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Thursday, December 22, 2016

जवाब देने का वक्त अा गया है

जवाब देने का वक्त आ गया है 
यह वर्ष भारतीय सेना के लिए सबसे ख़राब साल रहा.जम्मू कश्मीर में आतंकी हमलों में 87 जवान शहीद हुए , जिसमे अकेले घटी में 71 सैनिक देश के काम आये.प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष 11 दिसंबर तक 84 सैनिक शहीद हुए थे और इसके बाद 17 दिसंबर को पुलवामा जिले के पाम्पोर में मोटर साईकिल सवार आतंकियों ने सेना के एक काफिले पर अचानक  हमला बोल दिया और उनसे मुकाबला करते हुए 3 सैनिकों ने अपनी जान न्योछावार कर दी. 18 सितम्बर को उडी हमले के बाद नियंत्रण रेखा पर भारत पकिस्तान में तनाव बढ़ गए और यह तनाव इस समय चरम पर है. उराक्षा विशेषज्ञों के अनुसार तनाव का इतना बढ़ जाना युद्ध की ओर संकेत करता है. गृह मंत्रालय की लोक सभा में पेश रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष सहीद हुए सैनिकों की तादाद पिछले साल से 82 प्रतिशत ज्यादा  है और घायलों की संख्या गत वर्ष से दोगुनी है. गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं किचालू वर्ष में 27 नवम्बर तक मृत सैनिकों की संख्या 71 थी जो 2013 के 53 की संख्या से 34 प्रतिशत ज्यादा थी. यह संख्या विगत चार वर्षों में सबसे ज्यादा है. आतंकियों के हमलों से घायल होने वाले सैनिकों की संख्या भी इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी हो गयी है. आतंकी हमलों का मुकाबले के दौरान सैनिकों ने 140 आतंकियों को मार डाला जो पिछले वर्ष की तुलना में ज्यादा था. आतंकी हमलों में मृत नागरिकों की संख्या में गिरावट आयी है. गृह मन्त्रालय के आंकड़े बताते हैं किपिछले वर्ष के अनुपात में यह 18 % कम है. 
उधर विद्रोही गतिविधियों से आक्रांत देश पूर्वोत्तर भाग में आतंकी हमलों में मृत फौजियों की संख्या केवल 9 थी जो गत वर्ष की 80 प्रतिशत कम है. यही नहीं माओ वादियों केर हमलों में मरने वाले सैनिकों की संख्या भी घटी है जो 2013 के 115 से घाट कर इस वर्ष 15 नवम्बर तक  64 हो गयी है. 
ये आंकड़े बताते हैं कि जहां जम्मू कश्मीर में सुरक्षा के हालत बिगड़े हैं वहीं पूर्वोत्तर में इसमें सुधार हुआ है. यही नहीं मओवादियो के हमले भी घटे हैं. पूर्वोत्तर भारत में देसी आतंकी गिरोहों के हमले होते हैं साथ ही माओवादियों के साथ भी यही बात है. जबकि कश्मीर में हमले के लिए सीमा पार  के आतंकी जिम्मेदार हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि आतंकी सैनिकों को निशाना ज्यादा बना रहे हैं और नागरिक आबादी पर उनका कहर कम है. वे कश्मीर की जनता को भयभीत कर भारतीय सेना और भारत सरकार  के खिलाफ खडा करना चाहते हैं और इसमें सफल भी हो रहे हैं.  पिछले कुछ महीनों से कश्मीर पुलिस और अर्ध सैनिक बालों पर पथराव की घटनाएं बढ़ी हैं. यही नहीं नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के उल्लंघन की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है. आकड़ें बताते हैं कि 26  नवम्बर 2016 तक  नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम की 216 घटनाएं हुईं  जबकि  गत वर्ष 152 घटनाएं हुईं थीं.  आंकड़ों को देखें तो निष्कर्ष निकलता है कि आतंकियों के हमलों और नियंत्रण रेखा पर हमलों में सीधा सम्बन्ध है. पाकिस्तानी सेना भारत में आतंकियों को प्रवेश कराने के लिए नियंत्रण रेखा पर भारतीय शिविरों पर हमले करती है. हमारी सेना भी इन हमलों का माकूल जवाब देती है पर उसका कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पा रहा है. हम सभी समझते हैं कि युद्ध विनाशक होता है और दो ऐसे देशों के बीच युद्ध जिनके पास परमाणु ताकत हो उनमी तो यह और भी ज्यादा विनाशक होता है. लेकिन क्या किया जय . एक ऐसे उन्मादी पडोसी से कैसे निपटा जाय जो हमेशा से जंग का प्यासा है. यक़ीनन यह बड़ा ही खतरनाक स्थिति है. एक उन्मादी राष्ट्र का पर्मानुकरण हो गया है और उसे अमरीका का परोक्ष तथा चीन का प्रत्यक्ष समर्थन हासिल है. ऐसे में शांति के पहल की जिम्मेदारी भारत के हाथ से निकल चुकी है. वैसे हमारे देश का मानस भ्रामक नैतिकता का शिकार भी है, जैसे, हम विश्व गुरु हैं, दुनिया को नैतिकता और शांति का सन्देश हमने दिया है.  लेकिन यह भी समझना ज़रूरी है कि उदारता और क्षमा तभी तक शोभा देती है जब तक ताकत का विकल्प खुला हुआ है. नई  दिल्ली ने बहुत दिनों तक उदारता दिखाई. अब नियत्रण रेखा पर घाट रही घटनाएं स्वागतयोग्य  स्थिति है माकूल जवाब देने का.  

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