हासिल करते हैं तब भी अन्य धर्मावलम्बिओ की तुलना में हिन्दुओं में शिक्षा की उपलब्धियां  सबसे कम है.  पिऊ रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 98 प्रतिशत हिन्दू भारत, नेपाल और बँगला देश में रहते हैं. ये लोग औपचारिक शिक्षा में औसतन 5.6 वर्ष गुजरते हैं इसाई 9.6 वर्ष , मुस्लिम 5.6 वर्ष और यहूदी 13.4 वर्ष गुजरते हैं . रिसर्च करने वालों ने शैक्षणिक उपलब्धियों के चार चरणों पर काम किया था , इसमें  पहला था कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा नहीं, प्राइमरी शिक्षा, सेकेंडरी शिक्षा और सेकेंडरी के बाद वाली शिक्षा. यहाँ काबिलेगौर है कि हिन्दू धर्मावलम्बी उतना ही समय स्कूलों में गुजरते हैं जितना मुस्लिम धर्मावलम्बी.  41 % हिन्दुओं के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है इसकी तुलना में मुस्लिमों का अनुपात 36  प्रतिशत है. हिन्दुओं में किसी भी धर्मावलम्बियों के अनुपात में  स्त्री – पुरुष शिक्षा में काफी अंतर है. हिन्दुओं में स्त्रियों के मुकाबले पुरुष स्कूलों में 2.7 वर्ष समय ज्यादा गुजरते हैं  जबकि पुरुषों के मुकाबले आधी से ज्यादा महिलाओं के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है. हालाँकि हिन्दुओं में अब शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है. नयी  पीढ़ी  अपनी पहलेवाली पीढ़ी से ज्यादा समय औपचारिक शिक्षा में गुजार रही है. 55 से 71 साल की उम्र के हिन्दुओं ने औसतन 3.6 साल औपचारिक शिक्षा में गुजारे थे जबकि  22 से 34 साल के हिन्दू औसतन 7.1 साल स्कूलों में गुजरते है. नतीजतन औपचारिक शिक्षा विहीन हिन्दुओं की संख्या में भारी कामी आयी है. हालाँकि दक्षिण एशिया से बाहर रहने वाले हिन्दुओं में ठीक इसके विपरीत है. उस क्षेत्र के हिन्दू सर्वाधिक पढ़े लिखे लोग माने जाते हैं. हाल ही में एक अमरीकी थिंक टैंक की रिपोर्ट में कहा गया था कि “ अमरीका में निवास वाले हिदू अमरीका के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं. भारत में महज 10 प्रतिशत हिन्दू ही सेकेंडरी से ऊपर तक पढ़े हैं जबकि उत्तरी अमरीका और योरोप में यह अनुपात क्रमशः 87 और 57 प्रतिशत है. यहाँ पुरुष – महिला के शैक्षणिक स्तर में भी कमी है. उत्तरी अमरीका में पुरुषों के मुकाबले महिलायें शिक्षा के लिए  बस 0.7 साल कम अवसर गुजारती हैं. दुनिया भर में हिन्दुओं में लैंगिक अनुपात भी घाट रहा है. शिक्षा के प्रभाव से हिन्दू महिलाओं में प्रचुर जागरूकता आयी है इनकी आबादी में भी विकास हो रहा है. अच्छे संकेत हैं कि इस अध्ययन के लिए सबसे कम उम्र की हिन्दू महिला और सबसे ज्यादा उम्र की हिन्दू महिला स्कूल में गुजारे गए समय में केवल चार वर्ष का अंतर है. अध्यन के अनुसार अभी भी 3.1 करोड़ हिन्दू महिलायें ऐसी हैं जिन्हें कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं है. जबकि ऐसे पुरुषों की तदाद महज 1.8 करोड़ है.  हालाँकि यह अध्ययां एक आधार बन सकता है पर इसकी प्रम्मानिकता वैसी नहीं है जैसी उम्मीद की जा रही है. मसलन भारत , नेपाल और बंगलादेश में ही हिन्दुओं का मामला लें. बंगलादेश को छोड़ कर दोनों देशों में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और आनुपातिक अंतर बहुत ही ज्यादा है. साथ ही सामाजिक आर्थिक अंतर भी है. इसके अलावा शिक्षा के अवसर भी शिक्षा के प्रसार में अपना अलग स्थान रखते हैं. सामाजिक संरचना और और जाति भी शिक्षा के प्रसार में रोड़ा अटकाती है. दरअसल भारत में शिक्षा के प्रसार में सात तरह की बाधाएं हैं, वे हैं मनोभाव या ईगो , दंड प्रणाली , परीक्षा व्यवस्था, अपर्याप्त भवन, शिक्षकों पर शिक्षा के अलावा कई अन्य कामों का अत्यधिक बोझ, स्वाभिमान विहीन अध्यापक और संकुचित मनोवृति के अभिभावक . बच्चों को इन सात बाधाओं के अलावा अत्यधिक पुस्तकों के अध्ययन की भी बाधा से दो चार होना पड़ता है. यही नहीं आम शिक्षा का भारत में भारत में भविष्य निर्माण में ज्यादा बड़ी भूमिका नजर नहीं आती है. इन समस्त मुश्किलों से घिरे छात्र धीरे धीरे हतोत्साहित होते जाते हैं और पढ़ना छोड़ देते हैं. अब चूँकि यहाँ हिन्दू बहुसंख्यक हैं इसलिए उनकी संख्या भी ज्यादा दिखती है. इन सबके बावजूद इसे अच्छा रुख नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि एक शिक्षित राष्ट्र ही एक सबल राष्ट्र बन सकता है और एक सबल राष्ट्र ही एक सबल राष्ट्र हो सकता है.     

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